________________
हैं। महावीर कहते हैं न पकड़ो, न छोड़ो-सहज बनो। बे-लगाव होने का अभ्यास कगे। पर हम जोड़ने में लगे हैं, जहां से जितना मिले पाने में लगे हैं। इस मामले में मनुष्य बुरी तरह हार गया है। जिसने नही जोडा वह इसी चिन्ता में पडा है कि कब पुण्य का उदय हो और वह पा ले। इस महापोह मे वर्तमान उसके हाथ से खिसक रहा है और वह भविष्य मे जीने की कोशिश कर रहा है। महावीर भविष्य के हैं ही नहीं, वे पूर्णतया वर्तमान के हैं । उनकी अहिंसा की आधारशिला है अपरिग्रह अर्थात् अलिप्त होने का अभ्यास । मैंने बटोरा और छोडा यह एक ही क्रिया है। अभ्यास इस बात का करना होगा कि वस्तुओ के इस समुद्र मे उनसे बिना चिपके जीवन जीयें।
महावीर ने एक और महत्त्व की चीज खोजी-'स्यात्' । स्यात् यह भो, स्यात् वह भी। अभी हमारा इस तत्त्व पर बहुत ध्यान नहीं गया है। विज्ञान ने खोज निकाला है। सत्य के अन्वेषी को पूर्ण सत्य तक जाने मे यह तत्त्व बहुत सहायक है। हम जो देख रहे हैं , समझ रहे हैं उसमें बहुत मर्यादाएँ है। आग्रहपूर्वक अपना ही दृष्टिकोण थोपे इससे बात नहीं बनेगी। हमारे दुराग्रह पर और एकागी दृष्टिकोण पर अकुश की जरूरत है। ज्ञान के दरवाजे खुले रहने मे स्यात् ने बडी मदद की है। पर यह तत्त्व महावीर के अनुयायियो की कोई सहायता नही कर सका । अलग-अलग मत-मतान्तरो के कठघरो में उनका महावीर कैद है। वह स्यात् के माध्यम से मुक्ति के द्वार खोलने चला था, भक्तो ने उसे ही बन्द कर दिया। पुरुषार्थ
उनकी अनुभूति का एक और रत्न । मनुष्य को मुक्ति प्रभु-कृपा से मिलेगी या उसके स्वय के पुरुषार्थ से? वह भक्ति मे पडे या अपने आत्मशोधन मे ? मनुष्य अपने प्रभु के निहोरे खाता ही रहा है। उसकी इनायत की भीख मागता ही रहा है। महावीर का आत्म-दर्शन 'जाको कृपा पगु
महाबीर