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________________ सृष्टिखण्ड ] . सत्सङ्गके प्रभावसे पाँच प्रेतोंका उद्धार और पुष्कर तथा प्राची सरस्वतीका माहात्म्य . १०१ है; जो मनुष्य सरस्वती-तटवर्ती तीर्थोंमें उक्त वस्तुओका ब्रह्मकुमारी सरस्वती उन सुरेश्वरोंकी पूजा करके फिर दान करते है, उनका दान धर्मका साधक और अत्यन्त अपनी सखियोंसे मिली। ज्येष्ठ और मध्यम पुष्करके उत्तम माना गया है। जो स्त्री या पुरुष संयमसे रहकर बीच उनका विश्वविख्यात समागम हुआ था। वहाँ प्रयत्नपूर्वक उन तीर्थोंमें उपवास करते हैं, वे ब्रह्मलोकमें सरस्वतीका मुख पश्चिम दिशाकी ओर और गङ्गाका जाकर यथेष्ट आनन्दका अनुभव करते हैं। जो स्थावर या उत्तरकी ओर है। तदनन्तर, पुष्करमें आये हुए समस्त जङ्गम प्राणी प्रारब्ध कर्मका क्षय हो जानेपर सरस्वतीके देवता सरस्वतीके दुष्कर कर्मका महत्त्व समझकर उसकी तटपर मृत्युको प्राप्त होते हैं, वे सब हठात् यज्ञके सम्पूर्ण स्तुति करने लगे। श्रेष्ठ फल प्राप्त करते हैं। जिनका चित्त जन्म और मृत्यु । देवता बोले-देवि! तुम्हीं धृति, तुम्हीं मति, आदिके दुःखसे पीड़ित है, उन मनुष्यों के लिये सरस्वती तुम्हीं लक्ष्मी, तुम्ही विद्या और तुम्हीं परागति हो। श्रद्धा, नदी धर्मको उत्पन्न करनेवाली अरणीके समान है। अतः परानिष्ठा, बुद्धि, मेघा, धृति और क्षमा भी तुम्ही हो। मनुष्योंको प्रयत्नपूर्वक उत्तम फल प्रदान करनेवाली तुम्हीं सिद्धि हो, तुम्हीं स्वाहा और स्वधा हो तथा तुम्हीं महानदी सरस्वतीका सब प्रकारसे सेवन करना चाहिये। परम पवित्र मत (सिद्धान्त) हो। सन्ध्या, रात्रि, प्रभा, जो सरस्वतीके पवित्र जलका नित्य पान करते हैं, वे भूति, मेघा, श्रद्धा, सरस्वती, यज्ञविद्या, महाविद्या, मनुष्य नहीं, इस पृथ्वीपर रहनेवाले देवता हैं। द्विजलोग गुह्यविद्या, सुन्दर आन्वीक्षिकी (तर्कविद्या), त्रयीविद्या यज्ञ, दान एवं तपस्यासे जिस फलको प्राप्त करते हैं, वह (वेदत्रयी) और दण्डनीति-ये सब तुम्हारे ही नाम हैं। यहाँ स्नान करनेमात्रसे शूद्रोंको भी सुलभ हो जाता है। समुद्रको जानेवाली श्रेष्ठ नदी ! तुम्हें नमस्कार है। महापातकी मनुष्य भी पुष्कर तीर्थक दर्शनमात्रसे पुण्यसलिला सरस्वती! तुम्हें नमस्कार है। पापोंसे पापरहित हो जाते हैं और शरीर छूटनेपर स्वर्गको जाते छुटकारा दिलानेवाली देवी! तुम्हें नमस्कार है। हैं। पुष्करमें उपवास करनेसे पौण्डरीक यज्ञका फल वराङ्गने ! तुम्हें नमस्कार है। मिलता है। जो वहाँ अपनी शक्तिके अनुसार प्रतिमास... देवताओंने जब इस प्रकार उस दिव्य देवीका भक्तिपूर्वक ब्राह्मणको तिलका दान करता है, वह स्तवन किया, तब वह पूर्वाभिमुख होकर स्थित हुई। वैकुण्ठधामको प्राप्त होता है। जो मनुष्य वहाँ शुद्ध ब्रह्माजीके कथनानुसार वही प्राची सरस्वती है। सम्पूर्ण वृत्तिसे रहकर तीन राततक उपवास करते हैं और देवताओंसे युक्त होनेके कारण देवी सरस्वती सब तीर्थोंमें ब्राह्मणोंको धन देते हैं, वे मरनेके पश्चात् ब्रह्माका रूप प्रधान हैं। वहाँ सुधावट नामका एक पितामह-सम्बन्धी धारण कर विमानपर आरूढ़ हो ब्रह्माजीके साथ सायुज्य तीर्थ है, जिसके दर्शनमात्रसे महापातकी पुरुष भी शुद्ध मोक्षको प्राप्त होते हैं। हो जाते हैं और ब्रह्माजीके समीप रहकर दिव्य भोग ___पुष्करमें गणोद्धेद तीर्थ है, जहाँ नदियोंमें श्रेष्ठ भोगते हैं। जो नरश्रेष्ठ वहाँ उपवास करते हैं, वे मृत्युके गङ्गाजी सरस्वतीको देखनेके लिये आयी थीं। उस समय पश्चात् हंसयुक्त विमानपर आरूढ़ हो निर्भयतापूर्वक वहाँ आकर गङ्गाजीने कहा-'सखी! तुम बड़ी शिवलोकको जाते है। जो लोग वहाँ शुद्ध अन्तःकरणसौभाग्यशालिनी हो। तुमने देवताओंका वह दुष्कर कार्य वाले ब्रह्मज्ञानी महात्माओंको थोड़ा भी दान करते हैं, किया है, जिसे दूसरा कोई कभी नहीं कर सकता था। उनका वह दान उन्हें सौ जन्मोंतक फल देता रहता है। महाभागे! इसीलिये देवता भी तुम्हारा दर्शन करने जो मनुष्य वहाँ टूटे-फूटे तीर्थोका जीर्णोद्धार करते हैं, वे आये हैं। तुम मन, वाणी, शरीर और क्रियाद्वारा इनका ब्रह्मलोकमें जाकर सुखी एवं आनन्दित होते हैं। जो सत्कार करो।' - मनुष्य वहाँ ब्रह्माजीकी भक्तिके परायण हो पूजा, जप ___पुलस्त्यजी कहते हैं-गङ्गाजीके ऐसा कहनेपर और होम करते हैं, उन्हें वह सब कुछ अनन्त पुण्यफल
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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