SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पातालखण्ड . भरतसे मिलकर भगवान् श्रीरामका अयोध्याके निकट आगमन • ४१३ . . . . . . . . . . . . गया और उनके मुखपर आनन्दके आँसुओकी धारा बह मस्तकपर भी जटा थी तथा वे भी निरन्तर तपस्यासे केश चली। उनकी ऐसी अवस्था देख वानरराज हनुमान्ने उठानेके कारण अत्यन्त दुर्बल हो गये थे। राजा भरतको इस अवस्थामें देखकर श्रीरघुनाथजीको बड़ी चिन्ता हुई, वे कहने लगे-'अहो! राजाओंके भी राजा महाबुद्धिमान् महाराज दशरथका यह पुत्र आज जटा और वल्कल आदि तपस्वीका वेष धारण किये पैदल ही मेरे पास आ रहा है। मित्रो ! मैं वनमें गया था; किन्तु मुझे भी ऐसा दुःख नहीं उठाना पड़ा, जैसा कि मेरे वियोगके कारण इस भरतको भोगना पड़ रहा है। अहो ! देखो तो सही, प्राणोंसे भी बढ़कर प्यारा और हितैषी मेरा भाई भरत मुझे निकट आया सुनकर हर्षमें भरे हुए वृद्ध मन्त्रियों तथा महर्षि वसिष्ठजीको साथ लेकर मुझसे मिलनेके लिये आ रहा है।' इस प्रकार भगवान् श्रीराम आकाशमें स्थित पुष्पक विमानसे उपर्युक्त बातें कह रहे थे और विभीषण, हनुमान् तथा लक्ष्मण उनके प्रति आदरका भाव प्रकट कर रहे थे। निकट आनेपर भगवान्का हदय विरहसे कातर हो उठा और वे 'भैया ! भैया भरत ! तुम कहाँ हो' इस प्रकार कहा-'लक्ष्मणसहित श्रीरामचन्द्रजी इस प्रामके निकट कहते तथा बारंबार 'भाई! भाई !! भाई !!!' की रट आ गये हैं। श्रीरघुनाथजीके आगमनके संदेशने भरतके शरीरपर मानो अमृत छिड़क दिया, वे हर्षमें भरकर बोले-'श्रीरामका संदेश लानेवाले हनुमान्जी ! मेरे पास ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जिसे यह प्रिय समाचार सुनानेके बदलेमें मैं आपको दे सकूः इस उपकारके कारण मैं जीवनभर आपका दास बना रहूँगा।' महर्षि वसिष्ठ तथा वृद्ध मन्त्री भी अत्यन्त हर्षमें भरकर अर्घ्य हाथमें लिये हनुमान्जीके दिखाये हुए मार्गसे श्रीरामचन्द्रजीके पास चल दिये। भरतजीकी दृष्टि दूरसे आते हुए परम मनोरम भगवान् श्रीरामपर पड़ी। वे पुष्पक विमानके मध्यभागमें सीता और लक्ष्मणके साथ बैठे थे। श्रीरामचन्द्रजीने भी जटा, वल्कल और कौपीन धारण किये हुए भरतको पैदल ही आते देखा; साथ ही उनकी दृष्टि उन मन्त्रियोंपर भी पड़ी, जिन्होंने भाईके वेषके समान ही वेष धारण कर रखा था। उनके SHO
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy