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अष्टावक्र गीता भा० टी० स०
पदच्छेदः ।
उद्भूतम्, ज्ञानदुर्मित्रम्, अवधार्य, अतिदुर्बलः, आश्चर्यम्, कामम्, आकाङक्षेत्, कालम्, अन्तम्, अनुश्रितः ॥
शब्दार्थ |
अन्वयः ।
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उद्भूतम् = उत्पन्न हुए
ज्ञान के काम को
ज्ञानदुमित्रम् =
शत्रु
अवधार्य धारण करके
अतिदुर्बलः = दुर्बल होता हुआ
च = और
अन्वयः ।
शब्दार्थ |
अन्तं कालम् = अन्तकाल को
अनुश्रितः={
आश्रय करता
हुआ पुरुष काम = कामना को
आकाङक्षेत्= इच्छा करता है आश्चर्यम् = यही आश्चर्य है |
भावार्थ ।
/
जो ज्ञानी पुरुष काम को ज्ञान का अत्यन्त वैरी जानता हुआ फिर भी काम की इच्छा करे, तो इससे बढ़कर क्या आश्चर्य है । जैसे मृत्यु करके ग्रसित हुए पुरुष को समीपवर्ती विषय-भोग की इच्छा नहीं होती है - वैसे ही विवेकी पुरुष को भी विषय भोग की इच्छा न होनी चाहिए ॥ ७ ॥
।
मूलम् ।
इहामुत्र विरक्तस्य नित्यानित्यविवेकिनः । आश्चर्यं मोक्षकामस्य मोक्षादेव विभीषिका ॥ ८ ॥ पदच्छेदः ।
इह, अमुत्र, विरक्तस्य, नित्यानित्यविवेकिनः, आश्चर्यम्, मोक्षकामस्य, मोक्षात्, एव, विभीषिका ॥