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________________ पातालखण्ड] • गुप्तचरोंसे अपवादकी बात सुनकर सीताको वनमें छोड़ आनेका आदेश. ५१३ .................................................................................................. गुप्तचरोंसे अपवादकी बात सुनकर श्रीरामका भरतके प्रति सीताको वनमें छोड़ आनेका आदेश और भरतकी मूर्छा वात्स्यायनजी बोले-भगवन् ! पहले आप नहीं है। जिस स्त्रीको आप-जैसे स्वामी मिले, जिनके बता चुके हैं कि श्रीरामचन्द्रजीने एक धोबीके निन्दा चरणोंकी देवता भी स्तुति करते हैं; उसको सभी कुछ करनेपर सीताको अकेली वनमें छोड़ दिया। फिर कहाँ प्राप्त है, कुछ भी बाकी नहीं है। फिर भी यदि आप उनके पुत्र हुए, कहाँ उन्हें धनुष-धारणकी क्षमता प्राप्त आग्रहपूर्वक मुझसे मेरे मनकी अभिलाषा पूछ रहे है तो हुई तथा कहाँ उन्होंने अस्त्रविद्याकी शिक्षा पायी, जिससे मैं आपके सामने सच्ची बात कहती हूँ नाथ ! बहुत दिन वे श्रीरामचन्द्रजीके अश्वका अपहरण कर सके? हुए, मैंने लोपामुद्रा आदि पतिव्रताओंके दर्शन नहीं शेषजीने कहा-मुने! श्रीरामचन्द्रजी धर्मपूर्वक किये। मेरा मन इस समय उन्हींको देखनेके लिये सारी पृथ्वीका पालन करते हुए अपनी धर्मपत्नी महारानी उत्कण्ठित है। वे सब तपस्याकी भंडार है, मैं वहाँ जाकर सौता और भाइयोंके साथ अयोध्याका राज्य करने लगे। वस्त्र आदिसे उनकी पूजा करूंगी और उन्हें चमकीले रत्न इसी बीच में सीताजीने गर्भ धारण किया। धीरे-धीरे पाँच तथा आभूषण भेट दूँगी; यही मेरा मनोरथ है । प्रियतम ! महीने बीत गये। एक दिन श्रीरामने सीताजीसे पूछा- इसे पूर्ण कीजिये।। 'देवि ! इस समय तुम्हारे मनमें किस बातकी अभिलाषा इस प्रकार सीताजीके मनोहर वचन सुनकर है, बताओ; मैं उसे पूर्ण करूँगा।' श्रीरामचन्द्रजीको बड़ी प्रसन्नता हुई और वे अपनी प्रियतमासे बोले-'जनककिशोरी ! तुम धन्य हो ! कल प्रातःकाल जाना और उन तपस्विनी स्त्रियोंका दर्शन करके कृतार्थ होना । श्रीरामचन्द्रजीके ये वचन सुनकर सीताजीको बड़ा हर्ष हुआ। वे सोचने लगीं, कल प्रातःकाल मुझे तपस्विनी देवियोंके दर्शन होंगे। तदनन्तर, उस रातमें श्रीरामचन्द्रजीके भेजे हुए गुप्तचर नगरमें गये, उन्हें भेजनेका उद्देश्य यह था कि वे लोग घर-घर जाकर महाराजकी कीर्ति सुनें और देखें [जिससे उनके प्रति लोगोंके मनमें क्या भाव हैं, इसका पता लग सके । वे दूत आधी रातके समय चुपकेसे गये। उन्हें प्रतिदिन श्रीरामचन्द्रजीकी मनोहर कथाएँ सुननेको मिलती थीं। उस दिन वे एक धनाढ्यके विशाल भवनमें प्रविष्ट हुए और थोड़ी देरतक वहाँ रुककर श्रीरामचन्द्रजीके सुयशका श्रवण करने लगे। वहाँ सुन्दर - नेत्रोवाली कोई युवती बड़े हर्षमें भरकर अपने नन्हे-से शिशुको दूध पिला रही थी। उसने बालकको लक्ष्य सीताजीने कहा-प्राणनाथ ! आपकी कृपासे करके बड़ी मनोहर बात कही-'बेटा ! तू जी भरकर मैंने सभी उत्तम भोग भोगे हैं और भविष्यमें भी भोगती मेरा मीठा दूध पी ले, पीछे यह तेरे लिये दुर्लभ हो रहँगी। इस समय मेरे मन में किसी विषयकी इच्छा शेष जायगा। नील कमल-दलके समान श्याम वर्णवाले NP
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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