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चाटुकारिता और कण्ठाग्रता के कर्दम से निकालकर एक स्वच्छ-निर्मल नीर वाली नदी के तट पर ला खडा किया है।
कटारिया के निबन्ध छोटे-बड़े सब तरह के हैं। वे सुयोजित हैं, सहज हैं, असदिग्ध है, सुप्राह्य हैं, बिजली की छुहन की तरह का कम्पन और प्रकाश एक साथ लिये हुए हैं; धार्मिक शब्दावली मे मुझे कुछ उपमाएँ इन लेखो के लिए ढूंढना है तो मैं कहूंगा कि ये अनुप्रेक्षा की भाँति आत्म-दृष्टा और श्रमणवृत्ति की तरह निर्मम है।
अन्त में मैं साधुवाद दंगा श्री वीर निर्वाण ग्रन्थ-प्रकाशन समिति, इन्दौर को कि उसने विगत वर्षों मे तीन काम बडी सूझ-बूझ के और सारे देश में अपनी तरह के निराले किये हैं-मुनिश्री विद्यानन्दजी की कृतियो का प्रकाशन, श्री वीरेन्द्रकुमार जैन के उपन्यास 'अनुत्तर योगी तीर्थकर महावीर' का तीन खण्डो मे प्रकाशन तथा कटारियाजी की अद्वितीय कृति 'महावीर जीवन मे ?' का प्रकाशन ।
नेमीचंद जैन सपादक, 'तीर्थकर' इन्दौर
३ दिसम्बर, १९७५