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________________ उत्तरखण्ड ] • गङ्गाकी महिमा, श्रीविष्णु, यमुना, गङ्गा, प्रयाग, काशी, गया एवं गदाधरकी स्तुति • ६१३ गयीं? ध्यान करके जब उन्होंने यह निश्चितरूपसे जान श्रीहरिका दर्शन करके उनकी परिक्रमा करते हैं, वे दुःखके लिया कि उन्हें महादेवजीने ग्रहण कर लिया है, तब वे भागी नहीं होते । ब्रह्महत्या आदि पापोंकी अनेक राशियाँ कैलास पर्वतपर गये। मुनिश्रेष्ठ वहां पहुंचकर वे तीन ही क्यों न हों, वे सब सर्वदा श्रीहरिके दर्शनमात्रसे नष्ट तपस्या करने लगे। उनके आराधना करनेपर मैंने अपने हो जाती हैं। एक समय मैं भी हरिद्वारमें श्रीहरिके स्थानपर मस्तकसे एक बाल उखाड़ा और उसीके साथ त्रिपथगा गया था, उस समय उस तीर्थ के प्रभावसे मैं विष्णुस्वरूप गङ्गाजीको उन्हें अर्पण कर दिया। गङ्गाको लेकर वे हो गया। सभी मनुष्य वहाँ श्रीहरिका दर्शन करनेमात्रसे पातालमें, जहाँ उनके पूर्वज भस्म हुए थे, गये। उस समय वैकुण्ठ-लोकको प्राप्त होते हैं। परम सुन्दर हरिद्वार-तीर्थ भगवान् विष्णुके चरणोंसे प्रकट हुई गङ्गा जब हरिद्वारमें मेरी दृष्टि में सबसे अधिक महत्त्वशाली है। वह समस्त आर्यो, तब वह देवताओंके लिये भी दुर्लभ श्रेष्ठ तीर्थ बन तीर्थोंमें श्रेष्ठ और धर्म-अर्थ-काम-मोक्षरूप चारों गया। जो मनुष्य उस तीर्थ में स्रान तथा विशेषरूपसे पुरुषार्थ प्रदान करनेवाला है। गङ्गाकी महिमा, श्रीविष्णु, यमुना, गङ्गा, प्रयाग, काशी, गया एवं गदाधरकी स्तुति ___ महादेवजी कहते हैं-मुनिश्रेष्ठ ! अब मैं अन्धकार दूर हो जाता है, उसी प्रकार गङ्गाके प्रभावसे श्रीगङ्गाजीके माहात्म्यका यथावत् वर्णन करूंगा, जिसके पातक नष्ट हो जाते हैं। ये माता गङ्गा संसारमे सदा श्रवणमात्रसे तत्काल पापोंका नाश हो जाता है। जो पवित्र मानी गयी हैं। इनका स्वरूप परम कल्याणमय मनुष्य सैकड़ों योजन दूरसे भी 'गङ्गा-गङ्गा' का उच्चारण है। माता जाह्नवीका स्वरूप दिव्य है। जैसे देवताओंमें करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होता और अन्तमें श्रीविष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार नदियोंमें गङ्गा उत्तम है। विष्णुलोकको जाता है।* नारद ! श्रीहरिके चरण- जहाँ गङ्गा, यमुना और सरस्वती हैं, उन तीर्थोंमें स्नान कमलोंसे प्रकट हुई 'गङ्गा' नामसे विख्यात नदी पापोंकी और आचमन करके मनुष्य मोक्षका भागी होता हैस्थूल राशियोंका भी नाश करनेवाली है। नर्मदा, सरयू, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। वेत्रवती (बेतवा), तापी, पयोष्णी (मन्दाकिनी), चन्द्रा, ... [भिन्न-भिन्न तीर्थों में जानेपर भगवान् श्रीविष्णु तथा विपाशा (व्यास), कर्मनाशिनी, पुष्या, पूर्णा, दीपा, यमुना, गङ्गा आदि नदियोका किस प्रकार स्तवन करना विदीपा तथा सूर्यतनया यमुना-इनमें स्नान करनेसे जो चाहिये, यह बताया जाता है-] ... . पुण्य होता है, वह सब पुण्य गङ्गा-स्नानसे मनुष्य प्राप्त त्वदाता प्रयतो ब्रवीमि यदहं सास्तु स्तुतिस्ते प्रभो कर लेते हैं। जो मनीषी पुरुष समुद्रसहित पृथ्वीका दान यद भुझे तव सनिवेदनमथो यद्यामि सा प्रेष्यता । करते हैं, उनको मिलनेवाला फल भी गङ्गा-नानसे प्राप्त यच्छन्तः स्वपिमि त्वदप्रियुगले दण्डप्रणामोऽस्तु मे हो जाता है । सहस्र गोदान, सौ अश्वमेध यज्ञ तथा सहस्र स्वामिन् यच्च करोमि तेन स भवान् विश्वेश्वरः प्रीयताम् ।। वृषभ-दानसे जिंस अक्षय फलकी प्राप्ति होती है, वह ... प्रभो ! मैं शुद्धभावसे आपके सम्बन्धमें जो कुछ गङ्गाजीके दर्शनसे क्षणभरमें प्राप्त हो जाता है। वह गड़ा भी चर्चा करता है, वही आपके लिये स्तुति हो। जो कुछ नदी महान् पुण्यदायिनी है, विशेषतः ब्रह्महत्यारोंके लिये भोजन करता हूँ. वह आपके लिये नैवेद्यका काम दे। जो परम पावन है। वे नरक में पड़नेवाले हों तो भी गङ्गाजी चलता-फिरता हूँ. वही आपको सेवा-टहल समझौ उनके पाप हर लेती हैं। तात ! जैसे सूर्योदय होनेपर जाय। जो थककर सो जाता हूँ, वही आपके लिये . * गङ्गा गङ्गेति यो ब्रूयाद् योजनाना शतैरपि । मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोक स गच्छति ॥ (२३ ॥२)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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