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________________ ६३० • अर्चयस्व हवीकेश यदीच्छसि पर पदम् , [संक्षिप्त पद्मपुराण . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . । 'पापरहित नारायण तथा ज्योतिर्मय दीप ! स्वामीसे कभी वियोग नही होता। दीपदानसे मानसिक अविद्यामय अन्धकारसे भरे हुए संसारमें तुम्ही ज्ञान एवं चिन्ता तथा रोग भी दूर होते हैं। भयभीत पुरुष भयसे मोक्ष प्रदान करनेवाले हो; इसलिये मैंने आज तुम्हारा तथा कैदी बन्धनसे छूट जाता है। दीपव्रतमें तत्पर दान किया है। रहनेवाला मनुष्य ब्रह्महत्या आदि पापोंसे निःसन्देह मुक्त फिर पूजित ब्राह्मणको अपनी शक्तिके अनुसार हो जाता है-ऐसा ब्रह्माजीका वचन है। भक्तिपूर्वक दक्षिणां दे। अन्यान्य ब्राह्मणोंको भी घृतयुक्त जिसने श्रीहरिके संमुख सांवत्सर-दीप जलाया है, खीर तथा मिठाईका भोजन कराये। ब्राह्मणभोजनके उसने निश्चय ही चान्द्रायण तथा कृच्छ्र-व्रतोंका अनुष्ठान अनन्तर सपत्नीक ब्राह्मणको वस्त्र पहनाये। सामग्रियों- पूरा कर लिया। जिन्होंने भक्तिपूर्वक श्रीहरिकी पूजा करके सहित शय्या तथा बछड़ेसहित धेनु दान करे। अन्य संवत्सरदीप-व्रतका पालन किया है, वे धन्य हैं तथा ब्राह्मणोंको भी अपनी सामर्थ्यक अनुसार दक्षिणा दे। उन्होंने जन्म लेनेका फल पा लिया। जो सलाईसे दीपकी सुहदों, स्वजनों तथा बन्धु-बान्धवोंको भी भोजन कराये बत्तीको उकसा देते हैं, वे भी देवदुर्लभ परमपदको प्राप्त और उनका सत्कार करे । इस प्रकार इस संवत्सरदीप- होते हैं। जो लोग सदा ही मन्दिरके दीपमें यथाशक्ति तेल व्रतकी समाप्तिके अवसरपर महान् उत्सव करे। फिर और बत्ती डालते हैं, वे परम धामको जाते हैं। जो लोग सबको प्रणाम करके विदा करे और अपनी त्रुटियोंके बुझते या बुझे हुए दीपको स्वयं जलानेमें असमर्थ होनेपर लिये क्षमा माँगे। दूसरे लोगोंसे उसकी सूचना दे देते हैं, वे भी उक्त फलके दान, व्रत, यज्ञ तथा योगाभ्याससे मनुष्य जिस भागी होते हैं। जो दीपकके लिये थोड़े-थोड़े तेलको फलको प्राप्त करता है, वही फल उसे संवत्सरदीप-व्रतके भीख मांगकर श्रीविष्णुके सम्मुख दीप जलाता है, उसे भी पालनसे मिलता है। गौ, भूमि, सुवर्ण तथा विशेषतः गृह पुण्यकी प्राप्ति होती है। दीपक जलाते समय यदि कोई आदिके दानसे विद्वान् पुरुष जिस फलको पाता है, वही नीच पुरुष भी उसकी ओर श्रद्धासे हाथ जोड़कर निहारता दीपव्रतसे भी प्राप्त होता है। दीपदान करनेवाला पुरुष है, तो वह विष्णुधाममें जाता है। जो दूसरोंको भगवान्के कान्ति, अक्षय धन, ज्ञान तथा परम सुख पाता है। सामने दीप जलानेकी सलाह देता है तथा स्वयं भी ऐसा दीपदान करनेसे मनुष्यको सौभाग्य, अत्यन्त निर्मल करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर विष्णुलोकको विद्या, आरोग्य तथा परम उत्तम समृद्धिकी प्राप्ति होती प्राप्त होता है। है-इसमें तनिक भी संशय नहीं है। दीपदान करने- जो लोग पृथ्वीपर दीपव्रतके इस माहात्म्यको सुनते वाला मानव समस्त शुभ लक्षणोंसे युक्त सौभाग्यवती हैं, वे सब पापोंसे छुटकारा पाकर श्रीविष्णुधामको जाते पत्नी, पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र तथा अक्षय संतति प्राप्त करता हैं। विद्वन् ! मैंने तुमसे यह दीपव्रतका वर्णन किया है। है। दीपदानके प्रभावसे ब्राह्मणको परम ज्ञान, क्षत्रियको यह मोक्ष तथा सब प्रकारका सुख देनेवाला, प्रशस्त एवं उत्तम राज्य, वैश्यको धन और समस्त पशु तथा शूद्रको महान् व्रत है। इसके अनुष्ठानसे पापके प्रभावसे सुखकी प्राप्ति होती है। कुमारी कन्याको सम्पूर्ण शुभ होनेवाले नेत्ररोग नष्ट हो जाते हैं। मानसिक चिन्ताओं लक्षणोंसे युक्त पति मिलता है। वह बहुत-से पुत्र-पौत्र तथा व्याधियोंका क्षणभरमें नाश हो जाता है। नारद ! तथा बड़ी आयु पाती है। युवती स्त्री इस व्रतके प्रभावसे इस व्रतके प्रभावसे दारिद्र्य और शोक नहीं होता । मोह कभी वैधव्यका दुःस्व नहीं देखती। उसका अपने और प्रान्ति मिट जाती है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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