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किए चले जा सकते हो। मेरे देखे, तो ऐसा है : तुम प्रेम से बच कर नहीं निकल सकते, अन्यथा तुम आत्मघात करने लगोगे। लेकिन प्रेम बच कर निकल सकता है तुमसे, यदि तुम केवल प्रतीक्षा ही करते रहते हो। बढ़ो! प्रेम एक भावावेश होना चाहिए। वह होना चाहिए भावपूर्ण, जीवंत, प्राणवान। केवल तभी तुम किसी को आकर्षित कर सकते हो, तुम्हारी ओर झुकने के लिए। मुरदा हो, तो कौन परवाह करता है तुम्हारी? मुरदा होते हो, तो लोग छुटकारा पा लेना चाहेंगे तुमसे। मुरदा हो, तो तुम हो जाते हो एक उबाऊ घटना, एक ऊब। तुम्हारे चारों ओर, तुम बनाए रहते हो ऊब की ऐसी धूल-गर्द, कि कोई जो तुमसे मिल जाता हो वह अनुभव करेगा कि यह एक विपत्ति है।
प्रेममय रहना, सक्रिय रहना, निर्भय रहना-और बढ़ जाना। जिंदगी के पास तुम्हें देने को बहुत कुछ है यदि तुम निर्भय रहो तो। और जिंदगी जितना दे सकती है उससे कहीं ज्यादा है प्रेम के पास तुम्हें देने को, क्योंकि प्रेम सच्चा केंद्र है इस जीवन का। उसी केंद्र को पार कर तुम जा सकते हो दूसरे किनारे तक।
मैं इन्हें तीन चरण कहता हूं : जीवन, प्रेम और प्रकाश। जीवन तो पहले से ही वहां है। प्रेम तुम्हें उपलब्ध करना है। तुम इसे चूक सकते हो क्योंकि इसे दिया नहीं जाता है। व्यक्ति को निर्मित करना होता है इसे। जीवन एक सौंपी हुई घटना है; तुम जीवंत हो ही। वहां ठहर जाता है स्वाभाविक विकास। प्रेम तुम्हें खोज लेना है। निस्संदेह इसमें खतरे हैं, बाधाएं हैं, लेकिन वे सभी सुंदर बना देते हैं इसे।
तो तुम्हें खोज लेना होता है प्रेम को। और जब तुम खोज लेते हो प्रेम, केवल तभी तुम पा सकते हो प्रकाश। तब प्रार्थना उदित होती है। वस्तुत: प्रेम में गहरे उतरने पर, वे व्यक्ति, वे प्रेमी धीरे-धीरे, अचेतन रूप से बढ़ने लगते हैं प्रार्थना की ओर। क्योंकि प्रेम के उच्चतम क्षण ही निम्नतम क्षण होते हैं प्रार्थना के। सीमा बिंदु के बिलकुल करीब होती है प्रार्थना।
ऐसा घटा है बहुत प्रेमियों को। लेकिन वे प्रेमी जो अकस्मात शुरू कर देते हैं प्रार्थना, जब वे गहन प्रेम में हों-वे बहुत विरल होते हैं। मौन में एक दूसरे के साथ बैठे हुए ही, एक-दूसरे का हाथ थामे हुए, या कि समुद्र के किनारे साथ-साथ लेटे हुए, अनायास वे अनुभव कर लेते हैं एक अंतर्भावेग, पार उतरने की एक अंत: प्रेरणा।
इसीलिए भय पर बहुत ज्यादा ध्यान मत देना, क्योंकि वह खतरनाक है। यदि तुम बहुत ज्यादा ध्यान देते हो भय पर, तो तुम पोषण कर रहे होते हो उसका, और वह विकसित होगा। भय की ओर पीठ फेर लो और बढो प्रेम की तरफ।
पांचवां प्रश्न :