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मात्र एक परत, कहते हैं। तुम चट्टान के भीतर जा सकते हो, तुम्हें चट्टान की परतें मिलेंगी, लेकिन
और कुछ नहीं मिलेगा। एक वृक्ष को देखो और तुम देह के अतिरिक्त कुछ और भी पाओगे। वृक्ष मात्र एक शरीर ही नहीं है। सूक्ष्म जगत का भी कुछ इसके साथ घटित हुआ है। यह उतना मुर्दा नहीं है जितनी कि चट्टान है; यह अधिक जीवित है-इसके भीतर एक सूक्ष्म शरीर अस्तित्व मे आ चुका है। यदि तम वृक्ष के साथ एक चट्टान जैसा व्यवहार करते हो, तो तुम इसके साथ दुर्व्यवहार करते हो। तब तुमने उस सूक्ष्म विकास को खयाल में नहीं रखा है जो चट्टान से वृक्ष के अंतराल में हो चुका है। वृक्ष उच्च विकसित है। यह अधिक जटिल है। फिर किसी पशु को खयाल में लो-और अधिक जटिल। सूक्ष्म शरीर की एक और परत विकसित हो चुकी है।
मनुष्य के पांच शरीर, पांच बीज होते हैं, इसलिए यदि तुम मनुष्य और उसके मन को वास्तव में समझना चाहते हो-और यदि तुम सारी जटिलता को नहीं समझते तो इसके पार जाने का कोई उपाय नहीं है-तब हमको बहुत धैर्यवान और सावधान होना पड़ेगा। यदि तुम एक कदम भी चूक गए तो तुम अपने अस्तित्व के अंतर्तम तल तक पहुंचने में समर्थ नहीं हो पाओगे। वह शरीर जिसे तुम दर्पण में देख सकते हो तुम्हारे अस्तित्व का बाह्यतम खोल है। अनेक लोगों ने गलती से इसी को सब कुछ समझ लिया है।
मनोविज्ञान में 'व्यवहारवाद' नाम का आंदोलन है, जो सोचता है कि मनुष्य एक शरीर के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। ऐसे लोगों से सदैव सचेत रहो जो 'इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं की बात करते हैं। मनुष्य सदा से किसी 'इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं' से अधिक रहा है। व्यवहारवादी लोग : पावलफ, बीफ. स्किनर और उनके साथी सोचते हैं कि मनुष्य केवल एक शरीर हैं-ऐसा नहीं है कि तुम्हारे पास शरीर है, ऐसा नहीं है कि तुम शरीर में हो, बल्कि केवल यही कि तुम शरीर हो। तब मनुष्य को उसकी निम्नतम पायदान तक नीचे गिरा दिया जाता है। और निःसंदेह वे इसको सिद्ध कर सकते हैं। वे इस बात को सिद्ध कर सकते हैं क्योंकि मनुष्य का अधिकतम स्थल भाग वैज्ञानिक प्रयोग के लिए सरलता से उपलब्ध है। मनुष्य के अस्तित्व की सूक्ष्म परतें वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए इतनी सरलता से उपलब्ध नहीं हैं। या दूसरे शब्दों में कहा जाए कि वैज्ञानिक उपकरण अब तक इतने सूक्ष्मग्राही नहीं हो पाए हैं। ये उपकरण मनुष्य की सूक्ष्म परतों को स्पर्श नहीं कर सकते हैं।
फ्रायड, एडलर मनुष्य के भीतर थोड़ा गहरे उतरते हैं। फिर मनुष्य मात्र एक शरीर ही नहीं रहता। वे दूसरे -शरीर को थोड़ स्पर्श करते हैं, जिसको पतंजलि प्राणमय कोष, जीवंत शरीर, ऊर्जा शरीर कहते हैं। लेकिन फ्रायड और एडलर ने इसका एक बहुत छोटा हिस्सा ख्या है-एक भाग का स्पर्श फ्रायड ने किया है और दसरे भाग का एडलर ने।
फ्रायड मनुष्य को मात्र कामुकता के तल पर गिरा देता है। यह भी मनुष्य में है, लेकिन यही पूरी कथा नहीं है। एडलर मनुष्य को केवल महत्वाकांक्षा, शक्ति की अभीप्सा के तल तक नीचे ले आता है।