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जीवन में उतरते हो, तो क्रोध भी होता है वहां। तो जब तुम प्रेम करते हो किसी व्यक्ति को, तो तुम स्वीकार कर लेते हो क्रोध को। जब तुम प्रेम करते हो किसी व्यक्ति को तुम उसकी उदासी को भी स्वीकार कर लेते हो।
कई बार तुम दूर चले जाते हो मात्र फिर से ज्यादा निकट आने को ही। वस्तुत: एक गहरी प्रक्रिया है : प्रेमी लड़ते हैं फिर-फिर प्रेम में पड़ने को ही, ताकि वे फिर और फिर और फिर हनीमून मना सकें। प्रेम से भयभीत मत हो जाना। चीज तो केवल एक ही है जिससे कि किसी को भयभीत होना चाहिए,
और वह है भय। भय से भयभीत होना और कभी भयभीत मत होना किसी दूसरी चीज से, क्योंकि भय अपंग कर देता है। वह विषमय होता है, वह आत्मघाती होता है। बढ़ो! उसके बाहर कूद जाओ! जो कुछ तुम चाहते हो वही करो, लेकिन भय को लेकर ही मत ठहर जाना क्योंकि वह नकारात्मक अवस्था होती है। और यदि तुम चूक जाते हो प्रेम को...।
मेरे देखे, प्रेम कोई बड़ी समस्या नहीं है, क्योंकि मैं तुमसे और आगे दूर देखता हूं। यदि तुम प्रेम को चूकते हो, तो तुम चूक जाओगे प्रार्थना को, और मेरे लिए वही है वास्तविक समस्या। तुम्हारे लिए शायद अभी भी यह कोई समस्या न होगी। यदि भय है समस्या, तो प्रेम भी तुम्हारे लिए कोई समस्या नहीं है अभी, तो कैसे तुम सोच सकते हो प्रार्थना के बारे में? लेकिन मुझे दिखाई पड़ता है कि किस प्रकार जिंदगी का पूरा सिलसिला चलता है। यदि प्रेम चूक जाता है तो तुम कभी प्रार्थना नहीं कर सकते, क्योंकि प्रार्थना है ब्रह्मांड का प्रेम। तुम प्रेम से कतरा कर नहीं पहुंच सकते प्रार्थना तक। बहुत लोगों ने की है कोशिश; वे मृत पड़े हैं मठों में। संसार भर में बहुत लोग कर चुके हैं कोशिश। भय के कारण, उन्होंने पूरी तरह प्रेम से बचने की कोशिश की है। वे ढूंढने की कोशिश करते रहे हैं जल्दी पहुंचा देने वाला कोई रास्ता, प्रेम के भय से बच कर सीधे प्रार्थना तक जाता हुआ।
यही कुछ है जो साधु-मुनि करते आ रहे हैं सदियों-सदियों से। ईसाई और हिंदू और बौद्ध-सभी साधु-मुनि यही करते रहे हैं। वे कोशिश करते रहे हैं प्रेम से पूरी तरह कतराने की। उनकी प्रार्थना झूठी होगी। उनकी प्रार्थना में कोई जीवन नहीं होगा। उनकी प्रार्थना कहीं नहीं सुनी जाएगी, और ब्रह्मांड उनकी प्रार्थना का उत्तर नहीं देने वाला है। वे सारे ब्रह्मांड को धोखा देने की कोशिश कर रहे
हैं।
नहीं, व्यक्ति को प्रेम में से गुजरना ही होता है। भय से हट कर प्रेम में सरको। प्रेम से, तुम उतरोगे प्रार्थना में। प्रेम के साथ चली आती है निर्भयता। और परम निर्भयता होती है प्रार्थना में, क्योंकि तब मृत्यु का भी बिलकुल भय नहीं रहता। क्योंकि तब कोई मृत्यु होती ही नहीं। अस्तित्व के साथ ही इतने गहरे रूप से तार जुड़ा होता है तुम्हारा –कि भय का अस्तित्व कैसे बना रह सकता है?
इसलिए जरा कृपा करना, भय से आविष्ट मत हो जाना। उससे बाहर कूद पड़ना, और प्रेम की ओर बढ़ने लगना। प्रतीक्षा मत करो, क्योंकि किसी को रुचि नहीं है तुम में। यदि तुम प्रतीक्षा कर रहे हो