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________________ पातालखण्ड ] • वैशाख स्नानसे पाँच प्रेतोंका उद्धार तथा 'पाप प्रशमन' नामक स्तोत्रका वर्णन • *********....................................................................................********* द्वारा बड़े-से-बड़े पापका भी क्षय हो जाता है तथा उत्तम कर्मकी वृद्धि होने लगती है। राजन् ! भाव तथा भक्ति दोनोंकी अधिकतासे फलमें अधिकता होती है। धर्मकी गति सूक्ष्म है, वह कई प्रकारोंसे जानी जाती है। महाराज ! जो भावसे हीन है— जिसके हृदयमें उत्तम भाव एवं भगवान्की भक्ति नहीं है, वह अच्छे देश और कालमें जा जाकर जीवनभर पवित्र गङ्गा-जलसे नहाता और दान देता रहे तो भी कभी शुद्ध नहीं हो सकता— ऐसा मेरा विचार है। अतः अपने हृदय कमलमें शुद्ध भावकी स्थापना करके वैशाख मासमें प्रातः स्नान करनेवाला जो विशुद्धचित्त पुरुष भक्तिपूर्वक भगवान् लक्ष्मीपतिकी पूजा करता है, उसके पुण्यका वर्णन करनेकी शक्ति मुझमें नहीं है। अतः भूपाल ! तुम वैशाख मासके फलके विषयमें विश्वास करो। छोटा-सा - ⭑ वैशाख स्नानसे पाँच प्रेतोंका उद्धार तथा 'पाप प्रशमन' नामक स्तोत्रका वर्णन अम्बरीषने कहा- मुने! जिसके चिन्तन मात्रसे पापराशिका लय हो जाता है, उस पाप प्रशमन नामक स्तोत्रको मैं भी सुनना चाहता हूँ। आज मैं धन्य हूँ अनुगृहीत हूँ आपने मुझे उस शुभ विधिका श्रवण कराया, जिसके सुनने मात्रसे पापोंका क्षय हो जाता है। वैशास्त्र मासमें जो भगवान् केशवके कल्याणमय नामोंका कीर्तन किया जाता है, उसीको मैं संसारमें सबसे बड़ा पुण्य, पवित्र, मनोरम तथा एकमात्र सुकृतसे ही सुलभ होनेवाला शुभ कर्म मानता हूँ। अहो ! जो लोग माधव मासमें भगवान् मधुसूदनके नामोंका स्मरण करते हैं, वे धन्य है। अतः यदि आप उचित समझें तो मुझे पुनः माधव मासकी ही पवित्र कथा सुनायें। सूतजी कहते हैं— राजाओंमें श्रेष्ठ हरिभक्त अम्बरीषका वचन सुनकर नारद मुनिको बड़ी प्रसन्नता हुई। यद्यपि वे वैशाख स्नानके लिये जानेको उत्कण्ठित थे, तथापि सत्सङ्गमें आनन्द आनेके कारण रुक गये ******** ********** शुभ कर्म भी सैकड़ों पापकर्मोंका नाश करनेवाला होता है। जैसे हरिनामके भयसे राशि राशि पाप नष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार सूर्यके मेषराशिपर स्थित होनेके समय प्रातः स्नान करनेसे तथा तीर्थमें भगवान्‌की स्तुति करनेसे भी समस्त पापोंका नाश हो जाता है। * जिस प्रकार गरुड़के तेजसे साँप भाग जाते हैं, उसी तरह प्रातः काल वैशाख स्नान करनेसे पाप पलायन कर जाते हैं—यह निश्चित बात है जो मनुष्य मेषराशिके सूर्यमें गङ्गा या नर्मदाके जलमें नहाकर एक, दो या तीनों समय भक्तिभावके साथ पापप्रशमन नामक स्तोत्रका पाठ करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर परम पदको प्राप्त होता है। अम्बरीष! इस प्रकार मैंने थोड़ेमें यह वैशाखस्नानका सारा माहात्म्य सुना दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो ?' - ५८५ और राजासे बोले । नारदजीने कहा- महीपाल ! मुझे ऐसा जान पड़ता है कि यदि दो व्यक्तियोंमें परस्पर भगवत्कथासम्बन्धी सरस वार्तालाप छिड़ जाय तो वह अत्यन्त विशुद्ध - अन्तःकरणको शुद्ध करनेवाला होता है। आज तुम्हारे साथ जो माधव मासके माहात्यकी चर्चा चल रही है, यह वैशाख खानकी अपेक्षा भी अधिक पुण्य प्रदान करनेवाली है; क्योंकि माधव मासके देवता भगवान् श्रीविष्णु हैं [अतः उसका कीर्तन भगवान्‌का ही कीर्तन है]। जिसका जीवन धर्मके लिये और धर्म भगवान्‌की प्रसन्नताके लिये है तथा जो रातों-दिन पुण्योपार्जनमें ही लगा रहता है, उसीको इस पृथ्वीपर मैं वैष्णव मानता हूँ। राजन्! अब मैं वैशाख स्नानसे होनेवाले पुण्य फलका संक्षेपसे वर्णन करता हूँ; विस्तारके साथ सारा वर्णन तो मेरे पिता - ब्रह्माजी भी नहीं कर सकते। वैशाखमें डुबकी लगाने मात्रसे समस्त * यथा हरेर्नामभयेन भूप नश्यन्ति सर्वे दुरितस्य वृन्दाः । नूनं रवौ मेषगते विभाते स्नानेन तीर्थे च हरिस्तवेन ॥ (८७ । ३४)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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