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________________ सृष्टिखण्ड ] ब्रह्माजीके यज्ञके ऋत्विजोंका वर्णन ************* ये त्वां सुरोत्तम गुरुं पुरुषा विमूढा जानन्ति नास्य जगतः सचराचरस्य । ऐश्वर्यमाननिगमानुशयेन पश्चा ते यातनां त्वनुभवन्त्यविशुद्धचित्ताः ॥ देवश्रेष्ठ ! जो मलिनहृदय मूढ पुरुष ऐश्वर्य, मान प्रतिष्ठा तथा वेदविद्याके अभिमानके कारण आपको इस चराचर जगत्‌का गुरु नहीं जानते, वे मृत्युके पश्चात् नरककी यातना भोगते हैं। पुलस्त्यजी कहते हैं— श्रीरघुनाथजीके इस प्रकार स्तुति करनेपर हाथमें त्रिशूल धारण करनेवाले वृषभध्वज भगवान् श्रीशङ्करने सन्तुष्ट हो हर्षमें भरकर कहा'रघुनन्दन ! आपका कल्याण हो। मैं आपके ऊपर बहुत सन्तुष्ट हूँ। आपने विमल वंशमें अवतार लिया है। आप जगत्के वन्दनीय हैं। मानव शरीरमें प्रकट होनेपर भी वास्तवमें आप देवस्वरूप हैं। आप जैसे रक्षकके द्वारा सुरक्षित हो देवता अनन्त वर्षोंतक सुखी रहेंगे। चिरकालतक उनकी वृद्धि होती रहेगी। चौदहवाँ वर्ष १०९ यह सुनकर श्रीरघुनाथजी श्रीशङ्करजीको प्रणाम करके शीघ्र ही वहाँसे चल दिये। इन्द्रमार्गा नदीके पास पहुँचकर उन्होंने अपनी जटा बाँधी फिर सब लोग महानदी नर्मदाके तटपर गये। वहाँ श्रीरामचन्द्रजीने लक्ष्मण और सीताके साथ स्नान किया तथा नर्मदाके जलसे देवताओं और अपने पितरोंका तर्पण किया। इसके बाद उन दोनों भाइयोंने एकाग्र मनसे भगवान् सूर्य तथा अन्यान्य देवताओंको बारम्बार मस्तक झुकाया । जैसे भगवान् श्रीशङ्कर पार्वती और कार्तिकेयके साथ स्नान करके शोभा पाते हैं, उसी प्रकार सीता और लक्ष्मणके साथ नर्मदामें नहाकर श्रीरामचन्द्रजी भी सुशोभित हुए। —★— भीष्मजीने पूछा- ब्रह्मन् ! लोकविधाता भगवान् ब्रह्माजीने किस समय यज्ञसम्बन्धी सामग्रियाँ एकत्रित करके उनसे यज्ञ करना आरम्भ किया? वह यज्ञ जैसा और जिस प्रकार हुआ था, वह सब मुझे बताइये । **** पुलस्त्यजीने कहा- राजन् ! यह तो मैं पहले ही बता चुका हूँ कि जब स्वायम्भुव मनु भूलोकके राज्य - सिंहासनपर प्रतिष्ठित हुए, उस समय ब्रह्माजीने समस्त प्रजापतियोंको उत्पन्न करके कहा- 'तुमलोग सृष्टि करो, और स्वयं वे पुष्करमें जा यज्ञ-सामग्री एकत्रित करके अग्निशालामें स्थित हो यज्ञ करने लगे ब्रह्माजी समस्त देवताओं, गन्धर्वो तथा अप्सराओंको भी वहाँ ले गये थे। ब्रह्मा, उद्गाता, होता और अध्वर्यु — ये चार प्रधानरूपसे यज्ञके निर्वाहक होते हैं। इनमेंसे बीतनेपर जब आप अयोध्याको लौट जायेंगे, उस समय इस पृथ्वीपर रहनेवाले जो-जो मनुष्य आपका दर्शन करेंगे, वे सभी सुखी होंगे। तथा उन्हें अक्षय स्वर्गका निवास प्राप्त होगा। अतः आप देवताओंका महान् कार्य करके पुनः अयोध्यापुरीको लौट जाइये। ब्रह्माजीके यज्ञके ऋत्विजोंका वर्णन, सब देवताओंको ब्रह्माद्वारा वरदानकी प्राप्ति, श्रीविष्णु और श्रीशिवद्वारा ब्रह्माजीकी स्तुति तथा ब्रह्माजीके द्वारा भिन्न-भिन्न तीर्थोंमें अपने नामों और पुष्करकी महिमाका वर्णन प्रत्येकके साथ अन्य तीन व्यक्ति परिवाररूपमें रहते हैं, जिन्हें ये स्वयं ही निर्वाचित करते हैं। ब्रह्मा, ब्राह्मणाच्छंसी, पोता तथा आग्नीध – इन चार व्यक्तियोंका एक समुदाय होता है। इन सबको ब्रह्माका परिवार कहते हैं। ये चारों व्यक्ति आन्वीक्षिकी (तर्क शास्त्र) तथा वेदविद्यामें प्रवीण होते हैं। उद्वाता, प्रत्युद्वाता, प्रतिहर्ता और सुब्रह्मण्य – इन चार व्यक्तियोंका दूसरा समुदाय उद्गाताका परिवार कहलाता है। होता, मैत्रावरुणि, अच्छावाक और ग्रावस्तुत- इन चार व्यक्तियोंका तीसरा समुदाय उद्गाताका परिवार होता है। अध्वर्यु, प्रतिप्रस्थाता, नेष्टा और उन्नेता- इन चारोंका चौथा समुदाय अध्वर्युका परिवार माना गया है। शन्तनुनन्दन ! वेदके प्रधान प्रधान विद्वानोंने ये सोलह ऋत्विज् बताये हैं स्वयम्भू ब्रह्माजीने तीन सौ छाछठ
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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