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________________ सृष्टिखण्ड ] • अधम ब्राह्मणोंका वर्णन, पतित विप्रकी कथा और गरुड़जीका चरित्र • नारदजीने कहा- देवेश्वर! आपकी कृपासे मुझे परम पवित्र उत्तम ब्राह्मणका परिचय तो मिल गया; अब जिस प्रकार मैं कर्मसे अधम ब्राह्मणको भी पहचान सकूँ, वह बात बताइये । ************* अधम ब्राह्मणोंका वर्णन, पतित विप्रकी कथा और गरुड़जीका चरित्र ब्रह्माजी बोले- बेटा ! जो दस प्रकारके स्नान, सन्ध्योपासन और तर्पण आदि नहीं करता, जिसमें इन्द्रिय संयमका अभाव है, वही अधम ब्राह्मण है। जो देवताओंकी पूजा, व्रत, वेद-विद्या, सत्य, शौच, योग, ज्ञान तथा अग्रिहोत्रका त्यागी है, वह भी ब्राह्मणोंमें अधम ही है। महर्षियोंने ब्राह्मणोंके लिये पाँच स्नान बताये हैं- आग्नेय, वारुण, ब्राह्म, वायव्य और दिव्य सम्पूर्ण शरीरमें भस्म लगाना आग्नेय स्नान है; जलसे जो स्नान किया जाता है, उसे वारुण स्नान कहते हैं; 'आपो हि ष्ठा०' इत्यादि ऋचाओंसे जो अपने ऊपर अभिषेक किया जाता है, वह ब्राह्म स्नान है। शरीरपर हवासे उड़कर जो गौके चरणोंकी धूलि पड़ती है, उसे वायव्य स्नान माना गया है तथा धूप रहते हुए जो आकाशसे जलकी वर्षा होती है, उससे नहानेको दिव्य स्नान कहते हैं। उपर्युक्त वस्तुओंके द्वारा मन्त्रपाठपूर्वक स्नान करनेसे तीर्थ स्नानका फल प्राप्त होता है। तुलसीके पत्तेसे लगा हुआ जल, शालग्राम शिलाको नहलाया हुआ जल, गौओंके सींगसे स्पर्श कराया हुआ जल, ब्राह्मणका चरणोदक तथा मुख्य-मुख्य गुरुजनोंका चरणोदक — ये पवित्रसे भी पवित्र माने गये हैं। ऐसा स्मृतियोंका कथन है। [इन पाँच तरहके जलोंसे मस्तकपर अभिषेक करना पुनः पाँच प्रकारका खान - इस तरह पहलेके पाँच स्नानोंके साथ मिलकर यह दस प्रकारका स्नान माना गया है] त्याग, तीर्थ-स्नान, यज्ञ, व्रत और होम आदिके द्वारा जो फल मिलता है, वही फल धीर पुरुष उपर्युक्त स्त्रानोंसे प्राप्त कर लेता है। जो प्रतिदिन पितरोंका तर्पण नहीं करता, वह पितृघातक है, उसे नरकमें जाना पड़ता है। सन्ध्या नहीं करनेवाला द्विज ब्रह्महत्यारा है जो ब्राह्मण, मन्त्र, व्रत, 1 १५५ *********** वेद, विद्या, उत्तम गुण, यज्ञ और दान आदिका त्याग कर देता है, वह अधमसे भी अधम है। मन्त्र और संस्कारसे हीन, शौच और संयमसे रहित, बलिवैश्व किये बिना ही अन्न भोजन करनेवाले, दुरात्मा, चोर, मूर्ख, सब प्रकारके धर्मोसे शून्य, कुमार्गगामी, श्राद्ध आदि कर्म न करनेवाले, गुरु सेवासे दूर रहनेवाले, मन्त्रज्ञानसे वञ्चित तथा धार्मिक मर्यादा भङ्ग करनेवाले ये सभी ब्राह्मण अधमसे भी अधम हैं। उन दुष्टोंसे बात भी नहीं करनी चाहिये। वे सब के सब नरकगामी होते हैं। उनका आचरण दूषित होता है; अतएव वे अपवित्र और अपूज्य होते हैं जो द्विज तलवारसे जीविका चलाते, दासवृत्ति स्वीकार करते, बैलोंको सवारीमें जोतते, बढ़ईका काम करके जीवन निर्वाह करते, ऋण देकर व्याज लेते, बालिका और वेश्याओंके साथ व्यभिचार करते, चाण्डालोंके आश्रयमें रहते, दूसरोंके उपकारको नहीं मानते और गुरुकी हत्या करते हैं, वे सबसे अधम माने गये हैं। इनके सिवा दूसरे भी जो आचारहीन, पाखण्डी, धर्मकी निन्दा करनेवाले तथा भिन्न-भिन्न देवताओंपर दोषारोपण करनेवाले हैं, वे सभी द्विज ब्रह्मद्रोही हैं। नारद! अधम होनेपर भी ब्राह्मणका कभी वध नहीं करना चाहिये; क्योंकि उसको मारनेसे मनुष्यको ब्रह्महत्याका पाप लगता है 1 नारदजीने पूछा— सम्पूर्ण लोकोंके पितामह ! यदि ब्राह्मण ऐसे-ऐसे दुष्कर्म करनेके पश्चात् फिर पुण्यका अनुष्ठान करे तो वह किस गतिको प्राप्त होता है ? ब्रह्माजीने कहा- वत्स! जो सारे पाप करनेके पश्चात् भी इन्द्रियोंको वशमें कर लेता है, वह उन पापोंसे छुटकारा पा जाता है तथा पुनः ब्राह्मणत्व प्राप्त करनेके योग्य बन जाता है। इस विषयमें एक प्राचीन कथा सुनो, जो बड़ी सुन्दर और विचित्र है। पूर्वकालमें किसी ब्राह्मणका एक नौजवान पुत्र था। उसने जवानीकी उमंगमें मोहके वशीभूत होकर एक बार चाण्डालीके
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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