________________
तीसरा प्रकरण |
मूलम् ।
आस्थितः परमाद्वैतं मोक्षार्थेऽपि व्यवस्थितः । आश्चर्यं कामवशगो विकलः केलिशिक्षया ॥ ६ ॥
पदच्छेदः ।
,
1
आस्थितः परमाद्वैतम् मोक्षार्थे, अपि, व्यवस्थितः, आश्चर्यम्, कामवशग:, विकलः, केलिशिक्षया ॥
शब्दार्थ |
अन्वयः ।
परमाद्वैतम् = परम अद्वैत को
आस्थितः = आश्रय किया हुआ + =और
मोक्षार्थे अपि=मोक्ष के लिये भी
व्यवस्थितः = उद्यत हुआ पुरुष
अन्वयः ।
शब्दार्थ |
कामवशः = काम के वश होकर
केलिशिक्षया= { कोड़ा के अभ्यास
८३
विकलः = व्याकुल होता है आश्चर्यम् = यही आश्चर्य है |
भावार्थ ।
जिसने सजातीय और विजातीय स्वगत भेद से शून्य अद्वैत आत्मा का साक्षात्कार कर लिया है, और सच्चिदानन्द आत्मा में जिसकी निष्ठा हो चुकी है । यदि फिर वह पुरुष काम के वश होकर नाना प्रकार की क्रीड़ा करता हुआ दिखाई पड़े, तो महान् आश्चर्य है ।। ६ ।।
मूलम् ।
उद्भूतं ज्ञानदुमित्रमवधार्यातिदुर्बलः ।
आश्चर्य काममाकाङ क्षेत्कालमन्तमनुश्रितः ॥ ७॥