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________________ अष्टावक्र गीता भा० टी० स० पदच्छेदः । उद्भूतम्, ज्ञानदुर्मित्रम्, अवधार्य, अतिदुर्बलः, आश्चर्यम्, कामम्, आकाङक्षेत्, कालम्, अन्तम्, अनुश्रितः ॥ शब्दार्थ | अन्वयः । ८४ उद्भूतम् = उत्पन्न हुए ज्ञान के काम को ज्ञानदुमित्रम् = शत्रु अवधार्य धारण करके अतिदुर्बलः = दुर्बल होता हुआ च = और अन्वयः । शब्दार्थ | अन्तं कालम् = अन्तकाल को अनुश्रितः={ आश्रय करता हुआ पुरुष काम = कामना को आकाङक्षेत्= इच्छा करता है आश्चर्यम् = यही आश्चर्य है | भावार्थ । / जो ज्ञानी पुरुष काम को ज्ञान का अत्यन्त वैरी जानता हुआ फिर भी काम की इच्छा करे, तो इससे बढ़कर क्या आश्चर्य है । जैसे मृत्यु करके ग्रसित हुए पुरुष को समीपवर्ती विषय-भोग की इच्छा नहीं होती है - वैसे ही विवेकी पुरुष को भी विषय भोग की इच्छा न होनी चाहिए ॥ ७ ॥ । मूलम् । इहामुत्र विरक्तस्य नित्यानित्यविवेकिनः । आश्चर्यं मोक्षकामस्य मोक्षादेव विभीषिका ॥ ८ ॥ पदच्छेदः । इह, अमुत्र, विरक्तस्य, नित्यानित्यविवेकिनः, आश्चर्यम्, मोक्षकामस्य, मोक्षात्, एव, विभीषिका ॥
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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