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हैं, व्यक्ति बेघर नहीं होता। उस व्यक्ति ने परंपरा में, देश में, इतिहास में महानायकों- राम, कृष्य में अपना ठिकाना बना लिया है- वह अब घरेलूपन अनुभव करता है। व्यक्ति ने अपना स्थान खोज लिया है, लेकिन यह कोई वास्तविक स्थान नहीं है। यह पहचान मात्र एक उपयोगिता है।
और फिर यह आदत इतनी मजबूत हो जाती है कि यदि किसी दिन तुम्हें पता लगे कि जो तुम स्वयं को समझ रहे थे—भारतीय, हिंदू मुसलमान, ईसाई, चीनी, कितना मूढ़तापूर्ण है यह सब, वह तुम नहीं हो लेकिन फिर भी पुरानी आदत छूटेगी नहीं।
बड रसल ने लिखा है कि उसे पता है कि अब वह ईसाई नहीं रहा, लेकिन किसी वजह से वह बारबार इसे भूलता रहता है वह सारे संस्कार... तुम परंपरा के विरोध में जा सकते हो, लेकिन फिर भी तुम इससे चिपकोगे। वे लोग भी जो क्रांतिकारी हो गए, अपनी परंपरा से भले ही वह नकारात्मक ढंग हो, आसक्त रहते हैं। यदि कोई हिंदू हिंदू धर्म के विरोध में चला जाता है, फिर भी वह कृष्ण के विरोध में बात करेगा, फिर भी वह राम के विरोध में बात करेगा। यदि कोई मुसलमान अपनी परंपरा के विरोध में जाता है, फिर भी वह कुरान की आलोचना करेगा; निःसंदेह अब वह आलोचना कर रहा है, मोहम्मद की आलोचना कर रहा है, किंतु वह परंपरा से चिपका रहता है।
यथार्थतः विद्रोही वह है जो परंपरा को इतनी गहराई से इतना आत्यंतिक रूप से त्याग देता है कि वह इसके विरुद्ध भी नहीं होता। वह न पक्ष में होता है, न विपक्ष में, तब व्यक्ति मुक्त है। यदि तुम विरोध में हो, तो तुम अभी भी मुक्त नहीं हो। यदि तुम किसी बात के विरोध में हो, तो तुम पाओगे कि तुम उसी चीज से बंध गए हो, एक गांठ लग गई है।
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और आदतें अचेतन में चली जाती हैं। मैं एक बहुत बड़े विद्वान, बहुत प्रसिद्ध, बहुत शिक्षित और वास्तव में महान बुद्धिजीवी को जानता हूं। वे एक लंबे समय कोई चालीस सालों से जे. कृष्णमूर्ति के अनुयायी थे। और जब कभी वे मुझे मिलने आएंगे, वे बार-बार कहेंगे, ध्यान व्यर्थ बात है। आप लोगों को क्या सिखा रहे हैं? कृष्णमूर्ति कहते हैं-ध्यान व्यर्थ बात है, सारे मंत्र बस पुनरुक्तियां हैं; और सभी ध्यान-प्रयोग, सभी विधियां मन को संस्कारित करती हैं और में ध्यान नहीं करता।
मैंने उन पर सत्य की चोट करने के लिए उचित समय की प्रतीक्षा की। फिर वे बीमार पड़े, उन्हें दिल का दौरा पड़ा। उनको देखने के लिए मैं भागा हुआ गया और वे दोहरा रहे थे. राम राम राम........ इस पर विश्वास न कर सका। मैंने उनका सिर हिलाया और कहा. यह आप क्या कर रहे है? राम राम राम........ आप तो कृष्णमूर्ति के अनुयायी हैं। क्या आप भूल गए?
वे बोले, उस बारे में सब कुछ भूल जाएं। मैं मर रहा हूं। और कौन जाने? हो सकता है कि कृष्णमूर्ति गलत हों। और बस राम राम राम दोहराने में कोई हर्जा भी नहीं है, और इससे बहुत सांत्वना ि रही है। इस आदमी को क्या हुआ? चालीस साल तक कृष्णमूर्ति को सुना, लेकिन उसका हिंदू मन वहीं रहा। अंतिम क्षण में मन प्रतिक्रिया आरंभ कर देगा नहीं, वे विद्रोही नहीं हैं वे सोच रहे थे कि वे