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________________ २८६ अर्चयस्व इषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् गये हैं। माता-पिताके प्रसादसे ही मुझे पराचीन तथा वासुदेवस्वरूप अर्वाचीन तत्त्वका उत्तम ज्ञान प्राप्त हुआ है मेरी सर्वज्ञतामें माता-पिताकी सेवा ही कारण है। भला कौन ऐसा विद्वान् पुरुष होगा, जो पिता-माताकी पूजा नहीं करेगा। ब्रह्मन्! श्रुति (उपनिषद्) और शास्त्रोंसहित सम्पूर्ण वेदोंके साङ्गोपाङ्ग अध्ययनसे ही क्या 200 ★ सुकर्माद्वारा ययाति और मातलिके संवादका उल्लेख — मातलिके द्वारा देहकी उत्पत्ति, उसकी अपवित्रता, जन्म-मरण और जीवनके कष्ट तथा संसारकी दुःखरूपताका वर्णन PON सुकर्मा कहते हैं- अब मैं इस विषयमें पुण्यात्मा राजा ययातिके चरित्रका वर्णन करूँगा, जो सम्पूर्ण पापोंका नाश करनेवाला है। सोमवंशमें एक नहुष नामके राजा हो गये हैं। उन्होंने अनेकों दानधर्मोका अनुष्ठान किया, जिनकी कहीं तुलना नहीं थी। उन्होंने अपने पुण्यके प्रभावसे इन्द्रलोकपर अधिकार प्राप्त किया था। उन्होंके पुत्र राजा ययाति हुए, जो शत्रुओंका मानमर्दन करनेवाले थे। वे सत्यका आश्रय ले धर्मपूर्वक प्रजाका पालन करते थे। प्रजाके सब कार्योंकी स्वयं ही देख-भाल किया करते थे। वे उत्तम धर्मकी महिमा सुनकर सब प्रकारके दान-पुण्य, यज्ञानुष्ठान एवं तीर्थ सेवन आदिमें लगे रहते थे। महाराज ययातिने अस्सी हजार वर्षोंतक इस पृथ्वीका राज्य किया। उनके चार पुत्र हुए, जो उन्होंके समान शूरवीर, बलवान् और पराक्रमी थे। तेज और पुरुषार्थमें भी वे पिताकी समानता करते थे। इस प्रकार ययातिने दीर्घकालतक धर्मपूर्वक राज्य किया। [ संक्षिप्त पद्मपुराण एक समयकी बात है, ब्रह्माजीके पुत्र नारदजी इन्द्रलोकमें गये। उन्हें आया देख इन्द्रने भक्तिपूर्वक मस्तक झुकाकर प्रणाम किया और मधुपर्क आदिसे उनकी पूजा करके उन्हें एक पवित्र आसनपर बिठाया। तत्पश्चात् वे उन महामुनिसे पूछने लगे- 'देवर्षे! किस लोकसे आपका यहाँ आना हुआ है ? तथा यहाँ पदार्पण करनेका क्या उद्देश्य है ?" लाभ हुआ, यदि उसने माता-पिताका पूजन नहीं किया। उसका वेदाध्ययन व्यर्थ है। उसके यज्ञ, तप, दान और पूजनसे भी कोई लाभ नहीं। जिसने माँ-बापका आदर नहीं किया, उसके सभी शुभकर्म निष्फल होते हैं। माता-पिता ही पुत्रके लिये धर्म, तीर्थ, मोक्ष, जन्मके उत्तम फल, यज्ञ और दान आदि सब कुछ हैं। रहा हूँ। नहुष पुत्र ययातिसे मिलकर अब आपसे मिलनेके लिये आया हूँ। इन्द्रने पूछा - इस समय पृथ्वीपर कौन राजा सत्य और धर्मके अनुसार प्रजाका पालन करता है ? कौन सब धर्मोसे युक्त, विद्वान्, ज्ञानवान्, गुणी, ब्राह्मणोंके कृपापात्र, ब्राह्मणभक्त, वेदवेत्ता, शूरवीर, दाता, यज्ञ करनेवाला और पूर्ण भक्तिमान् है ? नारदजीने कहा - नहुषके बलवान् पुत्र ययाति इन गुणोंसे युक्त हैं। वे अपने पितासे भी बढ़े- चढ़े हैं। उन्होंने सौ अश्वमेध और सौ वाजपेय यज्ञ किये हैं। भक्तिपूर्वक अनेक प्रकारके दान दिये हैं। उनके द्वारा लाखों-करोड़ों गौएँ दानमें दी जा चुकी हैं। उन्होंने कोटिहोम तथा लक्षहोम भी किये हैं। ब्राह्मणोंको भूमि आदिका दान भी दिया है। उन्होंने ही धर्मके साङ्गोपाङ्ग स्वरूपका पालन किया है। ऐसे गुणोंसे युक्त नहुष- पुत्र राजा ययाति अस्सी हजार वर्षोंसे सत्य धर्मके अनुसार विधिवत् राज्य करते आ रहे हैं। इस कार्यमें वे आपकी समानता करते हैं। सुकर्मा कहते हैं- मुनीश्वर नारदके मुखसे ऐसी बात सुनकर बुद्धिमान् इन्द्र कुछ सोचने लगे। वे ययातिके धर्म- पालनसे भयभीत हो उठे थे। उनके मनमें यह बात आयी कि 'पूर्वकालमें राजा नहुष सौ यज्ञोंके प्रभावसे मेरे इन्द्रपदपर अधिकार करके देवताओंके राजा बन बैठे थे। शचीकी बुद्धिके प्रभावसे उन्हें पदभ्रष्ट होना नारदजीने कहा- मैं इस समय भूलोकसे आ पड़ा था ये महाराज ययाति भी ऐसे ही सुने जाते हैं। 1
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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