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________________ ५५० • अर्जयस्व हबीकेशं यदीच्छसि पर पदम् . [ संक्षिप्त परापुराण . . . . . . . . . . . सीतापतिके मुखचन्द्रका अवलोकन करते, वे एकटक अश्वमेध यज्ञोंका अनुष्ठान किया तथा त्रिभुवनमें अत्यन्त दृष्टि से देखते ही रह जाते थे; उनकी आँखें स्थिर हो जाती दुर्लभ और अनुपम कीर्ति प्राप्त की। थीं। जिनके हृदयमें चिरन्तन कालसे भगवान्के दर्शनकी वात्स्यायनजी ! आपने जो श्रीरामचन्द्रजीको उत्तम लालसा लगी हुई थी, वे लोग महाराज श्रीरामको कथाके विषयमें प्रश्न किया था, उसका उपर्युक्त प्रकारसे सीताके साथ सरयूकी ओर जाते देखकर आनन्दमें मग्न वर्णन किया गया। अश्वमेध यज्ञका वृत्तान्त मैंने हो गये। अनेकों नट और गन्धर्व उज्ज्वल यशका गान विस्तारके साथ कहा है; अब आप और क्या पूछना करते हुए सर्वलोक-नमस्कृत महाराजके पीछे-पीछे गये। चाहते हैं? जो मनुष्य भगवान्के प्रति भक्ति रखते हुए नदीका मार्ग झुंड-के-झुंड स्त्री-पुरुषोंसे भरा था। उसीसे श्रीरामचन्द्रजीके इस उत्तम यज्ञका श्रवण करता है, वह चलकर वे शीतल एवं पवित्र जलसे परिपूर्ण सरयू नदीके ब्रह्महत्या-जैसे पापको भी क्षणभरमें पार करके सनातन समीप पहुँचे, वहाँ पहुँचकर कमलनयन श्रीरामने सीताके ब्रह्मको प्राप्त होता है। इस कथाके सुननेसे पुत्रहीन साथ सरयूके पावन जलमें प्रवेश किया। तत्पशात् पुरुषको पुत्रोंकी प्राप्ति होती है, धनहीनको धन मिलता है, भगवान्के चरणोंकी धूलिसे पवित्र हुए उस विश्ववन्दित रोगी रोगसे और कैदमें पड़ा हुआ मनुष्य बन्धनसे जलमें सम्पूर्ण राजा तथा साधारण जन-समुदायके लोग छुटकारा पा जाता है। जिनकी कथा सुननेसे दुष्ट भी उतरे। धर्मात्मा श्रीरामचन्द्रजी सरयूके पावन चाण्डाल भी परम पदको प्राप्त होता है, उन्हीं जलप्रवाहमें सीताके साथ चिरकालतक क्रौड़ा करके श्रीरामचन्द्रजीको भक्ति में यदि श्रेष्ठ ब्राह्मण प्रवृत्त हो तो बाहर निकले। फिर उन्होंने धौत-वस्त्र धारण किया, उसके लिये क्या कहना? महाभाग श्रीरामका स्मरण किरीट और कुण्डल पहने तथा केयूर और कणकी करके पापी भी उस परम पद या परम स्वर्गको प्राप्त होते शोभाको भी अपनाया। इस प्रकार वस्त्र और हैं, जो इन्द्र आदि देवताओंके लिये भी दुर्लभ है। आभूषणोंसे विभूषित होकर करोड़ों कन्दर्पोकी सुषमा संसारमें वे ही मनुष्य धन्य हैं, जो श्रीरघुनाथजीका स्मरण धारण करनेवाले श्रीरामचन्द्रजी अत्यन्त सुशोभित हुए। करते हैं ! वे लोग क्षणभरमें इस संसार-समुद्रको पार उस समय कितने ही राजे-महाराजे उनकी स्तुति करने करके अक्षय सुखको प्राप्त होते हैं। इस अश्वमेधको लगे। महामना श्रीरघुनाथजीने सरयूके पावन तटपर कथाको सुनकर वाचकको दो गौ प्रदान करे तथा वस्त्र, उत्तम वर्णसे सुशोभित यज्ञयूपको स्थापना करके अपनी अलङ्कार और भोजन आदिके द्वारा उसका तथा उसकी भुजाओंके बलसे तीनों लोकोंकी अद्भुत सम्पत्ति प्राप्त पत्रीका सत्कार करे। यह कथा ब्रह्महत्याको राशिका को, जो दूसरे नरेशोंके लिये सर्वथा दुर्लभ है। इस तरह विनाश करनेवाली है। जो लोग इसका श्रवण करते हैं, भगवान् श्रीरामने जनकनन्दिनी सीताके साथ तीन वे देवदुर्लभ परम पदको प्राप्त होते हैं। की वृन्दावन और श्रीकृष्णका माहात्म्य ऋषियोंने कहा-सूतजी ! महाराज! हमने अपने पतिको प्रेमपूर्वक नमस्कार करके इस प्रकार आपके मुखसे रामाश्वमेधकी कथा अच्छी तरह सुन ली; बोली-'प्रभो! वृन्दावनका माहात्म्य अथवा अद्भुत अव परमात्मा श्रीकृष्णके माहात्म्यका वर्णन कीजिये। रहस्य क्या है, उसे मैं सुनना चाहती हूँ?' सूतजी बोले-महर्षियो । जिनका हृदय भगवान् महादेवजीने कहा-देवि ! मैं यह बता चुका हूँ शङ्करके प्रेममें डूबा रहता है, वे पार्वती देवी एक दिन कि वृन्दावन ही भगवानका सबसे प्रियतम धाम है। यह
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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