SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५४ . अर्थयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . ' [संक्षिप्त पद्यपुराण कौन हो सकता है।* नरक देनेवाला पापकर्म दूसरे जो क्रोधका कारण उपस्थित होनेपर भी कभी किसी उपायसे तत्काल दग्ध नहीं हो सकता; इसलिये क्रोधके वशीभूत नहीं होता, उस अक्रोधी पुरुषको इस मनुष्योंको प्रयत्नपूर्वक गङ्गाजीके जलमें स्रान करना पृथ्वीपर स्वर्गका विजेता समझना चाहिये। जो पुत्र चाहिये। माता-पिताकी देवताके समान आराधना करता है, वह जो ब्राह्मण दान लेनेमें समर्थ होकर भी उससे कभी यमराजके घर नहीं जाता। स्त्रियाँ अपने अलग रहता है, वह आकाशमें तारा बनकर शील-सदाचारकी रक्षा करनेसे इस लोकमें धन्य मानी चिरकालतक प्रकाशित होता रहता है। जो कीचड़से जाती हैं। शील भङ्ग होनेपर स्त्रियोंको अत्यन्त भयङ्कर गौका उद्धार करते हैं, रोगियोंकी रक्षा करते हैं तथा यमलोककी प्राप्ति होती है। अतः स्त्रियोंको दुष्टोंके गोशालामें जिनकी मृत्यु होती है, उन्हीं लोगोंके लिये सङ्गका परित्याग करके सदा अपने शीलकी रक्षा करनी आकाशमें स्थित तारामय लोक हैं। सदा प्राणायाम चाहिये। वैश्यवर ! शीलसे नारियोंको उत्तम स्वर्गकी करनेवाले द्विज यमलोकका दर्शन नहीं करते। वे पापी प्राप्ति होती है, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। हों तो भी प्राणायामसे ही उनका पाप नष्ट हो जाता है। जो शास्त्रका विचार करते हैं, वेदोंके अभ्यासमें वैश्यवर ! यदि प्रतिदिन सोलह प्राणायाम किये जाये तो लगे रहते हैं, पुराण-संहिताको सुनाते तथा पढ़ते हैं, वे साक्षात् ब्रह्मघातीको भी पवित्र कर देते हैं। जिन-जिन स्मृतियोंकी व्याख्या और धर्मोका उपदेश करते हैं तथा तपोंका अनुष्ठान किया जाता है, जो-जो व्रत और नियम वेदान्तमें जिनकी निष्ठा है, उन्होंने इस पृथ्वीको धारण कर कहे गये हैं, वे तथा एक सहस्र गोदान-ये सब एक रखा है। उपर्युक्त विषयोंके अभ्यासको महिमासे उन साथ हों तो भी प्राणायाम अकेला ही इनकी समानता सबके पाप नष्ट हो जाते हैं तथा वे ब्रह्मलोकको जाते हैं, कर सकता है। जो मनुष्य सौसे अधिक वर्षातक जहाँ मोहका नाम भी नहीं है। जो अनजान मनुष्यको प्रतिमास कुशके अग्रभागसे एक बूंद पानी पीकर रहता वेद-शास्त्रका ज्ञान प्रदान करता है, उसकी वेद भी है, उसकी कठोर तपस्याके बराबर केवल प्राणायाम ही प्रशंसा करते हैं; क्योंकि वह भव-बन्धनको नष्ट है। प्राणायामके बलसे मनुष्य अपने सारे पातकोंको करनेवाला है। क्षणभरमें भस्म कर देता है। जो नरश्रेष्ठ ! परायी वैष्णव पुरुष यम, यमलोक तथा वहाँक भयङ्कर स्त्रियोंको माताके समान समझते हैं, वे कभी प्राणियोंका कदापि दर्शन नहीं करते-यह बात मैंने यम-यातनामें नहीं पड़ते। जो पुरुष मनसे भी परायी बिलकुल सच-सच बतायी है। यमुनाके भाई यमराज स्त्रियोंका सेवन नहीं करता, उसने इस लोक और हमलोगोंसे सदा ही और बारंबार कहा करते हैं कि परलोकके साथ समूची पृथ्वीको धारण कर रखा है। 'तुमलोग वैष्णवोंको छोड़ देना; ये मेरे अधिकारमें नहीं इसलिये परस्त्री-सेवनका परित्याग करना चाहिये। परायी हैं। जो प्राणी प्रसङ्गवश एक बार भी भगवान् केशवका खियाँ इक्कीस पीढ़ियोंको नरकोंमें ले जाती है। स्मरण कर लेते हैं, उनकी समस्त पापराशि नष्ट हो जाती * धर्मद्रवं झपां बीजं वैकुण्ठचरणच्युतम् । घृतं मूर्ध्नि महेशेन यदाङ्गममल जलम्॥ तौवन सन्देहो निर्गण प्रकृतेः परम। तेन कि समतो गच्छेदपि ब्रह्माण्डगोचरे । गङ्गा गनेति यो ब्रूयाद्योजनानां शतैरपि । नरो न नरकं याति किं तया सदृशं भवेत् ॥ (३१।७५-७७) + इह चैव स्त्रियो धन्याः शीलस्व परिरक्षणात्। शीलभङ्गे च नारीणां यमलोकः सुदारुणः ॥ शीलं रक्ष्यं सदा स्त्रीभिर्दुष्टसङ्गविवर्जनात् । शीलेन हि परः स्वर्गः स्त्रीणां वैश्य न संशयः ।। (३१।९३-९४)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy