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________________ मनुष्य में वह भी है। मनुष्य बहुत विराट है, बहुत जटिल है। मनुष्य वाद्ययंत्रों का एक समूह है, इसमें अनेक वादययंत्र सम्मिलित हैं। लेकिन सदा से ऐसा हुआ है। यह एक विपदा है, लेकिन ऐसा सदा ही हुआ है : जब किसी को कुछ मिल जाता है तो वह अपनी इस खोज से एक पूरा दर्शनशास्त्र बनाने का प्रयास करता है। इसके प्रति एक गहरा प्रलोभन होता है। फ्रायड को संयोगवश कामवासना मिल गई, और वह भी पूरी की पूरी कामवासना नहीं। उसको केवल दमित कामवासना मिली। उसका सामना दमित लोगों से हुआ। ईसाई धर्म द्वारा सिखाए गए दमन ने मनुष्य में अनेक अवरोध निर्मित कर दिए, जहां पर ऊर्जा अपनें भीतर वर्तुल बना कर अटक गई, अवरुद्ध हो गई, अब वह प्रवाहमान न रही। उसे मनुष्य की ऊर्जा की धारा में ये चट्टान जैसे अवरोध मिले, और उसने सोचा और अहंकार सदैव इसी ढंग से सोचता हैकि उसने परम सत्य को पा लिया है। एडलर को, जो कि दूसरे ढंग से कार्य कर रहा था, ऊर्जा का दूसरा अवरोध शारि।' अभीप्सा, मिल गया। फिर उसने इससे एक पूरा दर्शनशास्त्र निर्मित कर दिया। को खंडों में समझा गया है। इस संपूर्ण अस्तित्व में योग एक मात्र दर्शनशास्त्र है जो मनुष्य की संपूर्णता को खयाल में रखता है। जुग थोड़ा सा और आगे, और गहराई में गया। मनुष्य के तीसरे शरीर-मनोमय कोष का एक अंश उसे मिल गया, और उसने इसके आधार पर एक पूरे दर्शनशास्त्र का निर्माण कर दिया। समस्त भौतिक शरीर की व्यापक व्याख्या कर पाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है, क्योंकि यह शरीर अपने आप में अत्यंत जटिल है. लाखों कोशिकाएं एक गहन लयबद्धता में एक आश्चर्यजनक ढंग से कार्य कर रही हैं। जब अपनी मां के गर्भ में तुम्हारा सृजन हुआ था, तो तुम मात्र एक छोटी सी कोशिका थे। उस एक कोशिका में से दूसरी कोशिका जन्मी। कोशिका विकसित होती है और दो में विभाजित हो जाती है, और फिर ये दो कोशिकाएं विकसित होती हैं और चार में बंट जाता है। एक विभाजन के दवारा-और यह विभाजन बढ़ता चला जाता है तुम्हारे पास लाखों कोशिकाएं हैं। और ये सारी कोशिकाएं एक गहरे सहयोग में कार्य करती हैं, जैसे कि किसी ने उनको सम्हाल रखा हो। यह कोई अव्यवस्था नहीं है, तुम एक सुव्यवस्था हो। । और फिर कुछ कोशिकाएं तुम्हारी आंखें बन जाती हैं, कुछ कोशिकाएं तुम्हारे कान बन जाता है, कुछ कोशिकाएं तुम्हारे जनन अंग बन जाती हैं, कुछ कोशिकाएं तुम्हारी त्वचा बन जाती हैं, कुछ कोशिकाएं तुम्हारी अस्थियां, कुछ कोशिकाएं तुम्हारा मस्तिष्क, कुछ कोशिकाएं तुम्हारे नाखून और और वे सभी उसी एक कोशिका से आ रही हैं। वे सभी एक सी हैं। उनमें कोई गुणात्मक भेद नहीं है, किंतु वे कितनी भिन्नतापूर्वक कार्य करती हैं। आंखें देख सकती हैं, कान देख नहीं सकते, कान सुन सकते है, किंत संघ नहीं सकते। इसलिए वे कोशिकाएं न केवल लयबदधता से कार्य करती हैं बल्कि वे विशेषज्ञ हो जाती हैं। वे एक निश्चित विशेषज्ञता उपलब्ध कर लेती हैं। कुछ कोशिकाएं आंखें बन जाती है। क्या घटित हो गया है? किस प्रकार का प्रशिक्षण चल रहा है? एक विशेष प्रकार की कोशिकएं ही क्यों आंखें बन जाती हैं, और दूसरे विशेष प्रकार की कोशिकाएं ही क्यों कान बन जाती हैं, और फिर कुछ
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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