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________________ * अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण . . . . . . . अपनाये रहना, बड़े-बूढ़ोंके ऊपर पहले प्रहार न करना, रहते हैं, उनसे भेट होनेपर तुम उनके सामने मस्तक पूजनीय पुरुषोंकी पूजाका उल्लङ्घन न हो, इसके लिये झुकाना। जिनकी दृष्टि में शिव और विष्णु तथा ब्रह्मा सचेष्ट रहना तथा कभी दयाभावका परित्याग न करना। और शिवमें भी कोई भेद नहीं है, उनके चरणोंकी पवित्र गौ, ब्राह्मण तथा धर्मपरायण वैष्णवको नमस्कार करना। धूलि मैं अपने शीश चढ़ाता हूँ, वह समस्त पापोका इन्हें मस्तक झुकाकर मनुष्य जहाँ कहीं जाता है, वहीं उसे विनाश करनेवाली है।* गौरी, गङ्गा तथा महालक्ष्मीसफलता प्राप्त होती है। इन तीनोंमें जो भेद नहीं समझते, उन सभी मनुष्योंको 'महाबाहो ! भगवान् श्रीविष्णु सबके ईश्वर, साक्षी स्वर्गलोकसे भूमिपर आये हुए देवता समझना चाहिये। तथा सर्वत्र व्यापक स्वरूप धारण करनेवाले हैं। जो जो अपनी शक्तिके अनुसार भगवान्को प्रसन्नताके लिये उनके भक्त हैं, वे भी उन्हींके रूपमें सर्वत्र विचरते हैं। शरणागतोंकी रक्षा तथा बड़े-बड़े दान किया करता है, जो लोग सम्पूर्ण भूतोंके हदयमें स्थित रहनेवाले उसे वैष्णवोंमें सर्वश्रेष्ठ समझो। जिनका नाम महान् महाविष्णुका स्मरण करते हैं, उन्हें साक्षात् महाविष्णुके पापोंकी राशिको तत्काल भस्म कर देता है, उन समान ही समझना चाहिये। जिनके लिये कोई अपना या भगवान्के युगल चरणोंमें जिसकी भक्ति है, वही वैष्णव पराया नहीं है तथा जो अपने साथ शत्रुता रखनेवालेको है। जिनकी इन्द्रियाँ वशमें हैं और मन भगवान्के भी मित्र ही मानते हैं, वे वैष्णव एक ही क्षणमें पापीको चिन्तनमें लगा रहता है, उनको नमस्कार करके मनुष्य पवित्र कर देते हैं। जिन्हें भागवत प्रिय है तथा जो अपने जन्मसे लेकर मृत्युतकके सम्पूर्ण जीवनको पवित्र ब्राहाणोंसे प्रेम करते हैं, वे वैकुण्ठलोकसे इस संसारको बना लेता है। परायी स्त्रियोंको तलवारकी धार समझकर पवित्र करनेके लिये यहाँ आये हैं। जिनके मुखमें यदि तुम उनका परित्याग करोगे तो संसारमें तुम्हें भगवान्का नाम, हृदयमें सनातन श्रीविष्णुका ध्यान तथा सुयशसे सुशोभित ऐश्वर्यकी प्राप्ति होगी। इस प्रकार मेरे उदरमें उन्हींका प्रसाद है, वे यदि जातिके चाण्डाल हों तो आदेशका पालन करते हुए तुम उत्तम योगके द्वारा प्राप्त भी वैष्णव ही हैं। जिन्हें वेद ही अत्यन्त प्रिय है संसारके होनेवाले परम धामको पा सकते हो, जिसकी सभी सुख नहीं, तथा जो निरन्तर अपने धर्मका पालन करते महात्माओंने प्रशंसा की है।' शत्रुघ्न और पुष्कल आदिका सबसे मिलकर सेनासहित घोड़ेके साथ जाना, राजा सुमदकी कथा तथा सुमदके द्वारा शत्रुघ्नका सत्कार शेषजी कहते हैं-मुने! शत्रुघ्नको इस प्रकार वह मेरे हाथपर रखा हुआ यह बीड़ा उठा ले।' आदेश देकर भगवान् श्रीरामने अन्य योद्धाओंकी ओर श्रीरघुनाथजीके ऐसा कहनेपर भरत-कुमार पुष्कलने देखते हुए पुनः मधुर वाणीमें कहा-'वीरो ! मेरे भाई आगे बढ़कर उनके कर-कमलसे वह बीड़ा उठा लिया शत्रुघ्न घोड़ेकी रक्षाके लिये जा रहे हैं, तुमलोगोंमेंसे कौन और कहा-'स्वामिन् ! मैं जाता हूँ; मैं ही कवच वीर इनके आदेशका पालन करते हुए पीछेकी ओरसे आदिके द्वारा सब ओरसे सुरक्षित हो तलवार आदि शरूप इनकी रक्षा करनेके लिये जायगा? जो अपने मर्मभेदी तथा धनुष-बाण धारण करके अपने चाचा शत्रुघ्नके अस्त्र-शस्त्रोद्वारा सामने आये हुए सब वीरोंको जीतने पृष्ठभागकी रक्षा करूँगा। इस समय आपका प्रताप ही तथा भूमण्डलमें अपने सुयशको फैलानेमें समर्थ हो, समूची पृथ्वीपर विजय प्राप्त करेगा; ये सब लोग तो * शिवे विष्णौ न वा भेदो न च ब्रह्ममहेशयोः / तेषां पादरजः पूतं वहाम्यविनाशनम्॥ (10 / 68)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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