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________________ १४२ • अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . . [ संक्षिप्त पद्मपुराण शिव क्षणभरके लिये कामजनित विकारको प्राप्त हो गये। भगवान् रुद्रका वह नेत्र ऐसा भयंकर दिखायी देने लगा, किन्तु यह अवस्था अधिक देरतक न रही, कामदेवका मानो संसारका संहार करनेके लिये खुला हो । मदन पास कुचक्र समझकर उनके हृदयमें कुछ क्रोधका सञ्चार हो ही खड़ा था। महादेवजीने उस नेत्रको फैलाकर मदनको आया। उन्होंने धैर्यका आश्रय लेकर कामदेवके ही उसका लक्ष्य बनाया। देवतालोग 'त्राहि-त्राहि' प्रभावको दूर किया और स्वयं योगमायासे आवृत होकर कहकर चिल्लाते ही रह गये और मदन उस नेत्रसे दृढ़तापूर्वक समाधिमें स्थित हो गये।... निकली हुई चिनगारियोंमें पड़कर भस्म हो गया। उस योगमायासे आविष्ट होनेपर कामदेव जलने कामदेवको दग्ध करके वह आग समस्त जगत्को लगा, अतः वह वासनामय व्यसनका रूप धारण करके जलानेके लिये बढ़ने लगी। यह जानकर भगवान् शिवने उनके हृदयसे बाहर निकल आया। बाहर आकर वह उस कामानिको आमके वृक्ष, वसन्त, चन्द्रमा, एक स्थानपर खड़ा हुआ। उस समय उसकी सहायिका पुष्पसमूह, भ्रमर तथा कोयलके मुखमे बाँट दिया। रति और सखा वसंत-इन दोनोंने भी उसका अनुसरण महादेवजी बाहर और भीतर भी कामदेवके बाणोंसे विद्ध किया। फिर मदनने आमकी मौरका मनोहर गुच्छ लेकर थे, इसलिये उपयुक्त स्थानों में उस अग्निका विभाग करके उसमें मोहनास्त्रका आधान किया और उसे अपने वे उनमेंसे प्रत्येकको प्रज्वलित कामाग्निके ही रूपमें पुष्पमय धनुषपर रखकर तुरंत ही महादेवजीकी छातीमें देखने लगे। वह कामाग्नि सम्पूर्ण लोकको क्षोभमें मारा। इन्द्रियोंके समुदायरूप हृदयके बिंध जानेपर डालनेवाली है; उसके प्रसारको रोकना कठिन होता है। ___ कामदेवको भगवान् शिवके हारकी ज्वालासे भस्म हुआ देख रति उसके सखा वसन्तके साथ जोरजोरसे रोने लगी। फिर वह त्रिनेत्रधारी भगवान् चन्द्रशेखरकी शरणमें गयी और धरतीपर घुटने टेककर स्तुति करने लगी। रति बोली-जो सबके मन हैं, यह जगत् जिनका स्वरूप है और जो अद्भुत मार्गसे चलनेवाले है, उन कल्याणमय शिवको नमस्कार है। जो सबको शरण देनेवाले तथा प्राकृत गुणोंसे रहित हैं, उन भगवान् शङ्करको नमस्कार है। नाना लोकोंमें समृद्धिका विस्तार करनेवाले शिवको नमस्कार है। भक्तोंको मनोवाञ्छित वस्तु देनेवाले महादेवजीको प्रणाम है। कोंको उत्पन्न करनेवाले महेश्वरको नमस्कार है। प्रभो ! आपका स्वरूप अनन्त है; आपको सदा ही नमस्कार है। देव ! आप ललाटमें चन्द्रमाका चिह्न धारण करते हैं; आपको नमस्कार है। आपकी लीलाएँ असीम हैं। उनके द्वारा भगवान् शिवने कामदेवकी ओर दृष्टिपात किया। फिर आपकी उत्तम स्तुति होती रहती है। वृषभराज नन्दी तो उनका मुख क्रोधके आवेगसे निकलते हुए घोर आपका वाहन है। आप दानवोंके तीनों पुरोका अन्त हुङ्कारके कारण अत्यन्त भयानक हो उठा। उनके तीसरे करनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। आप सर्वत्र प्रसिद्ध नेत्रमें आगकी ज्वाला प्रज्वलित हो उठी। रौद्र शरीरधारी है और नाना प्रकारके रूप धारण किया करते हैं; आपको
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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