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________________ २४० • अर्जयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् । [संक्षिप्त पद्मपुराण शोकोंसे जल रहा हैं; आप सर्वदा ज्ञानरूपी जलसे एवं हि मामुपगतं शरणं च रक्ष सींचकर मुझे सदाके लिये संसार-बन्धनसे छुड़ा दीजिये। __दूरेण यान्तु मम पातकसञ्चयास्ते । मोहान्धकारपटले महतीव गते दासोऽस्मि भृत्यवदहं तव जन्म जन्म संसारनानि सततं पतितं हि कृष्ण । __स्वत्पादपद्मयुगलं सततं नमामि ।। कृत्वा तरी मम हि दीनभयातुरस्य (२१ ।२०-२७) तस्माद् विकृष्य शरणं नय मामितस्त्वम्॥ मैं न तो दूसरेका नाम लेता हूँ न दूसरेको भजता कृष्ण ! मैं मोहरूपी अन्धकार-राशिसे भरे हुए हूँ और न दूसरेका चिन्तन ही करता हूँ; नित्य-निरन्तर संसार नामक महान् गड्ढे में सदासे गिरा हुआ हूँ, दीन आपके युगल चरणोंको प्रणाम करता रहता हूँ। इस हूँ और भयसे अत्यन्त व्याकुल हूँ आप मेरे लिये नौका प्रकार मैं आपकी शरणमें आया हूँ। आप मेरी रक्षा करें, बनाकर मुझे उस गड्ढेसे निकालिये, वहाँसे खींचकर मेरे पातकसमूह शीघ्र दूर हो जायें। मैं नौकरकी भाँति अपनी शरणमें ले लीजिये। जन्म-जन्म आपका दास बना रहूँ। भगवन् ! आपके त्वामेव ये नियतमानसभावयुक्ता युगल चरण-कमलोंको सदा प्रणाम करता हूँ। ध्यायन्त्यनन्यमनसा पदवीं लभन्ते। श्रीकृष्ण ! यदि आप मुझपर प्रसन्न है, तो मुझे यह नत्वैव पादयुगलं च महत्सुपुण्यं उत्तम वरदान दीजिये--मेरे माता-पिताको सशरीर अपने ___ ये देवकिन्नरगणाः परिचिन्तयन्ति ॥ परमधाममें पहुँचाइये। मेरे ही साथ मेरी पत्नीको भी जो संयमशील हृदयके भावसे युक्त होकर अनन्य अपने लोकमें ले चलिये। चित्तसे आपका ध्यान करते हैं। वे आपकी पदवीको प्राप्त श्रीहरि बोले-ब्रह्मन् ! तुम्हारी यह उत्तम कामना हो जाते है। तथा जो देवता और किन्नरगण आपके दोनों अवश्य पूर्ण होगी। परम पवित्र चरणोंको प्रणाम करके उनका चिन्तन करते इस प्रकार सुव्रतकी भक्तिसे सन्तुष्ट होकर भगवान् हैं, वे भी आपकी पदवीको प्राप्त होते हैं। श्रीविष्णु उन्हें उत्तम वरदान दे दाह और प्रलयसे रहित नान्यं वदामि न भजामि न चिन्तयामि वैष्णवधामको चले गये । सुव्रतके साथ ही सुमना और त्वत्पादपद्मयुगलं सततं नमामि। सोमशर्मा भी वैकुण्ठधामको प्राप्त हुए। राजा पृथुके जन्म और चरित्रका वर्णन ऋषियोंने कहा-महाभाग सूतजी! आप कथाको विस्तारपूर्वक कहेगा, उसके सात जन्मके पाप महात्मा राजा पृथुके जन्मका विस्तारके साथ वर्णन नष्ट हो जायेंगे। पृथुका जनम-वृत्तान्त तथा सम्पूर्ण चरित्र कीजिये। हम उनकी कथा सुननेके लिये उत्सुक है। ही पापोंका नाश करनेवाला और पवित्र है। महाराज पृथुने जिस प्रकार इस पृथ्वीका दोहन किया पूर्वकालमें अङ्ग नामके प्रजापति थे, जिनका जन्म तथा देवताओं, पितरों और तत्त्ववेत्ता मुनियोंने भी जिस अत्रिवंशमें हुआ था। वे अत्रिके समान ही प्रभावशाली, प्रकार उसको दुहा था, वह सब प्रसङ्ग मुझे सुनाइये। धर्मके रक्षक, परम बुद्धिमान् तथा वेद और शास्त्रोंके सूतजी बोले-द्विजवरो! मैं वेनकुमार पृथुके तत्वज्ञ थे। उन्होंने ही सम्पूर्ण धोकी सृष्टि की थी। जन्म, पराक्रम और क्षत्रियोचित पुरुषार्थका विस्तारके मृत्युकी एक परम सौभाग्यवती कन्या थी, जिसका नाम साथ वर्णन करूँगा । ऋषियोंने जो रहस्यकी बातें कही हैं, था सुनीथा। महाभाग अङ्गने उसीके साथ विवाह किया उन्हें भी बताऊँगा। जो प्रतिदिन वेननन्दन पृथुकी और उसके गर्भसे वेननामक पुत्रको जन्म दिया, जो
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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