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________________ सृष्टिखण्ड ] . अधम ब्राह्मणोंका वर्णन, पतित विप्रकी कथा और गरुड़जीका चरित्र . १५७ . . . . . . . Againitalia वृक्षकी बहुत बड़ी शाखापर बैठे। उनके पंजा रखते ही उनकी भुजा कॉपी नहीं। वहाँ बैठकर गरुड़ने उस वह शाखा सहसा टूट पड़ी। उसे गिरते देख महाबली शाखाको तो पर्वतके शिखरपर डाल दिया और हाथी पक्षिराज गरुड़ने गौ और ब्राह्मणोंके वधके भयसे तुरंत तथा कछुएको भक्षण किया। तत्पश्चात् वे श्रीविष्णुसे पकड़ लिया और फिर बड़े वेगसे आकाशमें उड़ने लगे। बोले-'तुम कौन हो? इस समय तुम्हारा कौन-सा उन्हें बहुत देरसे आकाशमें मँडराते देख भगवान् प्रिय कार्य करूं?' श्रीविष्णु मनुष्यका रूप धारण कर उनके पास जा इस भगवान् श्रीविष्णुने कहा-मुझे नारायण प्रकार बोले-'पक्षिराज ! तुम कौन हो और किसलिये समझो, मैं तुम्हारा प्रिय करनेके लिये यहाँ आया हूँ। यह विशाल शाखा तथा ये महान् हाथी एवं कछुआ यह कहकर भगवान्ने उन्हें विश्वास दिलानेके लिये लिये आकाशमें घूम रहे हो?' उनके इस प्रकार पूछनेपर अपना रूप दिखाया। मेघके समान श्याम विग्रहपर पक्षिराजने नररूपधारी श्रीनारायणसे कहा-'महाबाहो! पीताम्बर शोभा पा रहा था। चार भुजाओंके कारण मैं गरुड़ हूँ। अपने कर्मक अनुसार मुझे पक्षी होना पड़ा उनकी झाँकी बड़ी मनोरम जान पड़ती थी। हाथोंमें शङ्ख, है। मैं कश्यप मुनिका पुत्र हूँ और माता विनताके गर्भसे चक्र, गदा और पद्म धारण किये सर्वदेवेश्वर श्रीहरिका मेरा जन्म हआ है। देखिये, इन बड़े-बड़े जीवोंको मैंने खानेके लिये पकड़ रखा है। वृक्ष और पर्वत-कोई भी मुझे धारण नहीं कर पाते। अनेकों योजन उड़नेके बाद मैं एक विशाल जामुनका वृक्ष देखकर इन दोनोंको खानेके लिये उसकी शाखापर बैठा था; किन्तु मेरे बैठते ही वह भी सहसा टूट गयी, अतः सहस्रों ब्राह्मणों और गौओंके वधके डरसे इसे भी लिये डोलता हूँ। अब मेरे मनमें बड़ा विषाद हो रहा है कि क्या करूँ, कहाँ जाऊँ और कौन मेरा वेग सहन करेगा।' श्रीविष्णु बोले-अच्छा, मेरी बाँहपर बैठकर तुम इन दोनों-हाथी और कछुएको खाओ। गरुड़ने कहा-बड़े-बड़े पर्वत भी मुझे धारण करने में असमर्थ हो रहे हैं, फिर तुम मुझ-जैसे महाबली पक्षीको कैसे धारण कर सकोगे? भगवान् श्रीनारायणके सिवा दूसरा कौन है, जो मुझे धारण कर सके। तीनों लोकोंमें कौन ऐसा पुरुष है, जो मेरा भार सह लेगा। श्रीविष्णु बोले-पक्षिश्रेष्ठ ! बुद्धिमान् पुरुषको दर्शन करके गरुड़ने उन्हें प्रणाम किया और अपना कार्य सिद्ध करना चाहिये, अतः इस समय तुम कहा-'पुरुषोत्तम ! बताइये, मैं आपका कौन-सा प्रिय अपना काम करो। कार्य हो जानेपर निश्चय ही मुझे कार्य करूं?' जान लोगे। श्रीविष्णु बोले-सखे ! तुम बड़े शूरवीर हो, गरुड़ने उन्हें महान् शक्तिसम्पन्न देख मन-ही-मन अतः हर समय मेरा वाहन बने रहो। कुछ विचार किया, फिर 'एवमस्तु' कहकर वे उनकी यह सुनकर पक्षियोंमें श्रेष्ठ गरुड़ने भगवान्से विशाल भुजापर बैठे। गरुड़के वेगपूर्वक बैठनेपर भी कहा-'देवेश्वर ! आपका दर्शन करके मैं धन्य हुआ,
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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