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________________ १९४ • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण निर्माण करानेवालेने उसे इस प्रकार उत्तर दिया- और सुखी होता है। अपने गोत्रके मनुष्य, माताके 'भाई ! दस हजारका पुण्यफल तो इस जलाशयसे मुझे कुटुम्बी, राजा, सगे-सम्बन्धी, मित्र और उपकारी पुरुषोंके रोज ही प्राप्त होता है। पुण्यवेत्ताओंने जलाशय-निर्माणका खुदवाये हुए जलाशयका जीर्णोद्धार करनेसे अक्षय ऐसा ही पुण्य माना है। इस निर्जल प्रदेशमें मैंने यह फलकी प्राप्ति होती है। तपस्वियों, अनाथों और विशेषतः कल्याणमय सरोवर निर्माण कराया है, इसमें सब लोग ब्राह्मणोंके लिये जलाशय खुदवानेसे भी मनुष्य अक्षय अपनी इच्छाके अनुसार नान और जलपान आदि कार्य स्वर्गका सुख भोगता है। इसलिये ब्राह्मणो ! जो अपनी करते है। शक्तिके अनुसार जलाशय आदिका निर्माण कराता है, उसकी यह बात सुनकर लोगोंने खूब हँसी उड़ायी। वह सब पापोंके क्षय हो जानेसे [अक्षय] पुण्य तथा तब वह लज्जासे पीड़ित होकर बोला-'हमारी यह बात मोक्षको प्राप्त होता है। जो धार्मिक पुरुष लोकमें इस सच है; विश्वास न हो तो धर्मानुसार इसकी परीक्षा कर महान् धर्ममय उपाख्यानको सुनाता है, उसे सब प्रकारके लो।' धनीने ईर्ष्यापूर्वक कहा- 'बाबू ! मेरी बात जलाशय-दान करनेका फल होता है। सूर्यग्रहणके समय सुनो। मैं पहले तुम्हें दस हजार स्वर्णमुद्राएँ देता हूँ। गङ्गाजीके उत्तम तटपर एक करोड़ गोदान करनेका जो इसके बाद मैं पत्थर लाकर तुम्हारे जलाशयमें डालूँगा। फल होता है; वही इस प्रसङ्गको सुननेसे मनुष्य प्राप्त कर पत्थर स्वाभाविक ही पानीमें डूब जायगा। फिर यदि वह लेता है। समयानुसार पानीके ऊपर आकर तैरने लगेगा तो मेरा अब मैं सम्पूर्ण वृक्षोंके लगानेका अलग-अलग रुपया मारा जायगा। नहीं तो इस जलाशयपर धर्मतः मेरा फल कहूँगा। जो जलाशयके तटपर चारों ओर पवित्र अधिकार हो जायगा।' जलाशय बनवानेवालेने 'बहुत वृक्षोंको लगाता है, उसके पुण्यफलका वर्णन नहीं किया अच्छा' कहकर उससे दस हजार मुद्राएँ ले ली और जा सकता । अन्य स्थानोंमें वृक्ष लगानेसे जो फल प्राप्त अपने घरको चल दिया। धनीने कई गवाह बुलाकर होता है, जलके समीप लगानेपर उसकी अपेक्षा करोड़ोंउनके सामने उस महान् जलाशयमें पत्थर गिराया। गुना अधिक फल होता है। अपने बनवाये हुए पोखरेके उसके इस कार्यको मनुष्यों, देवताओं और असुरोंने भी किनारे वृक्ष लगानेवाला मनुष्य अनन्त फलका भागी देखा। तब धर्मके साक्षीने धर्मतुलापर दस हजार स्वर्ण- होता है। मुद्राएँ और जलाशयके जलको तोला; किन्तु वे मुद्राएँ जलाशयके समीप पीपलका वृक्ष लगाकर मनुष्य जलाशयसे होनेवाले एक दिनके जल-दानकी भी तुलना जिस फलको प्राप्त करता है, वह सैकड़ों यज्ञोंसे भी नहीं न कर सकीं। अपने धनको व्यर्थ जाते देख धनीके मिल सकता। प्रत्येक पर्वके दिन जो उसके पत्ते जलमें हृदयको बड़ा दुःख हुआ। दूसरे दिन वह पत्थर भी गिरते हैं, वे पिण्डके समान होकर पितरोंको अक्षय तृप्ति द्वीपकी भाँति जलके ऊपर तैरने लगा। यह देख लोगोंमें प्रदान करते हैं तथा उस वृक्षपर रहनेवाले पक्षी अपनी बड़ा कोलाहल मचा । इस अद्भुत घटनाकी बात सुनकर इच्छाके अनुसार जो फल खाते हैं, उसका ब्राह्मणधनी और जलाशयका स्वामी दोनों ही प्रसन्नतापूर्वक वहाँ भोजनके समान अक्षय फल होता है। गर्मीक समयमें आये। पत्थरको उस अवस्था देख धनीने अपनी दस गौ, देवता और ब्राह्मण जिस पीपलकी छायामें बैठते हैं, हजार मुद्राएँ उसीकी मान लीं। तत्पश्चात् जलाशयके उसे लगानेवाले मनुष्यके पितरोंको अक्षय स्वर्गकी प्राप्ति स्वामीने ही वह पस्थर उठाकर दूर फेंक दिया। होती है। अतः सब प्रकारसे प्रयत्न करके पीपलका वृक्ष नष्ट होते हुए जलाशयको पुनः खुदवाकर उसका लगाना चाहिये। एक वृक्ष लगा देनेपर भी मनुष्य स्वर्गसे उद्धार करनेसे जो पुण्य होता है, उसके द्वारा मनुष्य भ्रष्ट नहीं होता। रसोंके क्रय-विक्रयके लिये नियत स्वर्गमें निवास करता है तथा प्रत्येक जन्ममें वह शान्त रमणीय स्थानपर, मार्गमे और जलाशयके किनारे जो
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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