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________________ १०० • अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिा पापुराण साधनकी आवश्यकता है तो तुम आलस्य छोड़कर पूर्ण नक्षत्र हो तो भी वह तिथि मुनियोंद्वारा परम पुण्यदायिनी प्रयत्न करके सत्पुरुषोंके साथ वार्तालाप-सत्सङ्ग करो। बतलायी गयी है और यदि उस तिथिको रोहिणी नक्षत्र यह पाँच प्रेतोंकी कथा सम्पूर्ण धोका तिलक है। जो हो तो वह महाकार्तिकी पूर्णिमा कहलाती है। उस दिनका मनुष्य इसका एक लाख पाठ करता है, उसके वंशमें स्रान देवताओंके लिये भी दुर्लभ है। यदि शनिवार, कोई प्रेत नहीं होता। जो अत्यन्त श्रद्धा और भक्तिके रविवार तथा बृहस्पतिवार-इन तीनों दिनों से किसी साथ इस प्रसङ्गका बारम्बार श्रवण करता है, वह भी दिन उपर्युक्त तीन नक्षत्रों से कोई नक्षत्र हो तो उस दिन प्रेतयोनिमें नहीं पड़ता। पुष्करमें स्नान करनेवालेको निश्चय ही अश्वमेध यज्ञका ... भीष्मजीने पूछा-ब्रह्मन् ! पुष्करकी स्थिति पुण्य होता है। उस दिन किया हुआ दान और पितरोंका अन्तरिक्षमें क्योंकर बतलायी जाती है ? धर्मशील मुनि तर्पण अक्षय होता है। यदि सूर्य विशाखा नक्षत्रपर और इस लोकमें उसे कैसे प्राप्त करते हैं और किस-किसने चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्रपर हों तो पद्मक नामका योग होता प्राप्त किया है? है, यह पुष्करमे अत्यन्त दुर्लभ माना गया है। जो पुलस्त्यजी बोले-राजन् ! एक समयकी बात आकाशसे उतरे हुए ब्रह्माजीके इस शुभ तीर्थमें स्रान है-दक्षिणभारतके निवासी एक करोड़ ऋषि पुष्कर करते हैं, उन्हें महान् अभ्युदयशाली लोकोंकी प्राप्ति होती तीर्थमें स्नान करनेके लिये आये; किन्तु पुष्कर आकाशमें है। महाराज ! उन्हें दूसरे किसी पुण्यके करने-नस्थित हो गया। यह जानकर वे समस्त मुनि प्राणायाममें करनेकी लालसा नहीं रहती। यह मैंने सच्ची बात कही तत्पर हो परब्रह्मका ध्यान करते हुए बारह वर्षोंतक वहीं है। पुष्कर इस पृथ्वीपर सब तीर्थोंमें श्रेष्ठ बताया गया खड़े रह गये। तब ब्रह्माजी, इन्द्र आदि सम्पूर्ण देवता है। संसारमें इससे बढ़कर पुण्यतीर्थ दूसरा कोई नहीं है। तथा ऋषि-महर्षि आकाशमें अलक्षित होकर उन्हें कार्तिककी पूर्णिमाको यह विशेष पुण्यदायक होता है। [पुष्कर-प्राप्तिके लिये] अत्यन्त दुष्कर नियम बताते हुए वहाँ उदुम्बर वनसे सरस्वतीका आगमन हुआ है और बोले-'द्विजगण! तुमलोग मन्त्रद्वारा पुष्करका उसीके जलसे मुनिजन-सेवित पुष्कर तीर्थ भरा हुआ है। आवाहन करो। 'आपो हि ष्ठा मयो' इत्यादि तीन सरस्वती ब्रह्माजीकी पुत्री है। वह पुण्यसलिला एवं ऋचाओंका जप करनेसे यह तीर्थ तुम्हारे समीप आ पुण्यदायिनी नदी है। वंशस्तम्बसे विस्तृत आकार धारण जायगा और अघमर्षण-मन्त्रका जप करनेसे पूर्ण करके वह उत्तरकी ओर प्रवाहित हुई है। इस रूपमें कुछ फलदायक होगा।' उन ब्रह्मर्षियोंकी बात समाप्त होनेपर दूर जाकर वह फिर पश्चिमकी ओर बहने लगती है और उन सब मुनियोंने वैसा ही किया। ऐसा करनेसे वे परम वहाँसे प्राणियोंपर दया करनेके लिये अदृश्यभावका पावन बन गये-उन्हें पुष्कर-प्राप्तिका पूरा-पूरा फल परित्याग करके स्वच्छ जलकी धारा बहाती हुई प्रकट मिल गया। __ रूपमें स्थित होती है। कनका, सुप्रभा, नन्दा, प्राची और राजन् ! जो कार्तिककी पूर्णिमाको पुष्करमें नान सरस्वती-ये पाँच स्रोत पुष्करमें विद्यमान हैं। इसलिये करता है, वह परम पवित्र हो जाता है। ब्रह्माजीके सहित ब्रह्माजीने सरस्वतीको पञ्चस्रोता कहा है। उसके तटपर पुष्कर तीर्थ सबको पुण्य प्रदान करनेवाला है। वहाँ अत्यन्त सुन्दर तीर्थ और मन्दिर हैं, जो सब ओरसे सिद्धों आनेवाले सभी वर्गों के लोग अपने पुण्यकी वृद्धि करते और मुनियोंद्वारा सेवित हैं। उन सब तीर्थोंमें सरस्वती ही हैं। वे मन्त्रज्ञानके बिना ही ब्राहाणोंके तुल्य हो जाते है, धर्मकी हेतु है। वहाँ स्नान करने,जल पीने तथा सुवर्ण इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। यदि कार्तिककी आदि दान करनेसे महानदी सरस्वती अक्षय फल उत्पन्न पूर्णिमाको कृत्तिका नक्षत्र हो तो उसे स्नान-दानके लिये करती है। अत्यन्त उत्तम समझना चाहिये। यदि उस दिन भरणी.. मुनीश्वरगण अन्न और वस्त्रका दान श्रेष्ठ बतलाते
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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