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के लिये कोई समर्थ नहीं है । इस मंत्र का ध्यान कर लय लगाने वाला सर्वज्ञ भगवान की समानता धारण कर सकता है । अतः इसका ध्यान अवश्य करना चाहिये ।
चन्द्र के बिम्ब से उत्पन्न हुई हो और उसमें से नित्य अमृत भरता हो और कल्याण के कारुरण रूप भाल स्थल (कपाल) में रही हुई ॥ त्री ॥ नाम की विद्या का ध्यान करना । क्षीर समुद्र में से निकलती हुई, अमृत जलसे भींजती हुई, मोक्ष रूपी महल में जाने के लिये नीसरनी रूप शशि कला को ललाट के अन्दर चिन्तवन करना । इस विद्या के स्मरण मात्र से संसार में परिभ्रमण कराने वाले कर्म क्षय हो जाते हैं और परमानन्द के कारण रूप अव्यय पद को पाता है ।
नासिका के अग्र भाग पर प्रणव ॥ ॐ ॥ शून्य (० और अनाहत (ह) इन तीनों का ध्यान करने वाला आठ प्रकार की सिद्धियां प्राप्त कर लेता है । जिनके नाम इस प्रकार हैं । [ १ ] अरणीमा सिद्धि [२] महिमा सिद्धी, [३] लघीमा सिद्धि, [४] गरिमा
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सिद्धि, [५] प्राप्त शक्ति सिद्धी, [ ६ ] प्राकम्य शक्ति सिद्धी, [७] शित्त्व सिद्धी, और [5] वाशित्व सिद्धी, जिसका बयान विस्तार से षट पुरुष चरित्र के प्रथम सर्ग में श्लोक ८५२ से ६५६ तक किया है, जिज्ञासुत्रों को वह देखना चाहिये ।
इस प्रकार सिद्धियां प्राप्त कर निर्मल ज्ञान पाता है । इन तीनों का अर्थात ॐ, और अनाहत "ह" का ध्यान करने वाले को समग्र विषय के ज्ञान में प्रगल्लभता प्राप्त होती है ।
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