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________________ पातालखण्ड ] वाल्मीकि आश्रमपर लवद्वारा घोड़ेका बँधना और अश्वरक्षकोंकी भुजाओंका काटा जाना ....................... ********** ********** कसकर छातीसे लगा लिया और आनन्दके आँसुओंसे उनका मस्तक भिगोते हुए कहा-' - 'राजन् ! तुम धन्य ************ शेषजी कहते हैं - एक दिन प्रातःकाल वह अश्व गङ्गाके किनारे महर्षि वाल्मीकिके श्रेष्ठ आश्रमपर जा पहुँचा, जहाँ अनेकों ऋषि-मुनि निवास करते थे और अग्निहोत्रका धुंआ उठ रहा था। जानकीजीके पुत्र लव अन्य मुनिकुमारोंके साथ प्रातः कालीन हवन कर्म करनेके उद्देश्यसे उसके योग्य समिधाएँ लानेके लिये ५११ कर उठ खड़े हुए और मनोहर रूपधारी श्रीरघुनाथजोकी झाँकी करके उनके चरणोंमें पड़ गये। भगवान्ने उनसे कुशल पूछी तो वे सुखी होकर बोले- 'भगवन् ! आपकी कृपासे सब कुशल है।' राजा सुरथने सेवकपर कृपा करनेके लिये आये हुए श्रीरामचन्द्रजीका दर्शन करके उन्हें प्रसन्नतापूर्वक अपना सारा राज्य समर्पित कर दिया और कहा - ' रघुनन्दन ! मैंने आपके साथ अन्याय किया है, उसे क्षमा कीजिये।' हो। आज तुमने बड़ा भारी पराक्रम कर दिखाया कपिराज हनुमान् सबसे बढ़कर बलवान् हैं, किन्तु इनको भी तुमने बाँध लिया।' यह कहकर श्रीरघुनाथजीने वानरश्रेष्ठ हनुमान्‌को बन्धनसे मुक्त किया तथा जितने योद्धा मूर्च्छित पड़े थे, उन सबपर अपनी दयादृष्टि डालकर उन्हें जीवित कर दिया। असुरोंका विनाश करनेवाले श्रीरामकी दृष्टि पड़ते ही वे सब मूर्च्छा त्याग =★ वाल्मीकि आश्रमपर लवद्वारा घोड़ेका बँधना और अश्वरक्षकोंकी भुजाओंका काटा जाना श्रीराम बोले- राजन् ! क्षत्रियोंका यह धर्म ही है। उन्हें स्वामीके साथ भी युद्ध करना पड़ता है। तुमने संग्राममें समस्त वीरोंको सन्तुष्ट करके बड़ा उत्तम कार्य किया । भगवान् के ऐसा कहनेपर राजा सुरथने अपने पुत्रोंके साथ उनका पूजन किया। तदनन्तर, श्रीरामचन्द्रजी तीन दिनतक वहाँ ठहरे रहे। चौथे दिन राजाकी अनुमति लेकर वे इच्छानुसार चलनेवाले पुष्पक विमानद्वारा वहाँसे चले गये। उनका दर्शन करके सबको बड़ा विस्मय हुआ और सब लोग उनकी मनोहारिणी कथाएँ कहने-सुनने लगे। इसके बाद महाबली राजा सुरथने चम्पकको अपने नगरके राज्यपर स्थापित कर दिया और स्वयं शत्रुघ्नके साथ जानेका विचार किया। शत्रुघ्नने अपना अश्व पाकर भेरी बजवायी तथा सब ओर नाना प्रकारके शङ्खोंकी ध्वनि करायी। तत्पश्चात् उन्होंने यज्ञ-संबन्धी अश्वको आगे जानेके लिये छोड़ा और स्वयं राजा सुरथके साथ अनेको देशोंमें भ्रमण करते रहे, किन्तु कहीं किसी भी बलवान्ने घोड़ेको नहीं पकड़ा। - वनमें गये थे। वहाँ सुवर्णपत्रसे चिह्नित उस यज्ञ सम्बन्धी अश्वको उन्होंने देखा, जो कुङ्कुम, अगरु और कस्तूरीकी दिव्य गन्धसे सुवासित था। उसे देखकर उनके मनमें कौतूहल पैदा हुआ और वे मुनिकुमारोंसे बोले- 'यह मनके समान शीघ्रगामी अश्व किसका है, जो दैवात् मेरे आश्रमपर आ पहुँचा है ? तुम सब लोग
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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