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पातालखण्ड ] • शत्रुनके द्वारा विद्युन्माली, उपदंष्ट्रका वध, उसके द्वारा चुराये हुए अवकी प्राप्ति . ४७० ............................................................... ..................... शेखी बघार रहा है? अच्छे योद्धा संग्राममें डींग नहीं विमानपर बैठे हुए शत्रुपक्षके योद्धा महान् दैत्योंको हाँकते, अपने अस्त्र-शस्त्रोंकी वर्षा करके पराक्रम दिखाते नखोंसे विदीर्ण करके मौतके घाट उतारने लगे। हैं। जिन्होंने सुहृद, सेना और सवारियोंसहित रावणका किन्हींको पूँछसे मार डाला, किन्हींको पैरोंसे कुचल संहार किया है, उन भगवान् श्रीरामके अश्वको लेकर तू डाला तथा कितनोंको उन्होंने दोनों हाथोंसे चीर डाला। कहाँ जा सकता है?
जहाँ-जहाँ वह विमान जाता था, वहीं-वहीं वायु-नन्दन - शेषजी कहते हैं-युद्धमे उन्मत्त होकर हनुमानजी इच्छानुसार रूप धारण करके प्रहार करते हुए लड़नेवाले वीर पुष्कलको ऐसी बाते करते देख ही दिखायी देते थे। इस प्रकार जब विमानपर बैठे हुए राक्षसराज विद्युन्मालीने उनकी छातीको लक्ष्य करके बड़े बड़े-बड़े योद्धा व्याकुल हो गये तब दैत्यराज उग्रर्दष्ट्रने वेगसे शक्तिका प्रहार किया। उसे आती देख पुष्कलने हनुमान्जीपर आक्रमण किया। उस दुर्बुद्धिने प्रज्वलित तेज धारवाले तीखे बाणोंसे उसके टुकड़े-टुकड़े कर अग्निके समान कान्ति धारण करनेवाले अत्यन्त तीखें डाले तथा अपने धनुषपर बहुत-से बाणोंका सन्धान त्रिशूलसे उनके ऊपर प्रहार किया; परन्तु महाबली किया, जो बड़े ही तीक्ष्ण और मनके समान वेगशाली हनुमानजीने अपने पास आये हुए उस त्रिशूलको अपने थे। वे बाण राक्षसकी छातीमें लगकर तुरंत ही रक्तकी मुंहमें ले लिया। यद्यपि वह सारा-सा-सारा लोहेका बना धारा बहाने लगे; पुष्कलके बाणप्रहारसे राक्षसपर मोह हुआ था, तथापि उसे दाँतोंसे चबाकर उन्होंने चूर्ण कर छा गया, उसके मस्तिष्कमें चक्कर आने लगा तथा वह डाला तथा उस दैत्यको कई तमाचे जड़ दिये। उनके अचेत होकर अपने कामग विमानसे धरतीपर गिर पड़ा। थप्पड़ोंकी मार खाकर राक्षसको बड़ी पीड़ा हुई और विद्युन्मालीका छोटा भाई उग्रर्दष्ट्र वहाँ मौजूद था। उसने उसने सम्पूर्ण लोकोंमें भय उत्पन्न करनेवाली मायाका अपने बड़े भाईको जब गिरते देखा तो उसे पकड़ लिया प्रयोग किया। उस समय चारों ओर घोर अन्धकार छा और पुनः विमानके भीतर ही पहुँचा दिया; क्योंकि गया, जिसमें कोई भी दिखायी नहीं देता था। इतने बड़े विमानके बाहर उसे शत्रुकी ओरसे अनिष्ट प्राप्त होनेकी जनसमुदायमें वहाँ अपना या पराया कोई भी किसीको आशङ्का थी। उसने बलवानोंमें श्रेष्ठ पुष्कलसे बड़े रोषके पहचान नहीं पाता था। चारों ओर नंगे, कुरूप, उग्र एवं साथ कहा- 'दुर्मते ! मेरे भाईको गिराकर अब तू कहाँ भयंकर दैत्य दिखायी देते थे। उनके बाल बिखरे हुए थे जायगा।' पुष्कलके नेत्र भी क्रोधसे लाल हो उठे थे। और मुख विकराल प्रतीत होते थे। उस समय सब लोग उग्रदंष्ट्र उपर्युक्त बातें कह ही रहा था कि उन्होंने दस व्याकुल हो गये, सबको एक-दूसरेसे भय होने लगा। बाणोंसे उस दुष्टको छातीमें वेगपूर्वक प्रहार किया। सभी यह समझकर कि कोई महान् उत्पात आया हुआ उनकी चोटसे व्यथित होकर दैत्यने एक जलता हुआ है, वहाँसे भागने लगे। तब महायशस्वी शत्रुघ्नजी रथपर त्रिशूल हाथमें लिया, जिससे अग्निकी तीन शिखाएँ उठ बैठकर वहाँ आये और भगवान् श्रीरामका स्मरण करके रही थीं। महावीर पुष्कलके हृदयमें वह भयङ्कर त्रिशूल उन्होंने अपने धनुषपर बाणोंका सन्धान किया। वे बड़े लगा और वे गहरी मूर्छाको प्राप्त हो रथपर गिर पड़े। पराक्रमी थे। उन्होंने मोहनास्त्रके द्वारा राक्षसी मायाका पुष्कलको मूर्च्छित जानकर पवननन्दन हनुमानजी नाश कर दिया और आकाशमें उस असुरको लक्ष्य मन-ही-मन क्रोधसे अस्थिर हो उठे और उस राक्षससे करके बाणोंकी बौछार आरम्भ कर दी। उस समय सारी बोले-'दुर्बुद्धे ! मैं युद्धके लिये उपस्थित हूँ, मेरे रहते दिशाएँ प्रकाशमय हो गयीं, सूर्यके चारों ओर पड़ा हुआ तू कहाँ जा सकता है ? तू घोड़ेका चोर है और सामने घेरा निवृत्त हो गया। सुवर्णमय पङ्खसे शोभा पानेवाले आ गया है, अतः मैं लातोंसे मारकर तेरे प्राण ले लूंगा।' लाखों बाण उस राक्षसके विमानपर पड़ने लगे। कुछ ही ऐसा कहकर हनुमान्जी आकाशमें स्थित हो गये और देरमे वह विमान टूटकर पृथ्वीपर गिर पड़ा। वह इतना