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________________ ५८० • अर्चयस्व हबीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . . . . . [ संक्षिप्त पयपुराण . . हृषीकेशको बड़ी शोभा हो रही है। राजन् ! श्रीहरि गयी है। भगवान् तपाये हुए सुवर्णके रंगका पीताम्बर निद्राके ऊपर शासन करनेवाले हैं, उनका नीचेका ओठ पहने हुए हैं और गरुड़की पीठपर विराजमान हैं। वे मुंगेकी तरह लाल है। नाभिसे कमल प्रकट होनेके भक्तोंकी पापराशिको दूर करनेवाले हैं। इस प्रकार कारण उन्हें पद्मनाभ कहते हैं। वे अत्यन्त तेजस्वी श्रीहरिके सगुण स्वरूपका ध्यान करना चाहिये। . किरीटके कारण बड़ी शोभा पा रहे हैं। श्रीवत्सके चिह्नने राजन् ! इस प्रकार मैंने तुम्हें दो तरहका ध्यान उनकी छविको और बढ़ा दिया है। श्रीकेशवका बतलाया है। इसका अभ्यास करके मनुष्य मन, वाणी वक्षःस्थल कौस्तुभमणिसे अलङ्कत है। वे जनार्दन सूर्यके तथा शरीरद्वारा होनेवाले सभी पापोंसे मुक्त हो जाता है। समान तेजस्वी कुण्डलोद्वारा अत्यन्त देदीप्यमान हो रहे वह जिस-जिस फलको प्राप्त करना चाहता है, वह सब हैं। केयूर, हार, कड़े, कटिसूत्र, करधनी तथा अंगूठियोंसे उसे निश्चितरूपसे मिल जाता है, देवता भी उसका आदर उनके श्रीअङ्ग विभूषित हैं, जिससे उनकी शोभा बहुत बढ़ करते हैं तथा अन्तमें वह विष्णुलोकको प्राप्त होता है। । भगवद्भक्तिके लक्षण तथा वैशाख-स्नानकी महिमा अम्बरीष बोले-मुनिश्रेष्ठ ! आपने बड़ी अच्छी नाम 'वाचिकी' भक्ति है। व्रत, उपवास और नियमोंके बात बतायी, इसके लिये आपको धन्यवाद है ! आप पालन तथा पाँचों इन्द्रियोंके संयमद्वारा की जानेवाली सम्पूर्ण लोकोपर अनुग्रह करनेवाले हैं। आपने भगवान् आराधना [शरीरसे साध्य होनेके कारण] 'कायिकी' विष्णुके सगुण एवं निर्गुण ध्यानका वर्णन किया; अब भक्ति कही गयी है; यह सब प्रकारकी सिद्धियोंका आप भक्तिका लक्षण बतलाइये। साधुओपर कृपा सम्पादन करनेवाली है। पाद्य, अयं आदि उपचार, करनेवाले महर्षे! मुझे यह समझाइये कि किस नृत्य, वाद्य, गीत, जागरण तथा पूजन आदिके द्वारा जो मनुष्यको कब, कहाँ, कैसी और किस प्रकार भक्ति भगवान्की सेवा की जाती है, उसे लौकिकी भक्ति कहते करनी चाहिये। हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदके जप, संहिताओंके सूतजी कहते है-राजाओंमें श्रेष्ठ महाराज अध्ययन आदि तथा हविष्यकी आहुति-यज्ञ-यागादिके अम्बरीषके ये वचन सुनकर देवर्षि नारदजीको बड़ी द्वारा की जानेवाली उपासनाका नाम 'वैदिकी' भक्ति है। प्रसन्नता हुई। वे उनसे बोले-राजन् ! सुनो- विज्ञ पुरुषोंने अमावस्या, पूर्णिमा तथा विषुव' (तुला और भगवानकी भक्ति समस्त पापोंका नाश करनेवाली है, मैं मेषकी संक्रान्ति) आदिके दिन जो याग करनेका आदेश तुमसे उस भक्तिका भलीभाँति वर्णन करता है। भक्ति दिया है, वह वैदिकी भक्तिका साधक है। अनेकों प्रकारकी बतायी गयी है-मानसी, वाचिकी, अब मैं योगजन्य आध्यात्मिकी भक्तिका भी वर्णन कायिकी, लौकिकी, वैदिकी तथा आध्यात्मिकी । ध्यान, करता हूँ, सुनो। योगज भक्तिका साधक सदा अपनी धारणा, बुद्धि तथा वेदार्थके चिन्तनद्वारा जो विष्णुको इन्द्रियोको संयममें रखकर प्राणायामपूर्वक ध्यान किया प्रसन्न करनेवाली भक्ति की जाती है, उसे 'मानसी भक्ति करता है। विषयोंसे अलग रहता है। वह ध्यानमें देखता कहते है। दिन-रात अविश्रान्त भावसे वेदमन्बोंके है-भगवानका मुख अनन्त तेजसे उद्दीप्त हो रहा है, उच्चारण, जप तथा आरण्यक आदिके पाठद्वारा जो उनकी कटिके ऊपरी भागतक लटका हुआ यज्ञोपवीत भगवान्की प्रसत्रताका सम्पादन किया जाता है, उसका शोभा पा रहा है। उनका शुक्ल वर्ण है, चार भुजाएं हैं। १-अब दिन और रात बराबर हों, उस दिन विशुव-योग होता है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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