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________________ [१] आड़ाई : रूठना : त्रागा वीतरागता की अनोखी रीत प्रश्नकर्ता : आपके सामने कोई रूठ जाए तो उसके प्रति आप कैसा व्यवहार रखते हैं ? । दादाश्री : बिल्कुल वीतराग भाव से! खेंच (आग्रह) वगैरह हमें नहीं रहती। उसे मनाने की भावना भी नहीं। हमें ऐसा लगे कि मनाने से टेढ़ा पड़ेगा, तो बिल्कुल बंद! और अगर हमें लगे कि मनाने से सीधा हो सकता है, तो हम एकाध शब्द कहते हैं कि, 'भाई, हमारी भूलचूक हो गई हो तो, बैठो न शांति से। भूलचूक तो मेरी भी होती है और आपकी भी होती है।' ऐसा कहकर उसे बिठाते हैं लेकिन खेंच नहीं, वीतरागता रहती है। निरंतर वीतरागता रहती है ! उसके प्रति किंचित् मात्र भी अभाव नहीं और भाव भी नहीं। फिर 'दादा भगवान' से कह देता हूँ कि उस पर कृपा उतारिए। 'चंदूभाई' और 'चंदूभाई' के मन-वचन-काया, भावकर्म-द्रव्यकर्म-नोकर्म से भिन्न ऐसे 'आपके' 'शुद्धात्मा' से कह देता हूँ कि 'चंदूभाई' पर कृपा उतारिए। वे सभी कनेक्शन मैं कर देता हूँ। उसके बाद वीतरागता से रहता हूँ। वह रूठा हुआ और मैं सीधा, व्यवहार इस तरह से चलता रहता है! कुछ समय तक वह परेशान रहता है, फिर निकल जाता है सबकुछ। प्रश्नकर्ता : तो दादा, ऐसा है न कि किसी रिसाल व्यक्ति को यदि सामने से प्रोत्साहन नहीं मिलेगा तो उसे उसका तरीका अपने आप छोड़ना पड़ेगा? दादाश्री : ऐसे को हम प्रोत्साहन नहीं देते हैं। कभी भी नहीं देते, ज़रा सा भी नहीं देते। प्रोत्साहन देने से ऐसा व्यक्ति टेढ़ा चलता है। इन बच्चों के साथ भी वीतरागता से रहने से बहत अच्छा रहता है। बच्चों को प्रोत्साहन देंगे तो बच्चे भी टेढ़े चलेंगे। वीतरागता की ज़रूरत है! बच्चे आएँ तो उन पर हाथ फेरना, नहीं आएँ तो कोई बात नहीं, इस तरह! आएँ तब हाथ फेरना और वह दूर हटाएँ तो कोई बात नहीं। वापस फिर से आएँ तो उन पर हाथ फेरना। वे जो भी कुछ करें, उस पर हमें
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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