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-वह जाबाला एक दुर्लभ मां थी। उसने कहा, मुझे शात नहीं, तुम्हारा पिता कौन है? उसने स्वीकार किया कि जब वह युवा थी तो वह अनेक पुरुषों के साथ रही थी, उसने अनेक पुरुषों को प्रेम किया था, इसलिए वह नहीं जानती है कि पिता कौन है। एक सच्ची मां। और बच्चा भी बहादुर था। उसने यही अपने गुरु से कहा, उसने ठीक-ठीक वे ही शब्द दोहरा दिए जो मां ने कहे थे।
यह सत्य गौतम को जंच गया। और उन्होंने कहा, तुम एक सच्चे ब्राह्मण हो। यह ब्राह्मण होने की परिभाषा है, एक सच्चा व्यक्ति ही ब्राह्मण है। ब्राह्मण को किसी जाति से कुछ भी लेना देना नहीं है। यह शब्द ही ब्रह्म से आता है, इसका अर्थ है परमात्मा का खोजी, एक सच्चा प्रमाणिक खोजी।
स्मरण रखो जितना अधिक तुम असत्यों में संलग्न होते जाते हो, आरंभ में वे चाहे कितने लाभकारी प्रतीत होते हों, अंत में तुम पाओगे कि उन्होंने तुम्हारे समग्र अस्तित्व को विषाक्त कर दिया है।
प्रमाणिक बनो। यदि तुम प्रमाणिक हो तो कभी न कभी तुम खोज हो लोगे कि तुम देह नहीं हो। क्योंकि प्रमाणिकता एक असत्य में विश्वास नहीं करती रह सकती है। स्पष्टता का उदय होता है, आंखें
और ग्रहणशील हो जाती हैं और तुम देख सकते हो कि तुम शरीर में निश्चित रूप से हो लेकिन तुम शरीर नहीं हो। जब हाथ टूट जाता है तो तुम नहीं टूटते। जब तुम्हारे पांव में अस्थिभंग होता है तो तुम खंडित नहीं होते। जब सर में दर्द होता है, तो तुम सरदर्द को जानते हो, तुम स्वयं तो सरदर्द नहीं हो। जब तुम्हें भूख अनुभव होती है, तुम जानते हो कि भूख लगी है, लेकिन तुम भूखे नहीं हो। धीरेधीरे मूलभूत असत्य विनष्ट हो जाता है। तब तुम और गहराई में जा सकते हो और अपने विचारों, स्वप्नों को अपनी चेतना में तैरता हुआ देख सकते हो। तभी तुम विभेद कर सकते हो, अंतर कर सकते हो-जिसे पतंजलि विवेक कहते हैं तभी तुम विभेद कर सकते हो कि क्या बादल है और क्या
आकाश।
विचार रिक्त स्थान में घूमते बादलों की भांति हैं। वह रिक्त स्थान ही वास्तविक आकाश है, बादल नहीं - वे आते हैं और चले जाते हैं। विचार नहीं बल्कि वह रिक्त स्थान, जिस में वे विचार प्रकट और विलीन होते हैं।
अब मैं तुम्हें तुम्हारे अस्तित्व की एक परम आधारभूत यौगिक संरचना के बारे में बताता हूं। जैसे कि भौतिकविद सोचते हैं कि यह सब और कुछ नहीं बल्कि इलेक्ट्रानों, विद्युत-ऊर्जा से निर्मित है, योग की सोच है कि यह सब और कुछ नहीं वरन ध्वनि-अणुओं से निर्मित है। अस्तित्व का मूल तत्व, योग के लिए, ध्वनि है, क्योंकि जीवन और कुछ नहीं बल्कि एक तरंग है। जीवन और कुछ नहीं बल्कि ध्वनि की एक अभिव्यक्ति है। ध्वनि से हमारा आगमन होता है और पुन: हम ध्वनि में विलीन हो जाते हैं। मौन,आकाश, शून्यता, अनस्तित्व, तुम्हारा अंतर्तम केंद्र, चक्र की धुरी है। जब तक कि तुम उस मौन, उस आकाश तक न आ जाओ, जहां तुम्हारे शुद्ध अस्तित्व के अतिरिक्त और कुछ नहीं बचता, मुक्ति उपलब्ध नहीं होती। यह योग का संरचना तंत्र है।