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________________ पातालखण्ड ] . शनके बाणसे लवकी मूछा, कुशका रणक्षेत्रमें आना, कुश और लवको विजय . ५३१ मारा और पुष्कलके हाथका धनुष काट डाला। फिर जब गया और वह महावीरशिरोमणि मूर्छित होकर पृथ्वीपर वे दूसरे धनुषपर प्रत्यशा चढ़ाने लगे तबतक उस उद्धत गिर पड़ा। पुष्कलको मूर्छित होकर गिरा देख पवनएवं बलवान् वीरने हँसते-हंसते उनके रथको भी तोड़ कुमारने उठा लिया और श्रीरघुनाथजीके भ्राता शत्रुघ्रको दिया। महात्मा लवके द्वारा अपने धनुषको छिन्न-भिन्न अर्पित कर दिया। उन्हें अचेत देख शत्रुघ्नका चित्त हुआ देख पुष्कल क्रोधमें भर गये और उस महाबली शोकसे विट्ठल हो गया। उन्होंने क्रोधमें भरकर वीरके साथ बड़े वेगसे युद्ध करने लगे। लवने हनुमानजीको लवका वध करनेकी आज्ञा दी। हनुमानजी लवमात्रमें तरकशसे तीर निकाला, जो विषैले साँपकी भी कुपित होकर महाबली लवको युद्धमें परास्त करनेके भांति जहरीला था। उसने वह तेजस्वी बाण क्रोधपूर्वक लिये बड़े वेगसे गये और उनके मस्तकको लक्ष्य करके छोड़ा। धनुषसे छूटते ही वह पुष्कलको छातीमें धंस उन्होंने वृक्षका प्रहार किया। वृक्षको अपने ऊपर आते देख लवने अपने बाणोंसे उसको सौ टुकड़े कर डाले। तब हनुमानजीने बड़ी-बड़ी शिलाएँ उखाड़कर बड़े वेगसे मिका लवके मस्तकपर फेकीं। शिलाओंका आधात पाकर उन्होंने अपना धनुष ऊपरको उठाया और बाणोंकी वर्षासे शिलाओंको चूर्ण कर दिया। फिर तो हनुमान्जीके क्रोधकी सीमा न रही; उन्होंने बलवान् लवको पूँछमें लपेट लिया। यह देख लवने अपनी माता जानकीका स्मरण किया और हनुमानजीको पूँछपर मुकेसे मारा। इससे उनको बड़ी व्यथा हुई और उन्होंने लवको बन्धनसे मुक्त कर दिया। पूँछसे छूटनेपर उस बलवान् वीरने हनुमान्जीपर बाणोंको बौछार आरम्भ कर दी। जिससे उनके समस्त शरीरमें बड़ी पीड़ा होने लगी। उन्होंने लवकी बाणवर्षाको अपने लिये अत्यन्त दुःसह समझा और समस्त वीरोंके देखते-देखते वे मूर्छित होकर रणभूमिमे गिर पड़े। फिर लव अन्य सब राजाओंको M मारने लगे। वे बाण छोड़ने में बड़े निपुण थे। शत्रुनके बाणसे लवकी मूर्छा, कुशका रणक्षेत्रमें आना, कुश और लवकी विजय तथा सीताके प्रभावसे शत्रुघ्न आदि एवं उनके सैनिकोंकी जीवन-रक्षा शेषजी कहते हैं-मुने ! वायुनन्दन हनुमान्जीके 'श्रीरामचन्द्रजौके सदृश स्वरूप धारण करनेवाला यह मूर्छित होनेका समाचार सुनकर शत्रुघ्नको बड़ा शोक बालक कौन है? इसका नीलकमल-दलके समान हुआ। अब वे स्वयं सुवर्णमय रथपर विराजमान हुए श्याम शरीर कितना मनोहर है! हो न हो, यह और श्रेष्ठ वीरोंको साथ ले युद्धके लिये उस स्थानपर विदेहकुमारी सीताका ही पुत्र है। भीतर-ही-भीतर ऐसा गये, जहाँ विचित्र रणकुशल वीरवर लय मौजूद थे। उन्हें सोचकर वे बालकसे बोले-'वत्स ! तुम कौन हो, जो देखकर शत्रुघ्नने मन-ही-मन विचार किया कि रणभूमिमें हमारे योद्धाओंको गिरा रहे हो? तुम्हारे संप पु० १८
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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