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________________ पातालखण्ड ] . सीताका अपवाद करनेवाले धोबीके पूर्वजन्मका कृतान्त • बड़े बुद्धिमान् और बलवान् होंगे तथा समस्त राजाओंको श्रीमान् राम महर्षि विश्वामित्रके साथ भाई लक्ष्मणसहित अपने वशमें रखते हुए सीताके साथ ग्यारह हजार हाथमें धनुष लिये मिथिला पधारेंगे। उस समय वहाँ वर्षातक राज्य करेंगे। धन्य हैं वे जानकीदेवी और धन्य एक ऐसे धनुषको, जिसका धारण करना दूसरोंके लिये है श्रीराम, जो एक-दूसरेको प्राप्त होकर इस पृथ्वीपर कठिन है, देखकर वे उसे तोड़ डालेंगे और अत्यन्त आनन्दपूर्वक विहार करेंगे।' मनोहर रूपवाली जनककिशोरी सीताको अपनी धर्मतोतेके उस जोड़ेको ऐसी बातें करते देख सौताने पत्नीके रूपमें ग्रहण करेंगे। फिर उन्हींके साथ सोचा कि 'ये दोनों मेरे ही जीवनकी मनोहर कथा कह श्रीरामचन्द्रजी अपने विशाल साम्राज्यका पालन करेंगे।' रहे हैं इन्हें पकड़कर सभी बातें पूहूँ।' ऐसा विचार कर ये तथा और भी बहुत-सी बातें वहाँ रहते समय हमारे उन्होंने अपनी सखियोंसे कहा, "यह पक्षियोंका जोड़ा सुनने में आयी हैं। सुन्दरी ! हमने तुम्हें सब कुछ बता बहुत सुन्दर है, तुमलोग चुपकेसे जाकर इसे पकड़ दिया। अब हम जाना चाहते हैं, हमें छोड़ दो। लाओ।' सखियाँ उस पर्वतपर गयीं और दोनों सुन्दर कानोंको अत्यन्त मधुर प्रतीत होनेवाली पक्षियोंकी पक्षियोंको पकड़ लायीं। लाकर उन्होंने सीताको अर्पण ये बातें सुनकर सीताने उन्हें मनमें धारण किया और पुनः कर दिया। सीता उन पक्षियोंसे बोलीं-'तुम दोनों बड़े उन दोनोंसे इस प्रकार पूछा-'राम कहाँ होंगे? किसके सुन्दर हो; देखो, डरना नहीं। बताओ, तुम कौन हो और पुत्र हैं और कैसे वे दुलह-वेषमें आकर जानकीको ग्रहण कहाँसे आये हो? राम कौन हैं? और सीता कौन है ? करेंगे? तथा मनुष्यावतारमें उनका श्रीविग्रह कैसा तुम्हें उनकी जानकारी कैसे हुई? इस सारी बातोंको होगा?' उनके प्रश्न सुनकर शुकी मन-ही-मन जान गयी जल्दी-जल्दी बताओ। मेरी ओरसे तुम्हें भय नहीं होना कि ये ही सीता हैं। उन्हें पहचानकर वह सामने आ उनके चाहिये।' सीताके इस प्रकार पूछनेपर दोनों पक्षी सब चरणोपर गिर पड़ी और बोली-'श्रीरामचन्द्रजीका मुख बातें बताने लगे-'देवि ! वाल्मीकि नामसे प्रसिद्ध एक कमलको कलोके समान सुन्दर होगा। नेत्र बड़े-बड़े बहुत बड़े महर्षि हैं, जो धर्मज्ञोंमें श्रेष्ठ माने जाते हैं। हम तथा खिले हुए पङ्कजकी शोभाको धारण करनेवाले दोनों उन्हीक आश्रम में रहते हैं। महर्षिने रामायण नामका होंगे। नासिका ऊँची, पतली और मनोहारिणी होगी। एक ग्रन्थ बनाया है, जो सदा ही मनको प्रिय जान पड़ता दोनों भौहे सुन्दर हंगसे परस्पर मिली होनेके कारण है। उन्होंने शिष्योंको उस रामायणका अध्ययन कराया मनोहर प्रतीत होंगी। भुजाएँ घुटनोंतक लटकी हुई एवं है। तथा प्रतिदिन वे सम्पूर्ण प्राणियोंके हितमें सलय मनको लुभानेवाली होंगी। गला शङ्खके समान सुशोभित रहकर उस रामायणके पद्योंका चिन्तन किया करते हैं। और छोटा होगा। वक्षःस्थल उत्तम, चौड़ा एवं रामायणका कलेवर बहुत बड़ा है। हमलोगोंने उसे शोभासम्पन्न होगा। उसमें श्रीवत्सका चिह्न होगा । सुन्दर पूरा-पूरा सुना है। बारम्बार उसका गान और पाठ जाँघों और कटिभागकी शोभासे युक्त उनके दोनों घुटने सुननेसे हमें भी उसका अभ्यास हो गया है। राम और अत्यन्त निर्मल होंगे, जिनकी भक्तजन आराधना करेंगे। जानकी कौन हैं, इस बातको हम बताते हैं तथा इसको श्रीरघुनाथजीके चरणारविन्द भी परम शोभायुक्त होंगे; भी सूचना देते हैं कि श्रीरामके साथ क्रीडा करनेवाली और समस्त भक्तजन उनकी सेवामें सदा संलग्न रहेंगे। जानकीके विषयमें क्या-क्या बातें होनेवाली है; तुम श्रीरामचन्द्रजी ऐसा ही मनोहर रूप धारण करनेवाले हैं। ध्यान देकर सुनो। 'महर्षि ऋष्यभङ्गके द्वारा कराये हुए मैं उनका क्या वर्णन कर सकती हैं। जिसके सौ मुख हैं, पुत्रेष्टि-यज्ञके प्रभावसे भगवान् विष्णु राम, लक्ष्मण, वह भी उनके गुणोंका बखान नहीं कर सकता। फिर भरत और शत्रुघ्न-ये चार शरीर धारण करके प्रकट हमारे-जैसे पक्षीकी क्या बिसात है। परम सुन्दर रूप होंगे। देवाङ्गनाएँ भी उनकी उत्तम कथाका गान करेंगी। धारण करनेवाली लावण्यमयी लक्ष्मी भी जिनकी झाँकी
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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