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निवेदन
मादमी अपने काडियोग्राम या एक्सरे को टालता रहता है-कही कुछ खराबी निकल आई तो रोजमर्रा की जिन्दगी में बाधा पडेगी, चिकित्सक जो कहेगा वह स्वीकारना होगा । धर्म के मामले मे भी जो जिस राह पर चल पडा है, चलता ही जा रहा है तो वह रुककर सोचना चाहता है और न अपने अगीकृत जीवन व्यवहार को धर्म की तुला पर चढाना चाहता है। धीरे-धीरे हमने यह मान ही लिया कि धर्म अपनी जगह है और ससार के कारोबार अपनी जगह है-दोनो समानान्तर रेखाओ पर अलग-अलग दौड सकते है । नतीजा यह है कि अपने ही धर्म से मनुष्य बाहर है।
महावीर की अहिंसा तो धर्म भी नहीं, जीवन है। वे अहिंसा के महान् शिल्पी है । जिन पायो पर अहिंसा टिक सकती है वह उन्होने अनुभूत किया और अपनी विराट विरासत में अहिंसा-धर्मी को उन्होने सह-अस्तित्व, अनेकात और अपरिग्रह के सिद्धान्त सौंप दिए। इन पायो के बिना पच्चीस शताब्दियो से अहिंमा-धर्मी अहिंसा को साधने