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________________ सृष्टिखण्ड ] • पोखरे खुदाने, वृक्ष लगाने, पीपल और देवताओंकी पूजा करने आदिका माहाव्य ************ वृक्ष लगाता है, वह मनोरम स्वर्गको प्राप्त होता है। ब्राह्मणो ! पीपलके वृक्षकी पूजा करनेसे जो पुण्य होता है, उसे बतलाता हूँ सुनो। जो मनुष्य स्नान करके पीपल के वृक्षका स्पर्श करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। जो बिना नहाये पीपलका स्पर्श करता है, उसे स्नानजन्य फलकी प्राप्ति होती है। अश्वत्थके दर्शनसे पापका नाश और स्पर्शसे लक्ष्मीकी प्राप्ति होती है, उसकी प्रदक्षिणा करनेसे आयु बढ़ती है। अश्वत्थ वृक्षको हविष्य, दूध, नैवेद्य, फूल, धूप और दीपक अर्पण करके मनुष्य स्वर्गसे भ्रष्ट नहीं होता। पीपलकी जड़के पास बैठकर जो जप, होम, स्तोत्र पाठ और यन्त्रमन्त्रादिके अनुष्ठान किये जाते हैं, उन सबका फल करोड़गुना होता है। जिसकी जड़में श्रीविष्णु, तनेमें भगवान् शङ्कर तथा अग्रभागमें साक्षात् ब्रह्माजी स्थित हैं, उसे संसारमें कौन नहीं पूजेगा सोमवती अमावास्याको मौन होकर स्नान और एक हजार गौओंका दान करनेसे जो फल प्राप्त होता है, वही फल अश्वत्थ वृक्षको प्रणाम करनेसे मिल जाता है। अश्वत्थकी सात बार प्रदक्षिणा करनेसे दस हजार गौओंके और इससे अधिक अनेकों बार परिक्रमा करनेपर करोड़ों गौओके दानका फल प्राप्त होता है। अतः पीपल वृक्षकी परिक्रमा सदा ही करनी चाहिये। विप्रगण ! पीपल के वृक्षके नीचे जो फल मूल और जल आदिका दान किया जाता है, वह सब अक्षय होकर जन्म-जन्मान्तरोंमें प्राप्त होता रहता है। पीपलके समान दूसरा कोई वृक्ष नहीं है। अश्वत्थ वृक्षके रूपमें साक्षात् श्रीहरि ही इस भूतलपर विराजमान हैं जैसे संसारमें ब्राह्मण, गौ तथा देवता पूजनीय होते हैं, उसी प्रकार पीपलका वृक्ष भी अत्यन्त पूजनीय माना गया है। पीपलको रोपने, रक्षा करने, छूने तथा पूजनेसे वह क्रमशः धन, पुत्र, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करता है। जो मनुष्य अश्वत्थ वृक्षके शरीरमें कहीं कुछ चोट पहुँचाता है— उसकी डाली या टहनी काट लेता है, वह एक कल्पतक नरक भोगकर चाण्डाल आदिकी योनिमें जन्म ग्रहण करता है और जो कोई पीपलको जड़से काट 1 १९५ देता है, उसका कभी नरकसे उद्धार नहीं होता। यही नहीं, उसकी पहली कई पीढ़ियाँ भयंकर रौरव नरकमें पड़ती हैं। बेलके आठ, बरगदके सात और नीमके दस वृक्ष लगानेका जो फल होता है, पीपलका एक पेड़ लगानेसे भी वही फल होता है। अब मैं पौसले (प्याऊ) का लक्षण बताता हूँ। जहाँ जलका अभाव हो, ऐसे मार्गमें पवित्र स्थानपर एक मण्डप बनाये। वह मार्ग ऐसा होना चाहिये, जहाँ बहुत से पथिकोंका आना-जाना लगा रहता हो । वहाँ मण्डपमें जलका प्रबन्ध रखे और गर्मी, बरसात तथा शरदऋतुमें बटोहियोंको जल पिलाता रहे। तीन वर्षोंतक इस प्रकार पौसलेको चालू रखनेसे पोखरा खुदवानेका पुण्य प्राप्त होता है। जो जलहीन प्रदेशमें ग्रीष्मके समय एक मासतक पौसला चलाता है, वह एक कल्पतक स्वर्गमें सम्मानपूर्वक निवास करता है। जो पोखरे आदिके फलको पढ़ता अथवा सुनाता है, वह पापसे मुक्त होता है और उसके प्रभावसे उसकी सद्गति हो जाती है। अब ब्रह्माजीने सेतु बाँधनेका जैसा फल बताया है, वह सुनो। जहाँका मार्ग दुर्गम हो, दुस्तर कीचड़से भरा हो तथा जो प्रचुर कण्टकोंसे आकीर्ण हो, वहाँ पुल बँधवाकर मनुष्य पवित्र हो जाता है तथा देवत्वको प्राप्त होता है। जो एक बित्तेका भी पुल बँधवा देता है, वह सौ दिव्य वर्षोंतक स्वर्गमें निवास करता है। अतः जिसने पहले कभी एक बित्तेका भी पुल बँधवाया है, वह राजवंशमें जन्म ग्रहण करता है और अन्तमें महान् स्वर्गको प्राप्त होता है। इसी प्रकार जो गोचरभूमि छोड़ता है, वह कभी स्वर्गसे नीचे नहीं गिरता। गोदान करनेवालेकी जो गति होती है, वही उसकी भी होती है। जो मनुष्य यथाशक्ति गोचरभूमि छोड़ता है, उसे प्रतिदिन सौसे भी अधिक ब्राह्मणोंको भोजन करानेका पुण्य होता है। जो पवित्र वृक्ष और गोचरभूमिका उच्छेद करता है, उसकी इक्कीस पीढ़ियाँ रौरव नरकमें पकायी जाती हैं। गाँवके गोपालकको चाहिये कि गोचरभूमिको नष्ट करनेवाले मनुष्यका पता लगाकर उसे दण्ड दे। जो मनुष्य भगवान् श्रीविष्णुकी प्रतिमाके लिये तीन
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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