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________________ पातालखण्ड ] • वैशाख माहात्म्य प्रसङ्गमें महीरथकी कथा, यम ब्राह्मण संवादका उपसंहार • ************ पितरोंको हजार वर्षोंतक आनन्द प्रदान करनेवाला होता है। जो वैशाखकी पूर्णिमाको विधि पूर्वक स्नान करके दस ब्राह्मणोंको खीर भोजन कराता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। जो धर्मराजकी प्रसन्नताके लिये जलसे भरे हुए सात घड़े दान करता है, वह अपनी सात पीढ़ियोंको तार देता है। बेटा! त्रयोदशी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमाको भक्तिपरायण होकर स्नान, जप, दान, होम और श्रीमाधवका पूजन करो और उससे जो फल हो, वह हमलोगों को समर्पित कर दो। ये दोनों प्रेत भी मेरे परिचित हो गये हैं; अतः इनको इसी अवस्थामें छोड़कर मैं स्वर्गमें नहीं जा सकता। इन दोनोंके पापका भी अन्त आ गया है। यमराज कहते हैं— ब्रह्मन् ! 'बहुत अच्छा' कहकर वह श्रेष्ठ ब्राह्मण अपने घर गया और वहाँ जाकर उसने सब कुछ उसी तरह किया। वह प्रसन्नतापूर्वक परम भक्तिके साथ वैशाख स्नान और दान करने लगा। वैशाखकी पूर्णिमा आनेपर उसने आनन्दपूर्वक भक्तिसे स्वान किया और बहुत-से दान करके उन सबको पृथक् पृथक् पुण्य प्रदान किया। उस पवित्र दानके संयोगसे वे सब आनन्दमय हो विमानपर बैठकर तत्क्षण ही स्वर्गको चले गये । जो वैशाख मासमें प्रातः काल स्नान करके नियमोंके पालनसे विशुद्धचित्त हो भगवान् मधुसूदनकी पूजा करते हैं, वे ही पुरुष धन्य हैं, वे ही पुण्यात्मा हैं तथा वे ही संसारमें पुरुषार्थके भागी हैं। जो मनुष्य वैशाख मासमें सबेरे स्नान करके सम्पूर्ण यम-नियमोंसे युक्त हो भगवान् लक्ष्मीपतिकी आराधना करता है, वह निश्चय ही अपने पापोंका नाश कर डालता है। जो प्रातःकाल उठकर श्रीविष्णुकी पूजाके लिये गङ्गाजीके जलमें डुबकी लगाते हैं, उन्हीं पुरुषोंने समयका सदुपयोग किया है, वे ही मनुष्योंमें धन्य तथा पापरहित हैं। वैशाख मासमें प्रातःकाल नियमयुक्त हो मनुष्य जब तीर्थमें स्नान करनेके लिये पैर बढ़ाता है, उस समय श्रीमाधवके स्मरण और नामकीर्तनसे उसका एक-एक पग अश्वमेध यज्ञके समान पुण्य देनेवाला होता है। श्रीहरिके प्रियतम वैशास्त्र मासके व्रतका यदि पालन किया जाय तो यह मेरुपर्वतके समान बड़े उग्र पापोंको भी जलाकर भस्म कर डालता है विप्रवर! तुमपर अनुग्रह होनेके कारण मैंने यह प्रसङ्ग संक्षेपसे तुम्हें बता दिया है। जो मेरे कहे हुए इस इतिहासको भक्तिपूर्वक सुनेगा, वह भी सब पापोंसे मुक्त हो जायगा तथा उसे मेरे लोक - यमलोकमें नहीं आना पड़ेगा। वैशाख मासके व्रतका विधिपूर्वक पालन करनेसे अनेकों बारके किये हुए ब्रह्महत्यादि पाप भी नष्ट हो जाते हैं - यह निश्चित बात है। वह पुरुष अपने तीस पीढ़ी पहलेके पूर्वजों और तीस पीढ़ी बादकी संतानोंको भी तार देता है; क्योंकि अनायास ही नाना प्रकारके कर्म करनेवाले भगवान् श्रीहरिको वैशाख मास बहुत ही प्रिय है अतएव वह सब मासोंमें श्रेष्ठ है। 1 ⭑ वैशाख माहात्म्यके प्रसङ्गमें राजा महीरथकी कथा और यम- ब्राह्मण-संवादका उपसंहार ब्राह्मणोंमें श्रेष्ठ धनशर्मा भी श्रुति स्मृति और पुराणोंका ज्ञाता था। वह चिरकालतक उत्तम भोग भोगकर अन्तमें ब्रह्मलोकको प्राप्त हुआ। अतः यह वैशाखकी पूर्णिमा परम पुण्यमयी और समस्त विश्वको पवित्र करनेवाली है। इसका माहात्म्य बहुत बड़ा है, अतएव मैंने संक्षेपसे तुम्हें इसका महत्त्व बतला दिया है। *********............ यमराज कहते हैं - ब्रह्मन् ! पूर्वकालकी बात है, महीरथ नामसे विख्यात एक राजा थे। उन्हें अपने पूर्वजन्मके पुण्योंके फलस्वरूप प्रचुर ऐश्वर्य और सम्पत्ति प्राप्त हुई थी। परन्तु राजा राज्यलक्ष्मीका सारा भार मन्त्रीपर रखकर स्वयं विषयभोगमें आसक्त हो रहे थे। ५९९ 1 वे न प्रजाकी ओर दृष्टि डालते थे न धनकी ओर । धर्म और अर्थका काम भी कभी नहीं देखते थे। उनकी वाणी तथा उनका मन कामिनियोंकी क्रीड़ामें ही आसक्त था । राजाके पुरोहितका नाम कश्यप था जब राजाको विषयोंमें रमते हुए बहुत दिन व्यतीत हो गये, तब
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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