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यदि तुम्हारी समस्या भय की है, तब सोचना तुम्हारे व्यक्तित्व के बारे में, ध्यान देना उस पर तुमने जरूर अपने द्वार बंद कर दिए हैं प्रेम के प्रति, बस इतनी ही बात है। खोल दो उन द्वार - दरवाजों को। निस्संदेह संभावना होती है अस्वीकृत हो जाने की। लेकिन क्यों होना भयभीत ? दूसरा केवल 'नहीं' ही कह सकता है। 'नहीं' की पचास प्रतिशत संभावना वहां है, लेकिन 'नहीं' की इस पचास प्रतिशत संभावना के कारण ही तुम सौ प्रतिशत अप्रेम का जीवन
लेते हो।
संभावना है, तो क्यों करनी चिंता? बहुत सारे लोग हैं। यदि एक कह देता है नहीं, तो उसे चोट की भाति मत जान लेना, उसे घाव की भांति मत धारण कर लेना बस ऐसे मान लेना प्रेम घटित नहीं हुआ था। बिलकुल यही समझ लेना दूसरे व्यक्ति ने तुम्हारे साथ बढ़ने जैसा अनुभव नहीं किया। तुम्हारा एक दूसरे से मेल नहीं बैठा। तुम अलग-अलग प्रकार के हो वस्तुतः पुरुष ने या कि स्त्री ने तुम्हें 'न' नहीं कही; यह कोई व्यक्तिगत बात नहीं है। तुम अनुरूप नहीं बैठे; आगे बढ़ जाओ। और यह अच्छा है कि उस व्यक्ति ने 'न' कर दी, क्योंकि यदि तुम उस व्यक्ति के अनुरूप नहीं होते और वह व्यक्ति 'ही' कह देता है, तो तुम पड़ जाओगे वास्तविक अड़चन में। तुम जानते नही हो सकता है दूसरे ने तुम्हें मुसीबत की एक पूरी जिंदगी से बचा लिया हो उसे धन्यवाद देना, और आगे बढ़ जाना, क्योंकि सभी उपयुक्त नहीं बैठते सभी को ।
प्रत्येक व्यक्ति इतना बेजोड़ होता है कि यह वास्तव में ही कठिन होता है तुम्हारे साथ उपयुक्त बैठने वाला सही व्यक्ति खोज पाना किसी बेहतर दुनिया में, कहीं कभी भविष्य में लोगों में ज्यादा गतिमयता होगी, जिससे कि लोग कोशिश कर सकें और पा सकें अपने लिए ठीक स्त्री और ठीक पुरुष ।
गलतियां करने से डरना मत, क्योंकि यदि तुम्हें गलतियां करने का डर होता है तो तुम बिलकुल ही न चलोगे, और तुम पूरी जिंदगी चूक जाओगे न करने से बेहतर है गलती करना अस्वीकृत होना बेहतर है मात्र स्वयं तक ही भयभीत बने रहने से, कुछ आरंभ न करने सें-क्योंकि अस्वीकार ले आता है स्वीकार की संभावना। वह है स्वीकार का दूसरा पहलू ।
यदि कोई अस्वीकर करता है, तो कोई स्वीकार करेगा। व्यक्ति को चलते जाना होता है और ढूंढ लेना होता है सही व्यक्ति। जब सही व्यक्ति मिल जाता है, तो कोई चीज खट से कौंध जाती है। वे एक दूसरे के लिए ही बने होते हैं। वे साथ-साथ ठीक बैठते हैं ऐसा नहीं है कि वहां कोई संघर्ष न होगा, कि गुस्से और झगडे के क्षण न आएंगे; नहीं। यदि प्रेम जीवंत होता है तो संघर्ष भी होगा वहां। कई बार क्रोध के क्षण भी आएंगे। यह बात इतना ही दर्शाती है कि प्रेम एक जीवंत घटना है। कई बार चली आती है उदासी, क्योंकि जहां कहीं प्रसन्नता अस्तित्व रखती है, उदासी तो वहां होगी ही।
केवल विवाह में कोई उदासी नहीं होती, क्योंकि कोई प्रसन्नता नहीं होती। व्यक्ति केवल बरदाश्त करता है - यह एक समझौता होता है, यह एक नियंत्रित की हुई घटना होती है। जब तुम सचमुच ही