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हो, इससे कोई अंत्र नहीं पड़ता, लेकिन आनंद की सारी खोज परमात्मा की खोज है-किसी ऐसी बात की खोज है जिसे थे कि तुम्हारा था और तुमने उसे खो
तुम जानते दिया।
इसीलिए सारे संतों ने कहा है : 'स्मरण करो।' बुद्ध इसे 'सम्यक स्मृति, ' ठीक से याद रखना, कहते
नक इसे 'नाम-स्मरण, ' नाम को याद रखना, पते को याद करना, कहते हैं। क्या तमने नहीं देखा है कि अनेक बार ऐसा होता है-तुम्हें कोई बात पता है, तुम कहते हो, 'यह ठीक मेरी जीभ की नोक पर रखी है, लेकिन फिर भी याद नहीं आ रही है। परमात्मा तम्हारी जीभ की नोक पर है।
एक छोटे से स्कूल में रसायन विज्ञान के अध्यापक ने ब्लैक बोर्ड पर एक रासायनिक यौगिक का सूत्र लिख दिया और उसने एक छोटे से बच्चे को खड़े होकर बताने को कहा कि यह सूत्र किस यौगिक का प्रतिनिधित्व करता है? बच्चे ने देखा और वह बोला : सर, यह तो बस मेरी जीभ की नोक पर रखा है, लेकिन मुझे याद नहीं आ रहा है।
शिक्षक ने कहा : इसे थूक दो! इसे फौरन थूक दो! यह पोटेशियम साइनाइड, तीव्रतम विष है।
परमात्मा भी जीभ की नोक पर है। और मैं तुमसे कहूंगा, इसे गटक लो! इसको गटक जाओ! इसे बाहर मत थूको! यह परमात्मा है! उसे तुम्हारे रक्त में घुल-मिल जाने दो। उसे अपने अंतर्तम की तरंगों का अवयव बन जाने दो। उसको अपने अस्तित्व के भीतर का गीत, नृत्य बन जाने दो।
शरीर के साथ यह तादात्म एक आदत है और कुछ नहीं। जब बच्चा पैदा होता है तो उसे पता नहीं होता कि वह कौन है और मां-बाप को कुछ पहचान निर्मित करना पड़ती है, अन्यथा वह इस संसार में खो जाएगा। उन्हें उसको बताना पड़ता है कि वह कौन है। वे भी नहीं जानते हैं। उन्हें एक झूठा लेबल निर्मित करना पड़ता है। उसको वे एक नाम दे देते है, वे उसे एक दर्पण दे देते हैं और वे उससे कहते हैं, देखो, यह है तुम्हारा चेहरा। देखो, यह है तुम्हारा नाम है। देखो, यह है तुम्हारा घर है। देखो, यह है तुम्हारी जाति, तुम्हारा धर्म, तुम्हारा देश। ये पहचाने उसे अनुभव करने में सहायक होती हैं कि वह-बिना जाने कि वह कौन है, कौन है। ये आदतें हैं।
फिर धीरे- धीरे उसका मन विकसित होना आरंभ होता है। यदि वह हिंदू घर में जन्मा है, तो वह गीता पढ़ता है, गीता की बात सुनता है। यदि उसका जन्म ईसाई घर में हुआ है, तो उसे चर्च लाया जाता है। एक नई पहचान आरंभ हो जाती है, यह अंतर्तम पहचान है-वह ईसाई,हिंदू मुसलमान बन जाता है। उसका जन्म भारत में हुआ था, वह भारतीय बन जाता है। चीन में वह चीनी बन जाता है। और वह स्वयं को उस देश की परंपराओं से संबदध करना आरंभ कर देता है। एक चीनी व्यक्ति स्वयं को चीनी परंपरा और इतिहास, चीन के अतीत से पहचानता है। फिर व्यक्ति घर जैसा अनुभव करता है-उसकी जड़ें सारी परंपरा में होती हैं। यदि व्यक्ति भारतीय है, उसकी जड़ें भारतीय परंपरा में होती