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________________ [१] आड़ाई : रूठना : त्रागा दूध कम दिया उसके लिए रूठ गए, तो मोक्षमार्ग की आड़ाई कैसी होती है ? ३५ दादाश्री : यह निरी मोक्षमार्ग की ही आड़ाईयाँ हैं, इसीलिए संसार कायम है, मोक्ष रुका हुआ है ! नहीं तो मोक्ष तो तेरे पास ही है न! ये आड़ाई की ही दीवारें हैं सारी । अभी तक आड़ाई है, निरी आड़ाईयों का पोटला! अपनी मनमानी ही करता है ! उसे कहते हैं त्रागा प्रश्नकर्ता : सामने वाले से अपनी मनमानी करवाना, क्या वह आड़ाई में आएगा ? दादाश्री : और फिर क्या ? आड़ाई नहीं तो और क्या है ? और वह रूठकर भी, अंत में त्रागा (अपनी बात मनवाने के लिए किए जानेवाला नाटक) करके भी अपनी मनमानी करवाता है। त्रागा आपने नहीं देखा है ? आपको बुखार आ जाएगा, त्रागा देखो तो ! सामनेवाला व्यक्ति त्रागा करे तो आपको बुखार नहीं चढ़ा हो तो भी तीन डिग्री बुखार चढ़ जाएगा। प्रश्नकर्ता : त्रागा क्या होता है ? दादाश्री : त्रागा यानी खुद ऐसा कुछ करना ताकि सामनेवाला घबराकर फिर उसकी बात को एक्सेप्ट कर ले। अपनी मनमानी करवाने के लिए कुछ भी करता है। सिर कूटता है, ऐसे करता है, उछलकूद करता है, रोता है, ज़ोर-ज़ोर से रोता है । हमें हर तरफ से डरा देता है, वह त्रागा कहलाता है । I प्रश्नकर्ता : ढोंग करना और त्रागा करना, उसमें क्या फर्क है ? दादाश्री : ढोंग करता है या त्रागा करता है, वह सभी अपनी मनमानी करने के लिए ही करता है ! अभी सब लोग खाना खाने बैठें और एक व्यक्ति कहे कि, 'मैं नहीं खाऊँगा।' तो वह त्रागा कहलाता है । ये तो लोग अच्छे हैं कि कहते हैं, 'नहीं भाई, खा लो, नहीं भाई, खा लो !' तो भोजन करवाते हैं लेकिन
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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