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________________ उत्तरखण्ड] • मन्दिरमें पुराणकी कथा कराने तथा गोपीचन्दनके तिलककी महिमा . ६२७ . . . . . . . . . दोनोंका किया हुआ कर्म बताता हूँ, सुनो। पृथ्वीपर धन दूंगा।' वैदिश नामका एक विख्यात नगर है। वहाँ धरापाल मुनिश्रेष्ठ ! इस प्रकार राजाके आदेशसे वहाँ नामसे प्रसिद्ध एक राजा थे, जिन्होंने भगवान् विष्णुका पुण्यमय कथा-वार्ताका क्रम चालू हो गया। वर्ष मन्दिर बनवाकर उसमें उनकी स्थापना की। उस नगरमें बीतते-बीतते आयु क्षीण हो जानेके कारण राजाकी मृत्यु जितने लोग रहते थे, उन सबको उन्होंने भगवान्का हो गयी। तब मैंने तथा भगवान् विष्णुने भी इनके लिये दर्शन करनेके लिये आदेश दिया। गाँवके भीतर बना धुलोकसे विमान भेजा था। ये जो दूसरे ब्राह्मण यहाँ हुआ श्रीविष्णुका वह सुन्दर मन्दिर लोगोंसे ठसाठस भर आये थे, इन्होंने सत्सङ्गके द्वारा उत्तम धर्मका श्रवण गया। तब राजाने पहले ब्राह्मण आदिके समुदायका किया था। श्रवण करनेसे श्रद्धावश इनके हृदयमे पूजन किया, फिर उन महाबुद्धिमान् नरेशने इतिहास- परमात्माकी भक्तिका उदय हुआ। मुनिश्रेष्ठ ! फिर इन्होंने पुराणके ज्ञाता एक श्रेष्ट द्विजको, जो विद्यामें भी श्रेष्ठ थे, उन महात्मा वाचककी परिक्रमा की और उन्हें एक माशा वाचक बनाकर उनकी विशेष रूपसे पूजा की। फिर सुवर्ण दान दिया। सुपात्रको दान देनेसे इन्हें इस प्रकारके क्रमशः गन्ध-पुष्प आदि उपचारोंसे पुस्तकका भी पूजन फलकी प्राप्ति हुई है। मुने ! इस प्रकार यह कर्म, जिसे करके राजाने वाचक ब्राह्मणसे विनयपूर्वक कहा- इन दोनोंने किया था, मैंने कह सुनाया। "द्विजश्रेष्ठ ! मैंने जो यह भगवान् विष्णुका मन्दिर महादेवजी कहते हैं-जो मनीषी पुरुष इस पुण्य-प्रसङ्गका माहात्य श्रवण करते हैं, उनकी किसी जन्ममें कभी दुर्गति नहीं होती । देवर्षिप्रवर ! अब दूसरी बात सुनाता हूँ, सुनो। गोपीचन्दनका माहात्म्य जैसा मैंने देखा और सुना है, उसका वर्णन करता हूँ। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र-कोई भी क्यों न हो, जो विष्णुका भक्त होकर उनके भजनमें तत्पर रहकर अपने अङ्गोंमें गोपीचन्दन लगाता है, वह गङ्गाजलसे नहाये हुएकी भाँति सब दोषोंसे मुक्त हो जाता है। कल्याणकी इच्छा रखनेवाले वैष्णव ब्राह्मणोंके लिये गोपीचन्दनका तिलक धारण करना विशेष रूपसे कर्तव्य है। ललाटमें दण्डके आकारका, वक्षःस्थलमें कमलके सदृश, बाहुओंके मूलभागमें बाँसके पत्तेके समान तथा अन्यत्र दीपकके तुल्य चन्दन लगाना चाहिये। अथवा जैसी रुचि हो, उसीके अनुसार भिन्न-भिन्न अङ्गोंमें चन्दन लगाये, इसके लिये कोई खास नियम नहीं है। ALL गोपीचन्दनका तिलक धारण करनेमात्रसे ब्राह्मणसे लेकर बनवाया है, इसमें धर्म श्रवण करनेकी इच्छासे चारों चाण्डालतक सभी मनुष्य शुद्ध हो जाते हैं। जो वैष्णव वर्णोका समुदाय एकत्रित हुआ है; अत: आप पुस्तक ब्राह्मण भगवान् विष्णुके ध्यानमें तत्पर हो, उसमें तथा बाँचिये। इस समय ये सौ स्वर्णमुद्राएँ उत्तम विष्णुमें भेद नहीं मानना चाहिये; वह इस लोकमें जीविकावृत्तिके रूपमें ग्रहण कीजिये और एक वर्षतक श्रीविष्णुका ही स्वरूप होता है। प्रतिदिन कथा कहिये। वर्ष समाप्त होनेपर पुनः और तुलसीके पत्र अथवा काष्ठकी बनी हुई माला संपपु० २१
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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