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________________ पातालखण्ड ] • श्रीराधा-कृष्ण और उनके पार्षदोंका वर्णन . बनी हुई है। उसके ऊपर सोनेके आभूषणोंसे विभूषित समूचे घरके भीतरी भागमें प्रकाश फैला रहे थे। नग्न सुवर्णपीठ है, जिसके ऊपर अंशुभद्र आदि हजारों शिशुके रूपमें भगवान्की झाँकी करके नारदजोको बड़ा ग्वालबाल विराजते हैं। वे सब-के-सब एक समान सौंग, वीणा, वेणु, बेतकी छड़ी, किशोरावस्था, मनोहर वेष, सुन्दर आकार तथा मधुर स्वर धारण करते हैं। वे भगवान्के गुणोंका चिन्तन करते हुए उनका गान करते हैं तथा भगवत्-प्रेममय रससे विह्वल रहते हैं। ध्यानमें स्थिर होनेके कारण वे चित्र-लिखित-से जान पड़ते है। उनका रूप आश्चर्यजनक सौन्दर्यसे युक्त होता है। वे सदा आनन्दके आँसू बहाया करते हैं। उनके सम्पूर्ण अङ्गोंमें रोमाश छाया रहता है तथा वे योगीश्वरोकी भांति सदा विस्मयविमुग्ध रहते हैं। अपने थनोंसे दूध बहानेवाली असंख्य गौएँ उन्हें घेरे रहती है। वहाँसे बाहरके भागमें एक सोनेको चहारदिवारी है, जो करोड़ सूर्योक समान देदीप्यमान दिखायी देती है। उसके चारों ओर बड़े-बड़े उद्यान हैं, जिनकी मनोहर सुगन्ध सब ओर फैली रहती है। - . ---- जो मन और इन्द्रियोको वशमे रखते हुए सदा .. पवित्र भावसे श्रीकृष्णचरित्रका भक्तिपूर्वक पाठ या हर्ष हुआ। वे भगवान्के प्रिय भक्त तो थे ही, गोपति श्रवण करता है, उसे भगवान् श्रीकृष्णकी प्राप्ति होती है। नन्दजीसे बातचीत करके सब बातें बताने लगे, पार्वतीजीने पूछा-भगवन् ! अत्यन्त मोहक 'नन्दरायजी ! भगवान्के भक्तोंका जीवन अत्यन्त दुर्लभ रूप धारण करनेवाले श्रीकृष्णने गोपियोंके साथ किन- होता है। आपके इस बालकका प्रभाव अनुपम है, इसे किन विशेषताओके कारण क्रीड़ा की, इस रहस्यका कोई नहीं जानता। शिव और ब्रह्मा आदि देवता भी मुझसे वर्णन कीजिये। इसके प्रति सनातन प्रेम चाहते हैं। इस बालकका चरित्र - महादेवजीने कहा-देवि ! एक समयकी यात सवको हर्ष प्रदान करनेवाला होगा। भगवद्भक्त पुरुष है, मुनिश्रेष्ठ नारद यह जानकर कि श्रीकृष्णका प्राकटर इस बालककी लीलाओका श्रवण, गायन और हो चुका है, वीणा बजाते हुए नन्दजीके गोकुलमें पहुँचे। अभिनन्दन करते हैं। आपके पुत्रका प्रभाव अचिन्त्य है। वहाँ जाकर उन्होंने देखा महायोगमायाके स्वामी जिनका इसके प्रति हार्दिक प्रेम होगा, वे संसार-समुद्रसे सर्वव्यापी भगवान् अच्युत बालकका स्वाँग धारण किये तर जायेंगे। उन्हें इस जगत्की कोई बाधा नहीं सतायेगी; नन्दजीके घरमें कोमल बिछौनोंसे युक्त सोनेके पलंगपर अतः नन्दजी ! आप भी इस बालकके प्रति निरन्तर सो रहे हैं और गोपकन्याएँ बड़ी प्रसन्नताके साथ निरन्तर अनन्य भावसे प्रेम कीजिये।' उनकी ओर निहार रही हैं। भगवानका श्रीविग्रह अत्यन्त यों कहकर मुनिश्रेष्ठ नारदजी नन्दके घरसे निकले। सुकुमार था। उनके काले-काले धुंघराले बाल सब ओर नन्दने भी भगवबुद्धिसे उनका पूजन किया और प्रणाम बिखरे हुए थे। किशित्-किशित् मुसकराहटके कारण करके उन्हें विदा दी। तदनन्तर वे महाभागवत मुनि उनके दो-एक दाँत दिखायी दे जाते थे। वे अपनी प्रभासे मन-ही-मन सोचने लगे, 'जब भगवान्का अवतार हो
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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