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________________ ५८४ . अयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पणपुराण .......................... ..... ........... . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .. . . . . . . . . . . . आनेपर मनुष्योको पवित्र करनेवाले पुण्यजलसे परिपूर्ण असम्भव-सी बात है; तथापि इसपर विश्वास करो, गङ्गातीर्थ, नर्मदातीर्थ, यमुनातीर्थ अथवा सरस्वतीतीर्थमें क्योंकि यह ब्रह्माजीकी बतायी हुई बात है। धर्मकी गति सूर्योदयके पहले स्नान करके भगवान् मुकुन्दकी पूजा सूक्ष्म होती है, उसे समझनेमें बड़े-बड़े पुरुषोंको भी करनी चाहिये। इससे तपस्याका फल भोगनेके पश्चात् कठिनाई होती है। श्रीहरिकी शक्ति अचिन्त्य है, उनकी अक्षय स्वर्गको प्राप्ति होती है। भगवान् श्रीनारायण कृतिमें विद्वानोंको भी मोह हो जाता है। विश्वामित्र आदि अनामय-रोग-व्याधिसे रहित हैं, उन गोविन्ददेवकी क्षत्रिय थे, किन्तु धर्मका अधिक अनुष्ठान करनेके कारण आराधना करके तुम भगवान्का पद प्राप्त कर लोगे। वे ब्राह्मणत्वको प्राप्त हो गये; अतः धर्मकी गति अत्यन्त राजन् ! देवाधिदेव लक्ष्मीपति पापोंका नाश करनेवाले सूक्ष्म है। भूपाल ! तुमने सुना होगा, अजामिल अपनी है, उन्हें नमस्कार करके चैत्रकी पूर्णिमाको इस व्रतका धर्मपत्नीका परित्याग करके सदा पापके मार्गपर हो आरम्भ करना चाहिये। व्रत लेनेवाला पुरुष यम- चलता था। तथापि मृत्युके समय उसने केवल पुत्रके नियमोंका पालन करे, शक्तिके अनुसार कुछ दान दे, नेहवश 'नारायण' कहकर पुकारा-पुत्रका चिन्तन हविष्यात्र भोजन करे, भूमिपर सोये, ब्रह्मचर्यव्रतमें करके 'नारायण'का नाम लिया; किन्तु इतनेसे ही उसको दृढ़तापूर्वक स्थित रहे तथा हृदयमें भगवान् अत्यन्त दुर्लभ पदकी प्राप्ति हुई । जैसे अनिच्छापूर्वक भी श्रीनारायणका ध्यान करते हुए कृच्छ्र आदि तपस्याओंके यदि आगका स्पर्श किया जाय तो वह शरीरको जलाती द्वारा शरीरको सुखाये। इस प्रकार नियमसे रहकर जब ही है, उसी प्रकार किसी दूसरे निमित्तसे भी यदि वैशाखको पूर्णिमा आये, उस दिन मधु तथा तिल श्रीगोविन्दका नामोच्चारण किया जाय तो वह पापराशिको आदिका दान करे, श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको भक्तिपूर्वक भोजन भस्म कर डालता है।* जीव विचित्र हैं, जीवोंकी कराये, उन्हें दक्षिणासहित धेनु-दान दे तथा भावनाएँ विचित्र है, कर्म विचित्र है तथा कर्मोकी वैशाखस्रानके व्रतमें जो कुछ त्रुटि हुई हो उसकी शक्तियाँ भी विचित्र हैं। शास्त्रमें जिसका महान् फल पूर्णताके लिये ब्राह्मणोंसे प्रार्थना करे। भूपाल ! जिस बताया गया हो, वही कर्म महान् है [फिर वह अल्प प्रकार लक्ष्मीजी जगदीश्वर माधवकी प्रिया है, उसी प्रकार परिश्रम-साध्य हो या अधिक परिश्रम-साध्य] । छोटीमाधव मास भी मधुसूदनको बहुत प्रिय है। इस तरह सी वस्तुसे भी बड़ी-से-बड़ी वस्तुका नाश होता देखा उपर्युक्त नियमोंके पालनपूर्वक बारह वर्षातक जाता है। जरा-सी चिनगारीसे बोझ-के-बोझ तिनके वैशाखस्नान करके अन्तमें मधुसूदनकी प्रसन्नताके लिये स्वाहा हो जाते हैं। जो श्रीकृष्णके भक्त हैं, उनके अपनी शक्तिके अनुसार व्रतका उद्यापन करे। अम्बरीष ! अनजानमें किये हुए हजारों हत्याओंसे युक्त भयङ्कर पूर्वकालमें ब्रह्माजीके मुखसे मैंने जो कुछ सुना था, वह पातक तथा चोरी आदि पाप भी नष्ट हो जाते हैं। वीर ! सब वैशाख मासका माहात्म्य तुम्हें बता दिया। जिसके हृदयमें भगवान् श्रीविष्णुको भक्ति है वह विद्वान् अम्बरीषने पूछा-मुने! स्नानमें परिश्रम तो पुरुष यदि थोड़ा-सा भी पुण्य-कार्य करता है तो वह बहुत थोड़ा है, फिर भी उससे अत्यन्त दुर्लभ फलको अक्षय फल देनेवाला होता है। अतः माधव मासमें प्राप्ति होती है-मुझे इसपर विश्वास क्यों नहीं होता? माधवकी भक्तिपूर्वक आराधना करके मनुष्य अपनी मुझे मोह क्यों हो रहा है? मनोवाञ्छित कामनाओको प्राप्त कर लेता है-इस नारदजीने कहा-राजन् ! तुम्हारा संदेह ठीक विषयमें संदेह नहीं करना चाहिये। शास्त्रोक्त विधिसे है। थोड़े-से परिश्रमके द्वारा महान् फलकी प्राप्ति किया जानेवाला छोटे-से-छोटा कर्म क्यों न हो, उसके * अनिच्छयापि दहति स्पृष्टो हुतवहो यथा। तथा दहति गोविन्दनाम व्याजादपीरितम् ॥ (८७।८)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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