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________________ ६१२ • अर्जयस्व वीकेश यदीच्छसि पर पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण .. .. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . ................................. . . . . . . . . . कोलाहल सुनकर भगवान् कपिल समाधिसे जाग उठे। पञ्चजनके अंशुमान् नामक पराक्रमी पुत्र उत्पन्न हुआ। उस समय उनके नेत्रोंसे आग प्रकट हुई, जिससे साठ अंशुमानके दिलीप और दिलीपके भगीरथ हुए, जो उत्तम व्रत (तपस्या) का अनुष्ठान करके नदियों में श्रेष्ठ गङ्गाजीको पृथ्वीपर ले आये तथा जिन्होंने गङ्गाको समुद्रतक ले जाकर उन्हें अपनी कन्याके रूपमें अङ्गीकार किया। नारदजीने पूछा-भगवन् ! राजा भगीरथ गङ्गाको किस प्रकार लाये थे? उन्होंने कौन-सी तपस्या की थी, ये सब बातें मुझे बताइये। महादेवजी बोले-नारद ! राजा भगीरथ अपने पूर्वजोका हित करनेके लिये हिमालय पर्वतपर गये। वहाँ पहुँचकर उन्होंने दस हजार वर्षांतक भारी तपस्या | की। इससे आदिदेव भगवान् निरञ्जन श्रीविष्णु प्रसन्न हुए। उन्हींक आदेशसे गङ्गाजी आकाशसे चली और जहाँ विश्वेश्वर श्रीशिव नित्य विराजमान रहते हैं, उस | कैलास पर्वतपर उपस्थित हुई। मैंने गङ्गाजीको आया देख उन्हें अपने जटाजूटमें धारण कर लिया और दस हजार सगर-पुत्र जलकर भस्म हो गये। महायशस्वी राजाने समुद्रसे उस आश्वमेधिक अश्वको प्राप्त किया और उसके द्वारा सौ अश्वमेध यज्ञोंका अनुष्ठान पूर्ण किया। नारदजीने पूछा-विज्ञानेश्वर ! सगरके साठ हजार पुत्र बड़े बलवान् और पराक्रमी थे, उन वीरोकी उत्पत्ति किस प्रकार हई? यह बताइये। महादेवजी बोले-नारद ! राजा सगरकी दो पत्नियां थीं, वे दोनों ही तपस्याके द्वारा अपने पाप दग्ध कर चुकी थीं। इससे प्रसन्न होकर मुनिश्रेष्ठ और्वने उन्हें वरदान दिया। उनमेंसे एक रानीने साठ हजार पुत्र मांगे और दूसरीने एक ही ऐसे पुत्रके लिये प्रार्थना की, जो वंश चलानेवाला हो। पहली रानीने तूंबीमें बहुत-से शूरवीर पुत्रोंको जन्म दिया; उन सबको धाइयोंने ही क्रमशः पाल-पोसकर बड़ा किया। घीसे भरे हुए पड़ोंमें रखकर उन कुमारोंका पोषण किया गया। कपिला ANNA गायका दूध पीकर वे सब-के-सब बड़े हुए। दूसरी हजार वर्षांतक उसी रूपमें स्थित रहा। इधर राजा भगीरथ रानीके गर्भसे पञ्चजन नामक पुत्र हुआ, जो राजा बना। गङ्गाजीको न देखकर विचार करने लगे-गङ्गा कहाँ चली
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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