SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 469
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पातालखण्ड ] पुष्कलके द्वारा चित्राङ्गका वध, हनुमान्जीके चरण-प्रहारसे सुबाहुका शापोद्धार ****** श्रीरामचन्द्रजीकी सेवामें समर्पित कीजिये। महामते ! हम सभी पुत्र आपके किङ्कर हैं, हमें भी भगवान्‌की सेवामें अर्पण कीजिये ।' पुत्रोंके ये वचन सुनकर महाराज सुबाहुको बड़ा हर्ष हुआ। वे आज्ञा-पालनके लिये उद्यत हुए अपने वीर पुत्रोंसे इस प्रकार बोले- 'तुम सब लोग हाथोंमें हथियार ले नाना प्रकारके रथोंसे घिरकर कवच आदिसे सुसज्जित हो घोड़ेको यहाँ ले आओ। तत्पश्चात् मैं राजा शत्रुघ्नके पास चलूँगा।' शेषजी कहते हैं- - राजा सुबाहुके वचन सुनकर विचित्र, दमन, सुकेतु तथा अन्यान्य शूरवीर उनकी आशाका पालन करनेके लिये उद्यत हो नगरमें गये और उस मनोहर अश्वको, जो सफेद चैवरसे संयुक्त और स्वर्णपत्र आदिसे अलङ्कृत था, राजाके सामने ले आये। रत्नमाला आदिसे विभूषित और मनके समान वेगवान् उस अश्वमेध यज्ञके घोड़ेको लाया गया देख बुद्धिमान् राजाको बड़ी प्रसन्नता हुई। वे अपने पुत्र-पौत्रोंके साथ परम धार्मिक शत्रुघ्नजीके समीप पैदल ही चले। उन्हें अच्छी तरह मालूम था कि 'यह धन नश्वर है, जो लोग cou ४६९ इसमें आसक्त होते हैं; उन्हें यह दुःख ही देता है। यही सोचकर वे विनाशकी ओर जानेवाले धनका सदुपयोग करनेके लिये वहाँसे चले। निकट जाकर उन्होंने देखा – शत्रुघ्नजी श्वेतछत्रसे सुशोभित हैं तथा मन्त्री सुमतिसे भगवान् श्रीरामकी कथावार्ता पूछ रहे हैं। भयकी बात तो उन्हें छू भी नहीं सकी थी। वे वीरोचित शोभासे उद्दीप्त हो रहे थे | उनका दर्शन करके पुत्रसहित राजा सुबाहुने शत्रुघ्नजीके चरणों में प्रणाम किया और अत्यन्त हर्षमे भरकर कहा- 'मैं धन्य हो गया।' उस समय उनका मन एकमात्र श्रीरघुनाथजीके चिन्तनमें लगा हुआ था। शत्रुघ्नने देखा ये उद्धट राजा सुबाहु मेरे प्रेमी होकर मिलने आये हैं, तो वे आसनसे उठ खड़े हुए और सबके साथ बाँहें पसारकर मिले। विपक्षी वीरोंका नाश करनेवाले राजा सुबाहुने शत्रुनजीका भलीभाँति पूजन करके अत्यन्त हर्ष प्राप्त किया और गद्गद स्वरसे कहा'करुणानिधे! आज मैं पुत्र, कुटुम्ब और वाहनसहित धन्य हो गया; क्योंकि इस समय मुझे करोड़ों राजाओंद्वारा अभिवन्दित आपके चरणोंका दर्शन हो रहा है। मेरा पुत्र दमन अभी नादान है, इसीलिये इसने इस श्रेष्ठ अश्वको पकड़ लिया है; आप इसके अनीतिपूर्ण बर्तावको क्षमा कीजिये। जो सम्पूर्ण देवताओंके भी देवता हैं तथा जो लीलासे ही इस जगत्‌की सृष्टि, पालन और संहार करनेवाले हैं, उन रघुवंशशिरोमणि श्रीरामचन्द्रजीको यह नहीं जानता, इसीसे इसके द्वारा यह अपराध हो गया है। हमारे इस राज्यका प्रत्येक अङ्ग समृद्धिशाली है। सेना और सवारियोंकी संख्या भी बहुत बढ़ी चढ़ी है। ये सब श्रीरामकी सेवामें समर्पित हैं। मेरे पुत्र और हम भी आपहीके हैं। हम सब लोगोंके स्वामी भगवान् श्रीराम ही हैं। हम आपकी प्रत्येक आज्ञाका पालन करेंगे। मेरी दी हुई ये सभी वस्तुएं स्वीकार करके इन्हें सफल बनाइये। मेरे पास कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जो ग्रहण करनेके योग्य न हो श्रीरामजीके चरणारविन्दोंके मधुकर हनुमानजी कहाँ हैं ? उन्हींकी कृपासे मैं राजाधिराज भगवान् रामका दर्शन
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy