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________________ भूमिखण] • सुकलाका सतीत्व नष्ट करनेके लिये इन्द्र और काम आदिकी कुचेष्टा . २७७ इन सबके भीतर मैं उक्त कुटुम्बियोंके साथ वास करता उसकी पुण्यमयी वाणीसे पूजित होकर क्रीड़ा मुसकराती हूँ। जो जगत्के स्वामी, त्रिशूलधारी, वृषभवाहन तथा हुई बातचीत करने लगी। उसका मायामय वचन विश्वको साक्षात् ईश्वर हैं, वे कल्याणमय भगवान् शिव भी मेरे मोहित करनेवाला था। सुननेपर सत्य और विश्वासके निवास-स्थान है। कृकल वैश्यको प्रियतमा भार्या योग्य जान पड़ता था। क्रीड़ा बोली- 'देवि ! मेरे स्वामी मङ्गलमयी सुकला भी मेरा उत्तम गृह है; किन्तु आज पापी बड़े बलवान्, गुणज्ञ, धीर तथा अत्यन्त पुण्यात्मा है; परन्तु काम इसे भी जला डालनेको उद्यत हुआ है। ये बलवान् मुझे छोड़कर न जाने कहाँ चले गये हैं। वह मेरे इन्द्र भी कामका साथ दे रहे हैं; कामकी ही करतूतसे पूर्वजन्मके कोका फल है, जो आज इस रूपमें सामने अहल्याका सङ्ग करनेपर एक बार जो हानि उठानी पड़ी आया है; मैं कैसी मन्दभागिनी हूँ। महाभागे ! नारियोंके है, उस प्राचीन घटनाका इन्हें स्मरण क्यों नहीं होता। लिये रूप, सौभाग्य, शृङ्गार, सुख और सम्पति-सब सतीके सतीत्वका नाश करनेसे ही इन्हें महान् दुःखमें कुछ पति ही है; यही शास्त्रोका मत है।' पड़कर दुःसह शापका उपभोग करना पड़ा था। फिर भी पतिव्रता सुकलाने क्रीडाकी ये सारी बातें सुनीं । उसे आज कामदेवके साथ आकर ये धर्मचारिणी कृकल-पत्नी विश्वास हो गया कि यह सब कुछ इस दुःखिनी नारीके सुकलाका अपहरण करनेको उतारू हुए है। हृदयका सच्चा भाव है। वह उसके दुःखसे दुःखी हो गयी, धर्मने कहा-मैं कामका तेज कम कर दूंगा; [मैं और अपनी बातें भी उसे बताने लगी। उसने पहलेका यदि चाहूँ तो] उसकी मृत्युका भी कारण उपस्थित कर अपना सारा हाल थोड़ेमें कह सुनाया। अपने दुःखसकता हूँ। मैंने एक ऐसा उपाय सोच लिया है, जिससे सुखकी बात बताकर मनस्विनी सुकला चुप हो गयी; तब यह काम आज ही भाग खड़ा होगा। यह महाप्रज्ञा क्रीडाने उस पतिव्रताको सारखना दी और बहुत कुछ पक्षिणीका रूप धारण करके सुकलाके घर जाय और समझाया-बुझाया। तदनन्तर एक दिन उसने सुकलासे अपने मङ्गलमय शब्दसे उसको स्वामीके शुभागमनको कहा-'सखी ! देखो, वह सामने बड़ा सुन्दर वन सूचना दे। दिखायी दे रहा है; अनेको दिव्य वृक्ष उसकी शोभा बढ़ा र धर्मके भेजनेसे प्रज्ञा सुकलाके घरमे गयी और वहाँ रहे हैं। वहाँ एक परम पवित्र पापनाशन तीर्थ है; वरानने ! मङ्गलजनक शब्दका उच्चारण किया। सुकलाने धूप-गन्ध चलो, हम दोनों भी वहाँ पुण्य-सञ्चय करनेके लिये चलें।' आदिके द्वारा उसका समादर और पूजन किया तथा यह सुनकर सुकला उस मयामयी स्त्रीके साथ वहाँ सुयोग्य ब्राह्मणको बुलाकर पूछा-'इस शकुनका क्या जानेको राजी हो गयी। उसने वनमें प्रवेश करके देखा तात्पर्य है? मेरे पतिदेव कब आयेंगे?' तो उसे ऐसा प्रतीत हुआ मानो उसमें नन्दन-वनकी शोभा ब्राह्मणने कहा-भद्रे! यह शकुन तुम्हारे उतर आयी है। सभी ऋतुओंके फूल खिले थे सैकड़ों स्वामीके शुभागमनकी सूचना दे रहा है। वे सात दिनसे कोकिलोंके कलरवसे सारा वन-प्रान्त गूंज रहा था। पहले-पहले यहाँ अवश्य आ जायेंगे। इसमें अन्तर नहीं माधवी लता और माधव (वसत्त) ने उस उपवनकी हो सकता। शोभाको सब भावोंसे परिपूर्ण बनाया था ! सुकलाको - ब्राह्मणका यह मङ्गलमय वचन सुनकर सुकलाको मोहित करनेके लिये ही उसकी सृष्टि की गयी थी। उसने बड़ी प्रसन्नता हुई। क्रीड़ाके साथ सबके मनको भानेवाले उस वनमें घूमउधर कामदेवकी भेजी हुई क्रीड़ा सती स्त्रीका रूप घूमकर अनेको दिव्य कौतुक देखे। इसी समय रतिके धारण करके उस सुन्दरी पतिव्रताके घर गयी। उस साथ काम और इन्द्र भी वहाँ आये । इन्द्र सम्पूर्ण भोगोंके रूपवती नारीको आयो देख सुकलाने आदरयुक्त वचन अधिपति होकर भी काम-क्रीडाके लिये व्यग्र थे। उन्होंने कहकर उसका सम्मान किया और अपनेको धन्य माना। कामदेवको पुकारकर कहा-'लो, यह सुकला आ
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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