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________________ २०८ आप्तवाणी-९ दादाश्री : तब क्या करते हैं फिर? 'आप ऐसे।' और पति कहेगा, 'तू ऐसी।' ऐसा करते हैं या नहीं करते? इस तरह भेद पड़ते-पड़ते कहाँ तक आकर रुकता है ? कहाँ तक पहुँचती है उसकी जड़? खुद अपने आप पर कि 'अब मैं ही हूँ। बाकी दूसरा कोई मेरा अपना नहीं है।' इस तरह यह भेददृष्टि 'मेरा-तेरा, मेरा-तेरा' करवाती है। यही की यही हायतौबा, हाय-तौबा, हाय-तौबा। ममता बाउन्ड्रीसहित एक भाई कहते हैं, 'मेरी ममता नहीं जाती।' तब मैंने कहा कि, 'कैसे जाएगी लेकिन? यह आपके मकान की बाउन्ड्री है, तो इतना ही आपका है ऐसा जानते हो न? या आप ऐसा कहते हो कि इससे आगे भी कुछ है? इतनी ही बाउन्ड्री है, इस तरह बाउन्ड्री बताते हो या नहीं बताते आप? तो ममता की बाउन्ड्री बताओगे? ममता की बाउन्ड्री कितनी है ? घर की बाउन्ड्री तो दूसरा भी बता सकता है कि यह आपका ही है। यों ममता दिखानी पड़ेगी न? इस संसार के लोगों ने तो ममता की बाउन्ड्री नहीं देखी है। हर एक चीज़ बाउन्ड्री से ही शोभित होती है। यह आपका मकान है, उससे बाहर आपकी दृष्टि जाती है क्या कि यह पास वाला मकान भी हमारा ही है? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : उसकी बाउन्ड्री है न? ऐसा नहीं कहते न, कि यह सभी कुछ मेरा है? यानी मैं क्या कह रहा हूँ कि ममता भले ही रहे, लेकिन वह बाउन्ड्रीपूर्वक होनी चाहिए। लेकिन 'बाउन्ड्री कितनी होनी चाहिए?' जिस पर ममता की हो वह चीज़ अपने साथ आए, वह ममता की बाउन्ड्री! तो ममता की बाउन्ड्री यानी क्या कि आप जीवित हो तब तक वह आपका ही रहे, उसके बाद आपका नहीं रहे। इस उँगली की ममता रखने को कहा है भगवान ने कि 'यह उँगली मेरी है' कहना। लेकिन इस अंगूठी की ममता रखने को मना किया है। क्योंकि यह अंगूठी
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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