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________________ ३४ आप्तवाणी-९ ध्यान नहीं देना है, हमें वीतराग रहना है। वे जो कुछ करे, उस पर हमें ध्यान नहीं देना है, नोंध नहीं करनी है। प्रश्नकर्ता : वह बहुत बड़ी चीज़ है न! दादाश्री : नोंध नहीं! नोंध तो क्लेश करवाती है। ज़रा सी भी नोंध नहीं। किसी के लिए नोंध नहीं करते। इन सभी को हम डाँटते हैं, लेकिन नोंध नहीं। एक घंटे के लिए भी नोंध नहीं। नोंध रखेंगे तो हमारा दिमाग़ बिगड़ जाएगा। हमने तो नोंध पोथी ही निकाल दी है। __'वीतराग,' फिर भी 'खटपट' प्रश्नकर्ता : तो दादा, आपकी आँखों में वह निष्कारण करुणा होती है? दादाश्री : हाँ, वही। और क्या? यह तो निष्कारण करुणा है! हमारी दृष्टि उसके आत्मा पर ही रहती है, दृष्टि उसके पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) पर नहीं रहती। फिर भी हम व्यवहार संभाल लेते हैं कि यह सत्संग के लिए हितकारी व्यक्ति है। इसलिए 'आओ, पधारो' ऐसा कहते रहते हैं। जो दूसरे लोगों का हित करें, ऐसे लोग हों तो उन्हें हम बुलाते हैं। उस व्यवहार को संभालना पड़ता है, यों व्यवहार संभालते हैं हम। जबकि वे तीर्थंकर भगवान हैं, वे तो ऐसा कुछ ध्यान नहीं रखते। उन्हें खटपट नहीं है न! जबकि यह तो खटपट है हमारी! प्रश्नकर्ता : आपका यह जो खटपटवाला विभाग है न, इसीलिए तो हम आपके पास आ सकते हैं। दादाश्री : हाँ, वही। उसी के कारण तो मैं रुका हुआ हूँ कि इन लोगों का मेरे जैसा कल्याण किस प्रकार से हो उतना ही, उसी के लिए खटपट! खटपट भी इसी के लिए है न! यह सब व्यापार ही इसके लिए है न! और लोगों का भी कल्याण हो जाता है न! लोगों को वीतरागता देखने को मिल जाती है यहाँ पर। प्रश्नकर्ता : अब वह जो व्यवहार को लेकर आड़ाई है न कि यह
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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