SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 514
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१४ ********* - अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • PAGANORANJA श्रीरामचन्द्रजी इस अयोध्यापुरीके स्वामी हैं; उनके नगरमें निवास करनेवाले लोगोंका फिर इस संसारमें जन्म नहीं U होगा। जन्म न होनेपर यहाँ दूध पीनेका अवसर कैसे मिलेगा। इसलिये मेरे लाल ! तू इस दुर्लभ दूधका बारम्बार पान कर ले। जो लोग श्रीरामका भजन, ध्यान और कीर्तन करेंगे, उन्हें भी कभी माताका दूध सुलभ न होगा।' इस तरह श्रीरामचन्द्रजीके यशरूपी अमृतसे भरे हुए वचन सुनकर वे गुप्तचर बहुत प्रसन्न हुए और दूसरे किसी भाग्यशाली पुरुषके घरमें गये। वे पृथक्-पृथक् विभिन्न घरोंमें जाकर श्रीरामके यशका श्रवण करते थे। एक घरकी बात है, एक गुप्तचर श्रीरघुनाथजीका यश सुननेकी इच्छासे वहाँ आया और क्षणभर रुका रहा। उस घरकी एक सुन्दरी नारी, जिसके नेत्र बड़े मनोहर थे, पलंगपर बैठे हुए कामदेवके समान सुन्दर अपने पतिकी ओर देखकर बोली- 'नाथ! आप मुझे ऐसे लगते हैं, मानो साक्षात् श्रीरघुनाथजी हो।' प्रियतमाके ये मनोहर वचन सुनकर उसके पतिने कहा - "प्रिये ! मेरी बात सुनो, तुम साध्वी हो; अतः तुमने जो कुछ कहा है, वह मनको बहुत ही प्रिय लगनेवाला है। पतिव्रताओंके योग्य [ संक्षिप्त पद्यपुराण *********** ही यह बात है। सती नारीके लिये उसका पति श्रीरघुनाथजीका ही स्वरूप है; परन्तु कहाँ मेरे जैसा मन्दभाग्य और कहाँ महाभाग्यशाली श्रीराम कहाँ कीड़ेकी-सी हस्ती रखनेवाला मैं एक तुच्छ जीव और कहाँ ब्रह्मादि देवताओंसे भी पूजित परमात्मा श्रीराम। कहाँ जुगनू और कहाँ सूर्य ? कहाँ पामर पतिंगा और कहाँ गरुड़। कहाँ बुरे रास्तेसे बहनेवाला गलियोंका गेंदला पानी और कहाँ भगवती भागीरथीका पावन जल। इसी प्रकार कहाँ मैं और कहाँ भगवान् श्रीराम, जिनके चरणोंकी धूलि पड़नेसे शिलामयी अहल्या क्षणभरमें भुवन मोहन सौन्दर्यसे युक्त युवती बन गयी !' इसी समय दूसरा गुप्तचर दूसरेके घरमें कुछ और ही बातें सुन रहा था। वहाँ कोई कामिनी पलंगपर बैठकर वीणा बजाती हुई अपने पतिके साथ *4611 MUCOS श्रीरामचन्द्रजीकी कीर्तिका गान कर रही थी'स्वामिन्! हमलोग धन्य हैं, जिनके नगरके स्वामी साक्षात् भगवान् श्रीराम हैं, जो अपनी प्रजाको पुत्रोंकी भाँति पालते और उसके योगक्षेमकी व्यवस्था करते हैं। उन्होंने बड़े-बड़े दुष्कर कर्म किये हैं, जो दूसरोंके लिये
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy