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________________ पातालखण्ड] . सुमतिका शत्रुघ्नसे नीलाचलनिवासी भगवान् पुरुषोत्तमकी महिमाका वर्णन . 447 तीर्थोंके सेवनसे उनका शरीर पवित्र हो गया था। कलियुग कभी अपना प्रभाव नहीं डाल पाता। जहाँके महाबाहु राजा रत्नग्रीवने उन्हें देख मस्तक झुकाकर पत्थर भी चक्रसे चिह्नित होते हैं, मनुष्य तो चक्रका चिह्न प्रणाम किया और प्रसन्नचित्त होकर अर्घ्य, पाद्य आदि धारण करते ही हैं; वहाँकै पशु-पक्षी और कीट-पतङ्ग निवेदन किया। जब ब्राह्मण सुखपूर्वक आसनपर बैठकर आदि सबके शरीर चक्रसे अङ्कित होते हैं। उस पुरीमें विश्राम कर चुके तो राजाने उनका परिचय जानकर इस सम्पूर्ण जगत्के एकमात्र रक्षक भगवान् त्रिविक्रम निवास प्रकार प्रश्न किया-'स्वामिन् ! आज आपके दर्शनसे करते हैं। मुझे बड़े पुण्यके प्रभावसे उस द्वारकापुरीका मेरे शरीरका समस्त पाप निवृत्त हो गया। वास्तवमें दर्शन हुआ है। साथ ही जो सब प्रकारकी हत्याओंका महात्मा पुरुष दीन-दुःखियोंकी रक्षाके लिये ही उनके घर दोष दूर करनेवाला है तथा जहाँ महान् पातकोंका नाश जाते हैं। ब्रह्मन् ! अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ; इसलिये मुझे करनेवाला स्यमन्तपञ्चक नामक तीर्थ है, उस कुरुक्षेत्रका एक बात बताइये। कौन-सा देवता अथवा कौन ऐसा भी मैंने दर्शन किया है। इसके सिवा, मैंने वाराणसीतीर्थ है जो गर्भवासके कष्टसे बचाने में समर्थ हो सकता पुरीको भी देखा है, जिसे भगवान् विश्वनाथने अपना है ? आपलोग समाधि और ध्यानमें तत्पर रहनेवाले हैं; निवासस्थान बनाया है। जहाँ भगवान् शङ्कर मुमूर्षु अतः सर्वज्ञोंमें श्रेष्ठ हैं।' प्राणियोंको तारक ब्रह्मके नामसे प्रसिद्ध 'राम' मन्त्रका ब्राह्मणने कहा-महाराज! आपने तीर्थ- उपदेश देते हैं। जिसमें मरे हुए कीट, पतङ्ग, भृङ्ग, सेवनके विषयमें जिज्ञासा करते हुए जो यह प्रश्न किया पशु-पक्षी आदि तथा असुर-योनिके प्राणी भी अपनेहै कि किस देवताकी कृपासे गर्भवासके कष्टका निवारण अपने कर्मोके भोग और सीमित सुखका परित्याग करके हो सकता है? सो उसके विषयमें बता रहा हूँ, दुःख-सुखसे परे हो कैलासको प्राप्त हो जाते हैं तथा जहाँ सुनिये-'भगवान् श्रीरामचन्द्रजीकी ही सेवा करनी मणिकर्णिकातीर्थ और उत्तरवाहिनी गङ्गा हैं, जो चाहिये; क्योंकि वे ही संसाररूपी रोगका नाश करनेवाले पापियोंका भी संसारबन्धन काट देती हैं। राजन् ! इस हैं। वे ही भगवान् पुरुषोत्तमके नामसे प्रसिद्ध हैं, उन्हींकी प्रकार मैंने अनेकों तीर्थोका दर्शन किया है; परन्तु पूजा करनी चाहिये। मैंने सब पापोंका क्षय करनेवाली नीलगिरिपर भगवान् पुरुषोत्तमके समीप जो महान् अनेकों पुरियों और नदियोंका दर्शन किया है- आचर्यकी घटना देखी है वह अन्यत्र कहीं भी दृष्टिगोचर अयोध्या, सरयू, तापी, हरिद्वार, अवन्ती, विमला, नहीं हुई है। काञ्ची, समुद्रगामिनी नर्मदा, गोकर्ण और करोड़ों पर्वतश्रेष्ठ नीलगिरिपर जो वृत्तान्त घटित हुआ था, हत्याओका विनाश करनेवाला हाटकतीर्थ-इन सबका उसे सुनिये; इसपर श्रद्धा और विश्वास करनेवाले पुरुष दर्शन पापको दूर करनेवाला है। मल्लिका-नामसे सनातन ब्रह्मको प्राप्त होते हैं। मैं सब तीर्थोंमें भ्रमण प्रसिद्ध महान् पर्वत मनुष्योंको दर्शनमात्रसे मोक्ष करता हुआ नीलगिरिपर गया, जिसका आँगन सदा देनेवाला है तथा वह पातकोंका भी नाश करनेवाला तीर्थ गङ्गासागरके जलसे धुलता रहता है। वहाँ पर्वतके है, उसका भी मैने दर्शन किया है। देवता और शिखरपर मुझे कुछ ऐसे भील दिखायी दिये, जिनकी चार असुर-दोनों जिसका सेवन करते हैं, उस द्वारवती भुजाएँ थीं और वे धनुष धारण किये हुए थे। वे (द्वारकापुरी) तीर्थका भी मैंने दर्शन किया है। वहाँ फल-मूलका आहार करके वहाँ जीवन-निर्वाह करते थे, कल्याणमयी गोमती नामकी नदी बहती है, जिसका जल उस समय उन्हें देखकर मेरे मनमें यह महान् सन्देह खड़ा साक्षात् ब्रह्मस्वरूप है। उसमें शयन करना (डूबना) हुआ कि ये धनुष-बाण धारण करनेवाले जंगली मनुष्य लय कहलाता है और मृत्युको प्राप्त होना मोक्ष; ऐसा चतुर्भुज कैसे हो गये? वैकुण्ठलोकमें निवास करनेवाले श्रुतिका वचन है। उस पुरीमें निवास करनेवाले मनुष्योंपर जितेन्द्रिय पुरुषोंका जैसा स्वरूप शास्त्रोंमें देखा जाता है
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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